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________________ वैशाली-गणतन्त्र का इतिहास . ........................................................... ...... .... था। बहुमत द्वारा स्वीकृत निर्णय को 'ये भुय्यसिकम्' (बहुत की इच्छानुसार) कहा जाता था। मत-पत्रों को 'शलाका' तथा मत-पत्र गणक को 'शलाका-ग्राहक' कहा जाता था। अप्रासंगिक तथा अनर्थक भाषणों की शिकायत भी की जाती थी। __ श्री जायसवाल के मतानुसार- 'सुदूर अतीत (छठी शताब्दी ई० पू०) से गृहीत इस विचारधारा से 'एक उच्चतः' विकसित अवस्था की विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। इसमें भाषा की पारिभाषिकता एवं औपचारिकता विधि एवं संविधान की अन्तनिहित धारणाएँ उच्च स्तर की प्रतीत होती हैं। इसमें शताब्दियों से प्राप्त पूर्व अनुभव भी सिद्ध होता है। ज्ञप्ति, प्रतिज्ञा, गणपूरक, शलाका, बहुमत प्रणाली आदि शब्दों का उल्लेख, किसी प्रकार की परिभाषा के बिना किया गया है, जिससे इनका पूर्व प्रचलन सिद्ध होता है।" वैशाली-गणतन्त्र का अन्त वैशाली-गणतन्त्र पर मगधराज अजातशत्रु का आक्रमण इस पर घातक प्रहार था। अजातशत्रु को माता चेलना वैशाली के गणराजा चेटक की पुत्री थी, तथापि साम्राज्य विस्तार की उसकी आकांक्षा ने वैशाली का अन्त कर दिया । बुद्ध से भेंट के बाद मन्त्री वस्सकार को अजातशत्रु द्वारा वैशाली में भेजा गया। वह मन्त्री वैशाली के लोगों में मिलकर रहा और उसने उसमें फूट के बीज बो दिये। व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं तथा फूट से इतने महान् गणराज्य का विनाश हुआ। 'महाभारत' में भी गणतन्त्रों के विनाश के लिए ऐसे ही कारण बताए हैं। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा, "हे राजन् ! हे भरतर्षभ ! गणों एवं राजकुलों में शत्रुता की उत्पत्ति के मूल कारण हैं-लोभ एवं ईर्ष्या-द्वेष । कोई (गण या कुल) लोभ के वशीभूत होता है, तब ईर्ष्या का जन्म होता है और दोनों के कारण पारस्परिक विनाश होता है।" - वैशाली पर आक्रमण के अनेक कारण बताये गये हैं। एक जैन कथानक के अनुसार, सेयागम (सेचानक) नामक हाथी द्वारा पहना गया १८ शृंखलाओं का हार इसका मूल कारण था। बिम्बसार ने इसे अपने एक पुत्र वेहल्ल को दिया था परन्तु अजातशत्रु इसे हड़पना चाहता था। वेहल्ल हाथी और हार के साथ अपने नाना चेटक के पास भाग गया। कुछ लोगों के अनुसार, रत्नों की एक खानि ने अजातशत्रु को आक्रमण के लिए ललचाया । यह भी कहा जाता है कि मगध-साम्राज्य तथा वैशाली गणराज्य की सीमा गंगा-तट पर चुंगी के विभाजन के प्रश्न पर झगड़ा हो गया । अस्तु, जो भी कारण हो, इतना निश्चित है कि अजातशत्रु ने इसके लिए बहुत समय से बड़ी तैयारियां की थीं। सर्वप्रथम उसने गंगा-तट पर पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) की स्थापना की। जैन विवरणों के अनुसार, यह युद्ध सोलह वर्षों तक चला, अन्त में वैशाली-गणतन्त्र मगध साम्राज्य का अंग बन गया। __ क्या वैशाली गणराज्य के पतन के बाद लिच्छवियों का प्रभाव समाप्त हो गया? इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक हो सकता है, परन्तु श्री सालेतोर (वही, पृ०५०८) के अनुसार “बौद्ध साहित्य में इनका सबसे अधिक उल्लेख हुआ है, क्योंकि इतिहास में एक हजार वर्षों से अधिक समय तक इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही।" श्री रे चौधुरी के अनुसार, “ये नेपाल में ७वीं शताब्दी में क्रियाशील रहे। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त, “लिच्छवि-दोहित्र' कहलाने में गौरव का अनुभव करते थे।" २५०० वर्ष पूर्व महावीर-निर्वाण के अनन्तर, नवमल्लों एवं लिच्छवियों ने प्रकाशोत्सव तथा दीपमालिका का आयोजन किया और तभी से शताब्दियों से जैन इस पुनीत पर्व को 'दीपावली' के रूप में मानते हैं। कल्प-सूत्र के शब्दों में, "जिस रात भगवान महावीर ने मोक्ष प्राप्त किया, सभी प्राणी दुःखों से मुक्त हो गये। काशी-कौशल के अठारह संघीय राजाओं, नव मल्लों तथा नव लिच्छवियों ने चन्द्रोदय (द्वितीया) के दिन प्रकाशोत्सव आयोजित किया ; क्योंकि उन्होंने कहा- 'ज्ञान की ज्योति बुझ गई है, हम भौतिक प्रकाश से संसार को आलोकित करें।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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