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________________ . ७६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड एकता और समन्वय के प्रतीक प्रो० चांदमल कर्णावट, उदयपुर शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र राणावास मेरी भी वह धर्मसाधना का अन्य स्थान जहाँ अन्य बालिकाएं कर्मभूमि रहा, भले ही एक वर्ष के अल्पकाल के लिए ही। अपनी-अपनी मान्यतानुसार धर्माराधना करती हैं। यहाँ इस स्वल्पकाल में ही सेवामूर्ति, निःस्वार्थ समाजसेवी एवं दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी, मूर्तिपूजक, तेरापंथी सभी शिक्षा के दूत श्रद्धेय श्री केसरीमलजी सुराणा के सम्पर्क में बालिकाएँ चार साल की अल्पायु से लेकर १५-१६ वर्ष आकर कई स्मृतियाँ स्थायी बन गई। वे सदा स्मरणीय की किशोर बालिकाएँ साथ-साथ रहतीं और अध्ययन रहेंगी। करती हैं । आवास, निवास, खान-पान एवं रहन-सहन की जनसामान्य की यह धारणा होगी कि श्री सुराणाजो समस्त सुविधाओं से युक्त यह शिक्षण संघ केवल धार्मिक एक कट्टर तेरापंथी श्रावक है, परन्तु यह उनके लिए एक और आध्यात्मिक शिक्षण के लिए ही नहीं अपितु व्यावआश्चर्य की बात होगी कि श्री सुराणाजी के प्रयत्नों से हारिक शिक्षण का कार्य कर रहा है। एक सुविशाल निर्मित सम्पूर्ण जैन समाज की एकता और समन्वय का भवन में एक स्थायी कोष से युक्त यह संघ जैन प्रतीक एक महिला शिक्षण संघ स्थित है राणावास में। एकता और समन्वय का एक सुदृढ़ उदाहरण है। संभवतः देश में ऐसा अन्य उदाहरण दुर्लभ ही होगा, जहाँ इस महान प्रयत्न के पीछे श्रम लगा है, मुख्यतः सुराणासमस्त जैन समाज का ऐसा सुसंगठित एकता के प्रतीक- दम्पति का । इस महिला शिक्षण का संचालन सँभालती स्वरूप जैन महिला शिक्षण संघ कार्यरत हो, जैसा शिक्षा हैं श्रीमती सुन्दरबाईजी सुराणा, जिनमें वस्तुतः मातृ-हृदय नगरी राणावास में है । शिक्षण संघ में प्रवेश करते ही बांई के दर्शन होते हैं। उनका जीवन सचमुच उनके नाम को और निर्मित एक मन्दिर जिसमें विश्वास रखने वाली सार्थक बना रहा है । वीतराग वाणी के अनुसार यह संघ बालिकाएं पूजन किया करती हैं, फिर आगे बढ़कर देखिये प्रगति के शिखरों पर आरूढ़ हो, यही हादिक कामना है। त्याग के मुर्तिमान रूप प्रो० रामप्रसाद शर्मा, कानोड़ काका साहब के जीवन पर कुछ लिखना या उनके करते हैं। यह है आपकी सम्पूर्ण त्यागशीलता का पालन अलौकिक गुणों को प्रदर्शित कर पाना मुझ जैसे साधारण जिसके सामने बड़े-बड़े सेठ सिर नवाते हैं और श्रद्धा से व्यक्ति के लिए कठिन है पर जैसा मैंने उन्हें देखा और आपके प्रति विनीत रहते हैं। आपको जो लाखों रुपयों का पाया वही चित्र पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास चन्दा प्राप्त होता है उसके पीछे आपकी यही तपस्या कर रहा हूँ। बलवती है। काका साहब का व्यक्तित्व और चरित्र महान है। काका साहब हृदय के कोमल व मधुर हैं, पर संस्था गाँधीजी की तरह दुर्बल शरीर, पर दृढ़ संकल्प और श्रेष्ठ के हित-चिन्तन और अनुशासन में वज्र से भी कठोर हैं। चरित्र के धनी काका साहब अपनी धुन के धनी हैं। वे यही श्रेष्ठ पुरुष की पहचान है। कार्यों का निरीक्षण त्याग के मूर्तिमान रूप और वीतराग हैं। वर्षों से वान- करते हुए और उचित आदेश देकर उनका पालन कराते प्रस्थ होते हुए भी पंच महाव्रत के व्रती हैं और कठोरता हुए देखा है । जिस श्रद्धा और विश्वास से समाज इनको से पालन करने वाले हैं। आपकी दिनचर्या एक आदर्श लाखों रुपये का दान देता है और इनकी मनचाही मांग सन्त की तरह है । १७ सामायिक करना आपका नित्य को पूरा करता है, उसी तरह काका साहब भी समाज की नियम है । केवल ७ वस्तुओं का भोजन करना, बाकी सब इस धरोहर के श्रेष्ठतम ट्रस्टी हैं। उसके एक-एक पैसे का त्याग है। वर्ष भर में २० मीटर कपड़े में अपनी सारी के सजग प्रहरी हैं। उसका व्यय उचित और सही ढंग से आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और ऐसी भयंकर मंहगाई हो इसकी प्राणपण से चेष्टा करते हैं और ध्यान रखते हैं। के समय भी मात्र १०० रु० में अपना जीवन-यापन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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