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________________ 0. ५० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड शाखी बन लहलहाता रहता है जबकि निर्जीव बीज धरातल के गर्त में जाकर स्वयं का अस्तित्व ही समाप्त कर देता है । अतः साधनामय आदर्श जीवनचर्या की जीवन में महती आवश्यकता है । यह जगमगाती दीपशिखा प्रमाद और अज्ञान तिमिर की काली रेखा को चीर डालती है। यह संजीवनी शक्ति आक्सीजन है जड़ता की कार्बन को हटा जीवन को गतिमान बना देती है । इसका ज्वलन्त उदाहरण हैं- कर्तव्यपरायण, पुन के धनी, साधना- निष्ठ, त्याग तपस्या की साकार मूर्ति, सहज शिक्षक, राणावास संस्था के संचालक, तेरापंथ संघ के श्रद्धानिष्ठ धावक केसरीमलजी सुराणा । इस भौतिक वाद की चकाचौंध में भी अनासक्त भरत एवं योगी की भौति किस प्रकार अपनी दैनिक जीवनचर्या को रोमांचकारी कठोर साधना के सांचे में ढाले हुए चल रहे हैं । गांधीजी ने कहा- " त्याग एक सात्त्विक आनन्द है, Jain Education International 00 कँटीली झाड़ियों में उन्हीं व्यक्तियों के जीवन पर लेखनी चलती है जिनके जीवन का कण-कण स्व-पर के उत्थान के लिए त्याग एवं बलिदान की आहूति में होम दिया जाता है या वार्त मानिक क्षणों में भी होमा जा रहा है। ऐसे अनेक श्रद्धाशील भावकों का जीवन इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर आज भी मुखरित हो रहा है । उन आदर्शमय श्रावकों की कड़ी में धीमान् केशरीमलजी सुराणा का जीवन जोड़ा जाये तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। इनके जीवन की एक विरल विशेषता है कि ये अपने प्रण के पक्के हैं । जिस कार्य को करने का निर्णय ले लिया उसे सम्पन्न करके ही विराम लेते हैं, बीच में नहीं । एक कवि के शब्दों में त्याग बिना मनुष्य का विकास नहीं हो सकता ।" सुराणाजी इस सात्त्विक आनन्द का रसास्वादन करते हुए सहस्रों सहस्रों व्यक्तियों को भी आत्म-विकासरूपी अनुपम अमृत का अनुपान अनवरत कराते आ रहे हैं । साधना एवं विकास की सुरसरिता में स्वयं स्नान करते हुए सैकड़ों या सहस्रों छात्र-छात्राओं कई तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी, उनका जीवन-निर्माण कर रहे हैं । योगवाशिष्ठ में कहा है- उसी व्यक्ति का जीवन सुशोभित है जिसके दर्शन, श्रवण एवं स्मरण मात्र से प्राणियों को आनन्दानुभूति होती हो, यथा 1 यस्मिन् भूति पचा पाते दृष्टे स्मृतिमुपागते। आनन्दं यान्ति भूतानि जीवितं तस्य शोभितं ॥ " और थी केसरीमलजी मुराणा का जीवन इसी तरह सुशोभित हो रहा है । प्रण के पक्के कर्मठ मानव जिस पथ पर बढ़ जाते हैं । एक बार तो रौरव को भी, स्वर्ग बना दिखलाते हैं । अभिप्रेत मंजिल प्राप्त के लिए बृहत्तर कठिनाइयों की पटाने भी क्यों न चोरनी पड़े, आये दिन ज्वलन्त । साध्वी श्री अशोकधी मुस्कराता फूल संघर्ष के तीव्र तूफानों से क्यों न मुकाबला करना पड़े, लेकिन जो करना है वह विकट से विकटतम स्थिति में भी करना है। कर्मठ राही को साथी की परवाह नहीं होती, अकेला ही वह अपने निर्णीत साध्य बिन्दु पर पहुंच जाता है । उसका अटूट मनोबल कभी कायरता के दर्पण में नहीं झाँकता । यथा बिछे हों शूल पग-पग पर खड़े हों विघ्न मग-मग पर । कठिन हो पाँव धरना मी व संभव छाँह गहना भी न कोई संग साथी हो, अकेला लक्ष्य पालूंगा सतत अभ्यास मेरा है ॥ वीर हृदय किसी भी परिस्थिति के सामने अपने घुटने नहीं टेकता, बल्कि परिस्थिति उनके चरण स्वयं घूमती है। श्री सुराणाजी अपने लक्ष्य के प्रति इसी प्रकार समर्पित हैं। वे कँटीली झाड़ियों में मुस्कराते फूल हैं। वीर शिरोमणि और वीरों के अवतार हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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