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________________ हिन्दी के नाटकों में तीर्थंकर महावीर ६६१ -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-............................................. ...... जैसा कि ऊपर कहा गया है, नाटककार कतिपय सन्दर्भो की संयोजना जनश्रुतियों के आधार पर करता है यथागोशालक को भिक्षावृत्ति में सड़े चावल की प्राप्ति, सम्भयक तथा महावीर का चोरी में पकड़ा जाना, फांसी देते समय रस्सी का टूट जाना इत्यादि । जमालि महावीर का विरोधी था और उसने बहुरत सम्प्रदाय को स्थापित किया। तपस्या के तेरहवें वर्ष महावीर को ज्ञान मिला और वे "जिन" बने । वे अनवरत तीस वर्षों तक धर्मोपदेशक की भांति घूमते रहे और बहत्तर वर्ष की आयु में दक्षिण बिहार में 'पावा' नामक स्थान में उनका निर्वाण हुआ। ये सभी घटनाएँ इतिहास-सम्मत है। इस नाटक में ब्रजकिशोर "नारायण" जनश्रुतियों को अधिक महत्त्व दे गये हैं इसलिए वे सम्यक् परिवेश का निर्माण नहीं कर पाये । यदि वे महावीर के युग की संस्कृति, धर्म, समाज तथा अन्य परम्पराओं की पूर्व पीठिका में उनके जीवन एवं कार्यकलापों को निरूपित करते तो नाटकीय मार्मिकता तथा प्रभावोत्पादकता में अवश्य ही नयी द्य ति आ जाती । वर्द्धमान महावीर द्वारा प्रदत्त उपदेशों में जैन-दर्शन के कतिपय लक्षण अवश्य उपलब्ध होते हैं । जैन संस्कृति नर के नारायणत्व में निष्ठा व्यक्त करती है । नाटक में महावीर आत्मा को 'मैं' शब्द का वाच्यार्थ निरूपित करते हैं और अहिंसा एवं सत्य के प्रति प्रतिबद्ध हैं। इसे ही नाटक का मूलधर्म तथा मुख्य स्वर स्वीकार किया जा सकता है। महेन्द्र जैन ने ‘महासती चन्दनबाला" नामक नाटक लिखा है जिसमें महावीर स्वामी की पुनीत तथा सात्विक नारी-आस्था को अभिव्यंजना मिली है। डॉ. रामकुमार वर्मा का नाम तथा हिन्दी के ऐतिहासिक नाटककारों में सर्वोपरि है। उन्होंने महापरिनिर्वाणोत्सव के समय 'जय वर्धमान" नामक नाटक लिखा जिसको सन् १९७४ में मेरठ के भारतीय साहित्य प्रकाशन ने प्रकाशित किया । यह एक सफल, सार्थक तथा रंगमंचीय नाटक है। इस नाटक के प्रारम्भिक दृश्यों में वर्धमान महावीर अपने हमजोली सखा विजय तथा सुमित्र से कहते हैं -विजय ! मनुष्य यदि हिंसा-रहित है, तो वह किसी को भी अपने वश में कर सकता है। बात यह है कि संसार में प्रत्येक को अपना जीवन प्रिय है, इसलिए जीवन को सुखी करने के लिए सभी कष्ट से दूर रहना चाहते हैं । जो व्यक्ति अपने कष्ट को समझता है, वह दूसरे के कष्ट का अनुभव कर सकता है और जो दूसरों के कष्ट का अनुभव करता है, वही अपने कष्ट को समझ सकता है। इसीलिए उसे जीवित रहने का अधिकार है, जो दूसरों को कष्ट न पहुँचाये, दूसरों की हिंसा न करे। जो दूसरों के कष्ट हरने की योग्यता रखता है, वही वास्तव में वीर है। भगवान् महावीर पर लिखित हिन्दी के नाटक-साहित्य में सर्वोपरि स्थान की कृति डॉ० रामकुमार वर्मा का प्रस्तुत नाटक है। जिनेन्द्र महावीर पर अनेक एकांकी लिखे गये जो कि या तो संकलित रूप में मिलते हैं अथवा पत्र-पत्रिकाओं के स्फुट साहित्य के रूप में। इनमें महावीर प्रकाशन, अलीगंज (एटा) द्वारा सन् १९७५ में प्रकाशित श्री वीरेन्द्र प्रसाद जैन के "वंदना" का उल्लेखनीय स्थान है क्योंकि यह एकांकी-संग्रह है। इनका ही एक अलग एकांकी-संग्रह "वरी महावीर" भी महत्त्वपूर्ण है । इन छोटे-छोटे एकांकियों के माध्यम से लेखक महावीर के दिव्य जीवन की महामहिम झांकियाँ प्रस्तुत की हैं। स्व. पं० मंगलसेन जैन के “महावीर नाटक" की भी अच्छी साहित्यिक स्थिति है। श्री घनश्याम गोयल द्वारा लिखित 'त्रिशला का लाल" एक सुन्दर प्रहसन है। डॉ० शीतला मिश्र ने मूल उपन्यासकार श्री वीरेन्द्र कुमार जैन के "अनुत्तर योगी" को मंचीय नाटक रूप प्रदान किया और उसे “आत्मजयी महावीर" के रूप में खेला गया। संगीत-नाटिकाओं के माध्यम से भी महावीर के व्यक्तित्व तथा कृतित्व को उपस्थित किया गया है। इस क्षेत्र में श्री ध्यानसिंह तोमर 'राजा' की कृति 'ज्योतिपुरुष महावीर' और जयंती जोशी की रचना 'प्रेम-सौरभ' बड़ो चचित रहीं। ०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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