SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड ..... .. .............................................. दार बनाया गया था। ये दोनों पुत्र अपनी माता हाड़ी करमेती के साथ यहीं रहा करते थ । ऐसा प्रतीत होता है कि बाद में हाड़ा सूरजमल को उनकी जगह रणथम्भौर की रक्षा का उत्तरदायित्व दे दिया गया था। राणा सांगा के बाद रतनसिंह चित्तौड़ का स्वामी बना । तुजके बाबरी' (बावर की आत्मकथा) में उल्लेख है कि रानी करमेती ने मेवाड़ का स्वामित्व अपने पुत्र विक्रमादित्य के लिये प्राप्त करने हेतु बावर की सहायता चाही थी और उसकी एवज में रणथम्भोर देने का प्रस्ताव किया था। किन्तु थोड़े ही समय बाद रतनसिंह की मृत्यु और विक्रमादित्य का मेवाड़ महाराणा बनने की घटनाएं हो गई। उधर रणथम्भौर भी मेवाड़ के आधिपत्य से निकलकर मुगलों के हाथों में चला गया । यह भी जानकारी मिलती है कि महाराणा उदयसिंह ने गद्दीनशीन होने के बाद भारमल परिवार की विशिष्ट सेवाओं के कारण वि० सं० १६१० में भारमल को एक लाख का पट्टा देकर प्रतिष्ठित किया था। ऐसी मान्यता है कि चित्तौड़ की तलहटी में पाडनपोल के पास भारमल की इस्तिशाला थी और ऊपर महलों के सामने तो परवाने के निकट उनकी हवेली थी। जनश्रुति के आधार पर यह मान्यता भी चली आयी है कि उदयपुर के महलों के निकट स्थित गोकुल चन्द्रमाजी के मन्दिर के पास भामाशाह का निवास था जो दीवानजी की पोल के नाम से प्रसिद्ध हुआ । उदयपुर के कुछ मील दूर स्थित सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल में जावर में मोती बाजार के निकट भामाशाह की हवेली होने तथा जावर माता के विशाल मन्दिर का भामाशाह द्वारा निर्मित किये जाने की भी मान्यता रही है। भामाशाह का जन्म सोमवार आषाढ़ शुक्ला १०, १६०४ वि० सं० (२८ जून, १५४७ ई०) को हुआ माना जाता है । इसके अनुसार भामाशाह प्रताप से सात वर्ष छोटे थे। भामाशाह के प्रारम्भिक जीवन के सम्बन्ध में अब तक कोई जानकारी नहीं हुई है । १५७२ ई० में महाराणा प्रताप के गद्दीनशीन होने के समय भामाशाह पच्चीस वर्ष के नवयुवक थे। उस समय तक सम्भवतः उनके पिता भारमल का देहावसान हो चुका था। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भारमल अपनी सेवाओं और स्वामिभक्ति के कारण महाराणा उदयसिंह के विश्वासपात्र प्रमुख राजकीय व्यक्ति हो गये थे; किन्तु उनको दीवान पद मिल गया हो, ऐसी जानकारी नहीं मिलती। वस्तुत: इस परिवार में यह पद भामाशाह को पहली बार मिला, जो निस्सन्देह ही उनके पिता भारमल द्वारा मेवाड़ राज्य को अर्पित उपयोगी सेवाओं के प्रभाव तथा नवयुवक भामाशाह की वीरता एवं प्रशासनिक क्षमता के कारण प्राप्त हुआ। ज्ञातव्य है कि चित्तौड़ पतन (१५६८ ई.) के बाद भामाशाह का परिवार भी महाराणा उदयसिंह एवं अनके सहयोगियों के साथ मेवाड़ का स्वतन्त्रता संघर्ष जारी रखने हेतु एवं तदर्थ संकटों एवं आफतों से पूर्ण जीवन-यापन करते हुए अपना सर्वस्व त्याग एवं बलिदान करते हुए, पर्वतीय इलाके में चला गया या। इस बात की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती कि महाराणा प्रताप ने भामाशाह को कब दीवान पद पर आसीन किया। फिर भी अन्य ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह निर्णय करना सही प्रतीत होता है कि हल्दीघाटी युद्ध के बाद जब महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए लम्बे काल तक कठिन छापामार युद्ध चलाने तथा मेवाड़ के सम्पूर्ण जनजीवन, अर्थव्यवस्था तथा प्रशासनिक-व्यवस्था को दीर्घकालीन स्वतन्त्रता संघर्ष के लिए सामरिक आधार (War Footing) पर संचालित करने का निश्चय किया, उस समय तथा उसके बाद जो नई व्यवस्थाएँ एवं परिवर्तन किये, तब भामाशाह को भूतपूर्व प्रधान रामा महासाणी के स्थान पर राज्य के प्रशासन के सर्वोच्च पद पर दीवान (प्रधान) का उत्तरदायित्व दिया गया। उस समय तक भामाशाह की आयु तीस वर्ष से अधिक हो चुकी थी। वह हल्दीघाटी के युद्ध में अपना शौर्य, साहस और वफादारी प्रदर्शित कर चुके थे। इतिहास इस बात का साक्षी है कि भामाशाह के सम्बन्ध में महाराणा प्रताप का निर्णय सर्वथा १. कविराजा श्यामलदास : वीर विनोद, भाग २, पृ० २५२ २. तुजके बावरी (अंग्रेजी अनुवाद) पृ० ६१२-१३ ३. बलवन्तसिंह मेहता का लेख-कर्मवीर भामाशाह, महाराणा प्रताप स्मृति ग्रन्थ (सं० डॉ० देवीलाल पालीवाल), पृ० ११४ ४. कविराजा श्यामलदास : वीर विनोद, भाग २, पृ० २५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy