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________________ Jain Education International ६६२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड रेडियो रुपक के रूप में महावीर को आकाशवाणी के स्वर-तरंगों पर थिरकाने का श्रेय कुथा जैन को है। भारतीय ज्ञानपीठ ने “वर्धमान रूपायन" के नाट्य रूपक को प्रकाशित किया। इसमें रेडियो रूपक के रूप में 'मान स्तम्भ", छन्द-नृत्य-नाटिका के रूप में 'दिव्य ध्वनि' और मंच नाटक के रूप में 'वीतराग' संकलित हैं। उपरलिखित पुस्तक ( सन् १९७५) महावीर निर्वाण-शताब्दी वर्ष की एक उल्लेखनीय कृति है। ये तीनों रूपक विभिन्न महोत्सवों पर मंच पर खेले जाने वाले योग्य नाट्य रूपक हैं जिनका सम्बन्ध भगवान् महावीर के अलौकिक जीवन, उपदेश तथा सिद्धान्तों के विश्वव्यापी प्रभाव से है । ये कथ्य तथा शैली- शिल्प में सर्वथा नूतन हैं। इनमें रंग-सज्जा और प्रकाश छाया के प्रयोगों की चमत्कारी भूमिका का निर्वाह किया गया है। इनमें कुछ जैन के काव्य-सौष्ठव का निखार भी द्रष्टव्य है । विदुषी लेखिका की भाषा परिमार्जित तथा शैली सधी हुई है। तीर्थंकर महावीर स्वामी के जीवन की दिव्यता, उनकी कठोर तपस्या-साधना, वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं चिरंतन - परहित के आलोक से मण्डित प्रेरक उपदेशों को इस पुस्तक में परम अनुभूतिमयी एवं आत्मीय अभिव्यंजना मिली है। उपर्युक्त तीनों नाट्य रचनाओं में 'दिव्य ध्वनि' (संगीत-नृत्य-नाटिका) का सर्वोपरि स्थान है। इसमें महावीर की स्वामी जीवन-साधना तथा उनके उपदेशों को चिरंतन महत्त्व तथा सर्वयुगीन भावना के साथ अत्यन्त कलात्मक रूप में समुपस्थित किया गया है। यह गागर में सागर है । इसका प्रथम दृश्य उदात्त तथा महान् है। इसकी कतिपय पंक्तियाँ अधोलिखित हैं 1 शाश्वत है यह सृष्टि, द्रव्य के कण-कण में रूपों का वर्णन । कालचक्र चलता उस युग के सभ्यता ऋषभनाथ पहले अनादि से, रचता युग, करता परिवर्तन । विधायक, आत्म साधना के अन्वेषक । तीर्थकर, धमण धर्म के आदि प्रर्वतक उपर्युक्त पुस्तक की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और सारगर्भित है । उसमें बौद्धिकता तथा आधुनिकता से समन्वित अनेक प्रकरणों की विवेचना की गयी है । श्रीमती कुथा जैन के शब्दों में ही हम कह सकते हैं : इसलिए ये रचनाएँ अपनी खूबी और खामियों सहित यदि पठनीय और मंचीय दृष्टि से सफल हुईं तो समझँगी कि भगवान् के चरणों में प्रेषित श्रद्धांजलि स्वीकृत हुई । इस दिशा में राजस्थान में अनेक सफलधर्मा बहुमुखी प्रयोग हुए हैं। इनमें डॉ० महेन्द्र भानावत हमारा विशेष ध्यान आकर्षित करते हैं। उन्होंने महावीर विषयक तीन पुतली नाटक लिखे हैं जिनके नाम हैं चंदन को वंदना', 'मंगलम् महावीरम्' तथा 'परमु पालणिये' । 'चंदन को वंदना' मासिक 'श्रमणोपासक' (२० अप्रेल, १९७५) में प्रकाशित हुआ था । इसमें छः दृश्य हैं और महावीर के नारी- उद्धार के प्रसंग को मुख्यता मिली है । 'मंगलम् महावीरम्' को हरियाणा के मासिक 'जैन साहित्य' (नवम्बर, १९७५ ) ने प्रकाशित किया । 'परमु पालणिये' राजस्थानी रचना है और इसे 'वीर निर्वाण स्मारिका' (जयपुर सन् १६७५) ने प्रकाशित किया। इस प्रकार नाटक के जितने वर्ग श्रेणी तथा विधाएं हो सकती है उनमें तीर्थकर महावीर चित्रित तथा अभिव्यंजित किये गये हैं महावीर विषयक नाट्य साहित्य का पठनीय, सैद्धान्तिक तथा मंत्रीय सभी दृष्टि से उपयोग है । नाटक का सम्बन्ध आँखों और अनुकरण से होता है और वह रस निष्पत्ति का सशक्त माध्यम है। इस दृष्टि से महावीर विषयक हिन्दी का नाट्य साहित्य एक ओर वाङ्मय की श्रीवृद्धि करता है, तो दूसरी ओर हिन्दी के रंगमंच को सम्पुष्ट तथा समृद्ध बनाता है और धर्मप्राण जनता में पुनीत तथा सात्त्विक भावों का संचार करता है । COO For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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