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________________ हिन्दी के नाटकों में तीर्थकर महावीर 0 डा. लक्ष्मीनारायण दुबे रीडर, हिन्दी विभाग, सागर विश्वविद्यालय, सागर (म० प्र०) भगवान महावीर के जीवन चरित्र को केन्द्र में रखकर हिन्दी में ऐतिहासिक तथा सामान्य नाटक लिखे गये हैं। महावीर तथा बुद्ध का समय एक ही था अतएव, अनेक बौद्ध नाटकों में महावीर के युग का चित्रण मिलता है जिनमें रामवृक्ष बेनीपुरी के “तथागत", विश्वम्भर सहाय “व्याकुल" के "बुद्धदेव", बनारसीदास "करुणाकर" के "सिद्धार्थ बुद्ध", चन्द्रराज भण्डारी के "सिद्धार्थ कुमार या महात्मा बुद्ध", उदयशंकर भट्ट के “मुक्तिपथ”, रामवृक्ष बेनीपुरी के “अम्बपाली" और सियारामशरण गुप्त के "पुण्य पर्व" नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। छठी शताब्दी ई० पू० से भारतीय इतिहास के पुरातनकाल का श्रीगणेश होता है। यही वह कालखण्ड था जिसमें बुद्ध तथा महावीर का जीवन चरित्र आच्छादित हुआ था जिनका धार्मिक एवं सांस्कृतिक इतिहास पर विशिष्ट प्रभाव पड़ा । दोनों ने भारतीय मनीषा को नवल तथा युगांतरकारी अध्ययन से सम्पृक्त किया । इनके युग में सर्वत्र धार्मिक असहिष्णुता फैली हुई थी। वैदिक धर्म के प्रति विद्यमान आस्था में विखण्डन आ चुका था। यज्ञ एवं बलि हीन दृष्टि से निरखे-परखे जा रहे थे । बुद्ध तथा महावीर में आश्चर्यजनक सादृश्य भाव दृष्टिगत होता है । बुद्ध और महावीर ने परिपाटीगत समाज व्यवस्था का डटकर विरोध किया था। महावीर और बुद्ध के युग की एक महान् घटना भारत में चार राज्यों- कौशाम्बी (वत्स), अवंति, कौशल तथा मगध-का उदय था। "प्रसाद" के "अजातशत्र" नाटक तथा गोविन्दवल्लभ पंत के "अन्तःपुर का छिद्र" में समकालीन राजनैतिक स्थितियों पर अच्छा प्रकाश मिलता है। तीर्थंकर महावीर के जीवन-चरित्र को लेकर हिन्दी में सन् १९५० में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नाटक स्व. ब्रजकिशोर "नारायण" ने “वर्धमान-महावीर" शीर्षक से लिखा है। इस नाटक में महावीर के जन्म से लेकर उनके महापरिनिर्वाण तक की घटनाओं को संयोजित किया गया है। चौबीसवें तीर्थंकर के निजी जीवन के साथ उनकी धार्मिक मान्यताओं को भी नाटकीय रूप में प्रस्तुत किया गया है। यद्यपि प्रस्तुत नाटककार ने अपनी भूमिका में इतिहास को यथासम्भव सुरक्षित रखने का दावा किया है परन्तु जनश्रुतियों को भी पर्याप्त मात्रा में आधार बनाया गया है । वास्तव में महावीर हमारे समक्ष एक ऐतिहासिक चरित्र के रूप में संस्थित हैं। डॉ० रायचौधरी ने "प्राचीन भारत का राजनैतिक इतिहास" में महावीर की मां त्रिशला (विदेह कन्या) को वैशाली के नरेश चेटक की भगिनी स्वीकार किया है। नाटक के अन्य पात्र नन्दिवर्धन, पत्नी यशोदा, पुत्री प्रियदर्शना, गोशालक, अयंपुल हस्तिपाल, सुचेता आदि सभी जैन ग्रन्थों के आधार पर निर्मित किये गये हैं। नाटककार श्वेताम्बर ग्रन्थों पर अधिक निर्भर प्रतीत होता है। वर्धमान के उत्पन्न होने पर उनके पिता द्वारा प्रजा से कर न लेना, ज्योतिषी द्वारा पुत्र के श्रमण बन जाने की भविष्यवाणी और तीस साल तक वैवाहिक गृहस्थ जीवन बिताने के बाद संन्यास ग्रहण कर लेना आदि ऐसी घटनाएँ जो प्राय: इसी रूप में भगवान बुद्ध के साथ भी सम्प्रक्त है। इस नाटक में यह प्रतिपादित है कि गोशालक शुरू में महावीर का शिष्यत्व स्वीकार करता है परन्तु एक दिन उनकी परीक्षा लेने के विचार से कुछ प्रश्न पूछता है और जब वे ठीक निकलते हैं तो आक्रोश में आकर उनसे पार्थक्य कर लेता है और आजीवक-सम्प्रदाय की स्थापना करता है। --0 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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