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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
कुण्डलियाँ
श्री भैरूलाल बापना (लावा सरदारगढ़)
(१) तेरापंथ समाज में जनमा रतन महान् । तन मन धन का मोह तज, किया जगत कल्यान । किया जगत कल्यान, बने तुम मौन तपस्वी। भेद भावना भूल, बन गये महा यशस्वी ॥ कह भैरव कविराय, स्वार्थ का मिटा अँधेरा। कहता है दिनरात, प्रभु जो कुछ है तेरा ॥
(२) काका तेरी भक्ति लख, है केहरी भी दंग। दृढ़ विश्वासी कर्मठ योगी, साहस बड़ा दबंग ॥
साहस बड़ा दबंग, विपद में नहीं घबराये। कंटक बन कांठा भूमि में, सुमन खिलाये ॥ कह भैरव कविराय, नहीं कोई तुमसा बांका। किस मुंह से मैं करूँ, वन्दना, तेरी काका ॥
काकाजी श्रीकृष्ण, राधिका यह बैठी है काकी। श्री श्याम रंग थे कृष्ण, राधिका गौरवर्ण थी झांकी। राधिका गौरवर्ण थी झांकी, दोनों सेवा करें निरन्तर। जहाँ जाते हैं सब वश हो जाते, है कोई जादू-मन्तर ॥ कह भैरव कविराय, दे कान सुनो आकाजी। इस कर्मयोगी की रात, कोई नहीं जनमा काकाजी ।।
जल में कमल पनपता, लेकिन रहता जल से दूर। बन्धनमुक्त साधना जिसकी, सेवा से भरपूर ॥ सेवा से भरपूर एक आदर्श यशस्वी। रात दिवस जन सेवक बनकर बना तपस्वी ॥ आज भैरू का प्यारा है अनुराग तुम्हारा। जोवन का आदर्श बन गया त्याग तुम्हारा॥
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