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________________ जिस प्रकार जन-समुदाय अथवा समाज की समुचित व्यवस्था के लिए संविधान की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार व्यक्तिगत जीवन की व्यवस्था हेतु आत्म-साधना की आवश्यकता होती है । वरिष्ठ श्रावक केसरीमलजी का जीवन आत्म-साधना का उदाहरण है । भगवान ने चारित्र साधना के दो प्रकार प्रस्तुत किये हैं - ( १ ) देशविरति साधना, (२) सर्वविरति साधना । श्रावक केसरीमलजी सर्वविरति साधक नहीं बन पाये किन्तु उन्होंने देशविरति साधना भी उत्कृष्ट कोटि की साधना की है और कर रहे हैं । उदाहरणस्वरूप उन्होंने तीस वर्षों की यौवनावस्था में यावज्जीवन ब्रह्मचर्य को धारण किया । ब्रह्मचारी साधक साध्वी श्री राजवती . समाज के साथ मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जहाँ उसका घनिष्ट सम्बन्ध होता है वहाँ समाज के प्रति उसके कुछ कर्तव्य भी होते है। यदि उन कर्तव्यों का पालन निष्ठा एवं उत्साहपूर्वक किया जाता है तो व्यक्ति एवं समाज प्रगति के शिखर पर पहुँचकर युग-युग तक संसार में पावन प्रेरणा का स्रोत बन जाता है। दोनों का इतिहास गरिमायुक्त सेवाओं से समृद्ध बनता है। समाज के दर्पण व्यक्ति होते हैं। जैसे व्यक्ति होंगे वैसी ही समाज की रचना होगी । Jain Education International 0 नव-समाज के निर्माता मुनि श्री रवीन्द्रकुमार जीवन जी लेना एक साधारण बात है एवं आदर्शजीवन जीना विशेष । 'काकोपि जीवति चिराय बलि च भुवते' बलि भक्षण कर काक (कौआ) भी चिरकाल जीता है । लेकिन निष्क्रिय जीवन का उतना महत्त्व नहीं जितना कि आदर्श एवं सयि जीवन का है। ब्रह्मचर्य व्रत की व्याख्या देते हुए भगवान ने कहा'उगमहस्वयं वयं धारयेवं सुदुक्करे ।' अर्थात् ब्रह्मचर्य व्रत को पालन करना बहुत कठिन है । यदि इस व्रत का तन-मन से पालन किया जाये तो इससे अन्तर्निहित शक्ति का प्रादुर्भाव होता है जो हर साधना क्षेत्र में उपयोगी सिद्ध होती है । भावक सरीमलजी ने आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन में जो आश्चर्यजनक कार्य किया है और कर रहे हैं, इसका एक कारण यही हो सकता है कि ब्रह्मचर्य व्रत से जागृत अन्तर्निहित शक्ति ही उनमें काम कर रही है। अनासक्त योगी D साध्वी श्री सोहनकुमारी (राजलदेसर ) आशीर्वचन ૪૨ संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसमें कोई न कोई विशेषता न हो कुछ व्यक्ति विरल विशेषताओं से । सम्पन्न होते हैं । उनका जीवन समाज के लिए वरदान बन जाता है । समाज ऐसे व्यक्तियों से गौरवान्वित होता है । ऐसे विरले व्यक्तियों में श्री केसरीमलजी सुराणा का व्यक्तित्व भी अनूठा है। उन्होंने अपना जीवन पर - कल्याणार्थ समर्पित कर रखा है। समाज के निर्माण में उन्होंने अपने आप को होम दिया है। सही मायने में उन्होंने नव-समाज के निर्माण में अपने आपको तिल-तिल करके जलाया है । For Private & Personal Use Only अरस्तू के शब्दों में " Life is movement" सक्रि यता ही जीवन है। सक्रिय यानी पुरुषार्थी व्यक्ति साधना के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच सकता है जबकि निष्क्रिय साधना से लड़खड़ाता हुआ एक दिन पतन के गर्त में गिर जाता है। सजीव बीज वट-वृक्ष का रूप धारण कर शत www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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