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________________ Jain Education International कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ षष्ठ खण्ड XXXXXX २५०० वें महावीर - निर्वाणोत्सव के सन्दर्भ में आधुनिक भारत वैशाली से प्रेरणा प्राप्त कर सकता है । अनेक सांस्कृतिक कार्य-कलाप वैशाली पर केन्द्रित हैं। इसी को दृष्टिगत करके राष्ट्रकवि स्व० श्री रामधारीसिंह दिनकर ने वैशाली के प्रति श्रद्धांजलि निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत की है XX वैशाली जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता । जिसे ! ढूंढ़ता देश आज, उस प्रजातन्त्र की माता ॥ रुको एक क्षण, पथिक ! यहाँ मिट्टी को सीस नवाओ । राज-सिद्धियों की सम्पत्ति पर फल पढ़ाते जाओ। एवं लोभः क्षोभदः स्पष्टमेव नानारूप: प्राचिनां वर्ततेऽव | कि तत्पापं न जायेत लोभाद, दुस्त्याज्योऽयं सर्वथानर्थकारी ॥ - वर्तमान शिक्षा प् (श्री चन्दन मुनि विरचित) लोभ संसार में प्राणियों को क्षुब्ध करता रहता है। वह कौनसा पाप है, जो लोभ से उत्पन्न नहीं होता ? उत्पन्न होते हैं। लोभ सदा ही अनर्थ छोड़ना बहुत ही कठिन है । अर्थात् सभी पाप लोभ करता है किन्तु इसे F For Private & Personal Use Only • X www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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