SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.. मानवता के उन्नायक - श्री भागचन्द जंन 'भागेन्दु', दमोह (म०प्र०) 'योगः कर्मसु कौशलम्'-सिद्धान्त सूत्र को अपने उन्होंने मानवता के उत्कर्ष के लिए उच्चकोटि के कार्य किये जीवन में उतारकर उसकी सुरभि से दिग्-दिगन्त को सुवा- हैं-अथ च अनवरत कर रहे हैं। हमारी दृष्टि में सित कर रहे माननीय श्री केसरीमलजी सुराणा और उनके श्री सुराणाजी वही सब कर रहे हैं, जो महामना पं० मदन द्वारा विहित परोपकारपूर्ण प्रवृत्तियों का शतशः सादर मोहन मालवीय एवं प्रातःस्मरणीय पूज्यपाद पं० गणेशस्मरण कर श्री सुराणाजी का कोटिशः अभिवादन-अभि- प्रसादजी वर्णी महाराज ने किया। नन्दन करता हूँ। कर्मयोगी श्री सुराणाजी ज्ञानयज्ञ के प्रवर्तन, कुरूढ़ियों श्री सुराणाजी व्यक्ति नहीं, संस्था है। उनकी उप- के उन्मूलन, मानवता के संरक्षण-उन्नयन एवं अध्यात्म-पथ लब्धियाँ संस्थागत उपलब्धियों से भी अधिक महत्तर हैं। के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने में सतत सन्नद्ध हैं । 00 निवृत्ति और प्रवृत्ति के अद्भुत संयोजक 0 श्री चन्दनमल 'चाँद' (बम्बई) V जीवन निवृत्ति और प्रवृत्ति दो धाराओं के बीच सन्तु- की ओर प्रवृत्ति उनके पौरुषमय जीवन का लक्ष्य है। लित बहने का ही नाम है । कर्म जीवन को प्रेरणा देता है श्री सुराणाजी उन विरल जैन श्रावकों में से एक हैं और विरक्ति विश्राम । वैराग्य अथवा विरक्ति का जीवन जिन्होंने धर्म को जीवन में उतार कर पलायन के रूप में में स्पर्श होते ही अधिकांशत: व्यक्ति पूर्ण निवृत्ति की ओर नहीं बल्कि संघ और समाज के लिये पौरुष का प्रतीक अग्रसर हो जाता है। इसी प्रकार जो कर्म-क्षेत्र में अधिक बनाकर प्रस्तुत किया है । राणावास में छात्रों को रुचि रखते हैं, वे पूर्णतया प्रवृत्तियों में संलग्न हो जाते हैं। शिक्षा के साथ संस्कार देने का जो महान् प्रयास वर्षों इन दोनों स्थितियों के बीच एक गृहस्थ संन्यासी की स्थिति से चल रहा है उसकी प्राण-प्रतिष्ठा का आधार श्री भी हो सकती है । यह मूर्तरूप श्री केसरीमलजी सुराणा में सूराणाजी ही हैं। संस्थाओं से व्यक्ति नहीं बनते बल्कि दृष्टिगत होता है। व्यक्तियों से संस्थाओं का निर्माण होता है। श्री सुराणाजी श्री सुराणाजी से मेरा निकटतम परिचय है, ऐसा तो के लिये यदि कहा जाय कि ये तेरापंथ समाज के अत्यन्त मैं दावा नहीं करता किन्तु जितना मैंने उन्हें जाना, समझा विश्वसनीय सेवाभावी कार्यकर्ता है तो मैं समझता हूँ कि उसके आधार पर उनके व्यक्तित्व को प्रवृत्ति और निवृत्ति इनके साथ अन्याय होगा। श्री सुराणाजी एक परम्परा में दोनों संगमों का केन्द्र कह सकता है। श्री सुराणाजी अटूट श्रद्धा रखते हुए भी संकीर्णता से परे, शुद्ध धार्मिक व्यक्तिगत कामनाओं, आकांक्षाओं और वासनाओं से लग- जीवन जीने वाले व्यक्ति हैं। भग निवृत्त हैं। उनका जीवन एक आदर्श श्रावक का मूर्त- उनका अभिनन्दन समाज की सेवाओं के लिये स्वयं रूप है। प्रत्येक क्षण का निर्बाध उपयोग करना उनकी समाज का अभिनन्दन है। मान और अपमान की भावनाओं जीवनदृष्टि है। जीवन में संयम और त्याग का अद्भुत से दूर रहने वाला सच्चा धार्मिक अनासक्तभाव से गालियों मिश्रण इस प्रकार एक ओर तो वे निवृत्त से हैं किन्तु की तरह ही प्रशंसा भी सहजता से सुन सकता है। मेरी उनकी निवृत्ति अकर्मण्यता की द्योतक नहीं। वे निवृत्ति में शुभ कामना है कि श्री सुराणाजी इसी प्रकार निवृत्तिमय भी प्रवृत्ति की ओर संलग्न हैं । असद् से निवृत्ति और सद् प्रवृत्ति का आदर्श प्रस्तुत करते रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy