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________________ श्रद्धा-सुमन ७५ . .... ........ ........-. -.-.-. -.-. -.-.-.-. -. --.-. अनुकरणीय आदर्श व्यक्तित्व [] वैद्य सुन्दरलाल जैन, इटारसी समाज सेवा के लिए समर्पित जीवन वाले कर्मयोगी श्री भौतिकवादी विलासितामय जीवन-निर्वाह को खुली चुनौती सुराणाजी की अद्भुत कार्यक्षमता लोगों को आश्चर्यचकित है। यही कारण है कि आपका जीवन उच्चता और महानता किये बिना नहीं रहती, क्योंकि निःस्वार्थ भाव से लोको- के शिखर पर आरूढ़ है जो हम जैसे क्षुद्र मनुष्यों को चकित पकार की भावना के वशीभूत होकर समाज के लिए जीवन कर रहा है। कर्मयोग को आपने अपने जीवन में मूर्त रूप अर्पण कर देना अतिदुःसाध्य कार्य है। जो व्यक्ति ऐसा देकर जो अद्भुत आदर्श प्रस्तुत किया है, वह समाज के लिए करते हैं वे विरले ही होते हैं। श्री सुराणाजी इन्हीं विरले अनुकरणीय है। कर्मयोगी के रूप में आपके विलक्षण व्यक्तियों में से एक हैं। उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग कर व्यक्तित्व एवं असाधारण क्षमता का सदैव स्मरण किया जाता केवल लोकोपकार को ही अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य रहेगा । आपने इस जीवन में अपना कुछ नहीं समझा और बनाकर उसी पथ का अनुसरण किया। अतः निश्चय ही स्वयं तक को समाज के लिए समर्पित कर दिया। यह समाज के साधुवाद के पात्र हैं। आपकी सेवाओं का आपकी उदारता, उच्चता और महानता की पराकाष्ठा मूल्यांकन किया जाना समाज का परम पुनीत कर्तव्य है। है। आपका साधुवत् आचरण समाज के लिए प्रेरणाप्रद एवं आप केवल समाज की ही नहीं, अपितु देश की महान अनुकरणीय है । आचरण की शुद्धता, विचारों की परिष्कृ- विभूति हैं । समाज आप की सेवाओं से उपकृत है। आपने तता, हृदय की निर्मलता आपकी साधुवृत्ति के ही परिचायक समाज को जो कुछ दिया है वह अकल्पनीय है। आप जैसे हैं । आपका सीमित व्यय में जीवन निर्वाह आपकी निर्लोभ- साधु पुरुष समाज के लिए अनुकरणीय आदर्श हैं । वृत्ति एवं अपरिग्रही जीवन का द्योतक है जो वर्तमान 00 राणावास का गांधी 0प्रो० भंवरलाल पारख, अजमेर गत दशक से यद्यपि राणावास में स्थापित शिक्षण कथनी और करनी में अन्तर नहीं है, जो अपने मृदु व्यवसंस्थाओं के विषय में कुछ सुनने को मिला, परन्तु जुलाई हार, मधुरवाणी एवं सौम्य आचरण द्वारा सदैव मानव १९७७ से पूर्व मैं इसकी कभी कल्पना भी नहीं कर सकता समाज के लिये प्रेरणा स्रोत बने रहते हैं। पूज्य काकासा था कि छोटे से गाँव राणावास में इतना भव्य, विशाल की वाणी में जो प्रभाव एवं मुखमण्डल पर जो तेज है, एवं सुन्दर शिक्षण-परिसर स्थापित हो सकता है। जुलाई वह उनके त्याग, तपस्या एवं सादे जीवन का ही प्रतिफल १९७७ में प्राध्यापकों के चयन में विश्वविद्यालय के प्रति- है। आज के इस भौतिक युग में ऐसा व्यक्तित्व प्रायः निधि के रूप में जब मैंने राणावास में प्रवेश किया और दुर्लभ है, जिन्होंने सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य के मेरे गुरु एवं अग्रज प्राचार्य श्री तेलासा० ने जब मेरा परि. सिद्धान्तों को इस प्रकार से अपने जीवन में आत्मसात् कर चय एक साधु-मूर्ति पुरुष से करवाया, तो प्रथम दृष्टि में लिया हो । ही मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैं महात्मा गांधी की प्रतिमूर्ति आज जब समस्त मानव-जाति विनाश के कगार पर के दर्शन कर रहा हूँ, पूज्य काका साहब के चेहरे पर जो खड़ी प्रतीत होती है, मानव मानव का शोषण एवं संहार आलोक एवं विश्वास प्रफुल्लित हो रहा था, उससे मैं करने को आतुर है, मनुष्य को जीवन में सन्तोष एवं अत्यधिक प्रभावित हुआ । उसके बाद भी मतिमान श्री तृप्ति का अनुभव नहीं हो रहा है-ऐसे समय में काका काका साहब के दर्शन के दो अवसर मिले। मेरी यह साहब जैसे साधु पुरुष के जीवन से हमें दिशा-बोध एवं धारणा उत्तरोत्तर सबल होती गयी कि यह व्यक्ति भी सन्मार्ग की प्रेरणा मिलती है । महात्मा गांधी एवं उन विभूतियों की तरह है, जिनकी 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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