SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Lolololo U Jain Education International १०० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड भुल्या कदे न जाय मुनि श्री अगरचन्द दोहा तेरापंथ में चालसी, श्रावकां रो इतिहास जिण में केसरीमलजी सुराणा भी खास ||१|| जनम्या राणावास में, कांठा बिच में गाम । दोय कोसरे आंतरे, भीखण बाबे की धाम ॥ २ ॥ व्यापार करता बोलारम में जोरदार थो नाम । जागी अन्तर् आत्मा, छोड़ दियो सब काम ||३|| सेर-सेर सोनो पहरती, घूंघट तो भरपूर । सुन्दरबाई धाविका, चटके कर दियो दूर ॥४॥ अंधरूड़ियां छोड़ दीं छोड्यो सोने को बनी सहयोगी श्राविका, जोड़ो मिलग्यो त्याग तपस्या सांतरी, सामायक अणपार । अगर लिखूं विस्तार सुं, तो ग्रन्थ बने एक प्यार || ६ || हाड़ हाड़ नी मीज्यों, रंगी धर्म रे माय । सरधा तेरापंथ में, दृढ़ विश्वास लगाय ॥७॥ कृपा-पात्र गणी तुलसी का, अरज करी स्वयमेव । चातुर्मास राणावास में हुक्म लियो ततखेव ||८|| , खाणो पीणो सादगी ज्यादा समय त्याग में, रहणो संयम माय । बाकी बोडिंग माय ॥ ॥ मोह । ओह ||५|| जमकर राणावास में संस्कार छात्रों में भरे, नहीं नाम री भावना, तन मन धन सुं दोनों ही मुनि 'अगर' ने गौरव है, श्रावक चमक्या जोर का, । पकड़यो छात्रावास । जैनधर्म का खास ॥१०॥ निःस्वार्थ री सेव । जीवन लगा दियो शेष ॥ ११ ॥ जन्म भूमि रे पास। तेरापंथ में खास || १२ || होया ने होसी घणा, इण शासण रे माय । पिण सुराणा केसरी भुल्या कदे न याद करसी पोखलो, सारा ही तेरापंथ समाज तो, मानेला OO For Private & Personal Use Only जाय ॥ १३ ॥ नर-नार । उपगार ||१४|| www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy