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________________ -+-+-+@+ मालवीय, एक फिर पैदा हुए, गंगा यमुना के गलियारे में नहीं, मरुधर की धरती पर कि जिन्होंने, घर फूंक, साधना की धूनी रमा बाल-बोध के लिए भिक्षा पात्र कर में थामा, पूर-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण महलों के फकीर वे काकासा जिधर भी चल पड़े चल पड़ी आँधी झड़ पड़े नोटों के आम हर मधुपान के पश्चात भी.... मुनि श्री मोहनलाल (आमेट) करोड़ के करीब पहुँचकर भी नहीं हुआ है पूर्ण विराम निर्माण वस्तु का व्यक्ति का. आवास का, विश्वास का बहुत कुछ हुआ है-पास विद्याभूमि बन गया है आज राणावास Jain Education International प्रणाम श्री गौतमचन्द छाजेड़ (बंगलोर) OO अद्वितीय अनुपम त्याग व्यक्तिशः उनका सुख का सुविधा का जीवन की हर भोगप्रधान विधा का और यही विसर्जन बना है अनगिन के लिए सर्जन, इस सब में भी मौन, मूक नींव का पत्थर बनी है माला सुन्दरबाई कि उसकी कौन करेगा भरपाई अभिनन्दन ! काव्याञ्जलि आज उनका उन्हीं से, समान से शब्द नहीं अर्थ माँगता है कि आज की सुरक्षा के लिए कल का व्यक्तित्व माँगता है और मांगता है सोने में सौरभ के लिए व्यक्ति, व्यवस्था में विकास कि हर मधुपान के पश्चात भी जीवित रहे प्यास । धवल वस्त्र आँखों का वह सुन्दर ओज मुख से झरती मिठास जिनकी है सब पर एक अमिट छाप ऐसे महापुरुष को हम सबका प्रणाम ! For Private & Personal Use Only O १०१ www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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