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________________ बलिदान और शौर्य को विभूति भामाशाह १११ .......................................................................... सही एवं दूरदर्शितापूर्ण सिद्ध हुआ। भयानक संकटों एवं कठिन संघर्षों के दौरान प्रताप के अविचल एवं वफादार सहयोगी के रूप में भामाशाह इतिहास में विख्यात हो गये हैं। दीर्घकालीन स्वातन्त्र्य-संघर्ष के दौरान भामाशाह एक कुशल योद्धा, सेनापति, संगठक एवं प्रशासक सिद्ध हुए। भामाशाह को प्रधान बनाये जाने के सम्बन्ध में निम्न कहावत प्रचलित है भामो परधानो करे, रामो कोदो रद्द । धरची बाहर करण नूं, मिलियो आया मरद्द ॥' हल्दीघाटी के इतिहास-प्रसिद्ध युद्ध में भामाशाह और उनके भाई ताराचन्द के मौजूद होने का स्पष्ट उल्लेख तवारीखों में मिलता है। वे महाराणा प्रताप की सेना के हरावल (अग्रिम भाग) के दाहिने भाग में थे। हल्दीघाटी में मुगल सेना की ओर से लड़ने वालों में 'मुन्तखाब उत तवारीख' इतिहास ग्रन्थ का लेखक मौलवी अल बदायूनी भी था। उसने लिखा है कि मेवाड़ी सेना के हावल के जबरदस्त आक्रमण ने मुगल सेना को ६ कोस तक खदेड़ दिया था। भामाशाह और उनके भाई ताराचन्द ने इस युद्ध में जो युद्धकौशल, वीरता और शौर्य प्रदर्शन किया, उसके कारण ही बाद में उनको राज्य शासन की बड़ी जिम्मेदारियाँ दी गई। हल्दीघाटी युद्ध के बाद प्रताप ने मुगलों से लड़ने के लिए दीर्घकालीन छापामार युद्ध का प्रारम्भ किया, जो लगभग १० वर्षों (१५७६-१५८६) तक चला। प्रताप के कृतित्व की यह चिरस्मरणीय सफलता थी कि उन्होंने न केवल तत्कालीन विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली बादशाह अकबर के मेवाड़ को आधोन बनाने के प्रयासों को निष्फल कर दिया, अपितु उन्होंने मुगल आधिपत्य से मेवाड़ के उस मैदानी इलाके को पुनः जीत लिया, जो अकबर ने १५६८ में चित्तौड़ पर आक्रमण के समय अपने आधीन कर लिया। प्रताप के इस दीर्घकालीन छापामार युद्ध की महत्त्वपूर्ण घटनाओं के साथ भामाशाह का नाम जुड़ा हुआ है। मेवाड़ी सेना के एक भाग का वह सेनापति था। भामाशाह अपनी सैन्य टुकड़ी लेकर मुगल-थानों एवं भुगल सैन्य टुकड़ियों पर हमला' करके मुगल जन-धन को बर्बाद करता था और शस्त्रास्त्र लूटकर लाता था। इसी भाँति उसने कई बार शाही इलाकों पर आक्रमण किये और लटपाट कर मेवाड़ के स्वतन्त्रता-संघर्ष के लिए धन और साधन प्राप्त किये । ये आक्रमण गुजरात, मालवा, मालपुरा और मेवाड़ के सरहद पर स्थित अन्य मुगल इलाकों में किये जाते थे। जब मुगल सेनापति कछवाहा मानसिंह मेवाड़ में मुगल थाने कायम कर रहा था उस समय प्रताप के ज्येष्ठ कुबर अमरसिंह के साथ भामाशाह मालपुरे धन प्राप्त करने में लगा हुआ था । वि० सं० १६३५ में मुगल सेनापति शाहबाज खाँ द्वारा कुम्भलगढ़ फतह करने के तत्काल बाद ही भामाशाह के नेतृत्व में मेवाड़ की सेना ने मालवे पर जो आकस्मिक धावा किया और मेवाड़ के लिए धन और साधन प्राप्त किये, वह इतिहासप्रसिद्ध घटना है।६ प्रसिद्ध है कि चूलिया में महाराणा प्रताप को भामाशाह ने पच्चीस लाख १. गौ० ही० ओझा : उदयपुर राज्य का इतिहास, भाग १, पृ० ४३१; कविराजा श्यामलदास : वीर विनोद, भाग २, पृ. १५८ २. वही ३. भामाशाह को प्रधान बनाने के साथ ताराचन्द को मुगल साम्राज्य की सीमा से सटे हुए महत्त्वपूर्ण इलाके गोड़वाड़ का शासक नियुक्त किया गया था। ४. ओझा-उदयपुर राज्य का इतिहास, भाग १, पृ०४६; मुशी देवीप्रसाद प्र० च०, ४२, श्यामलदास : वीर __ विनोद, पृ० १६४ ५. महाराणा प्रताप स्मृति ग्रन्थ, पृ० ११५ ६. कविराजा श्यामलदास ने लिखा है कि शाहबाज खाँ द्वारा कुम्भलगढ़ फतह करने के उपरान्त महाराणा का प्रधान भामाशाह कुम्भलमेर की रैयत को लेकर मालवे में रामपुरे की तरफ चला गया जहाँ के राव दुर्गा ने उनको बड़ी हिफाजत के साथ रखा (वीर विनोद, भाग २, पृ० १५३) । भामाशाह ने उसी समय मुगलाधीन मालवे के इलाके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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