SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1025
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .६५८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड शीलकथा आदि, कुछ की रचना दार्शनिक या आध्यात्मिक विषयों के आधार पर हुई है, जैसे-चेतन कर्म चरित, शत अष्टोत्तरी, पंचेन्द्रिय सवाद, मधु बिन्दुक चौपई, सूआ बत्तीसी आदि । ___ यह भी स्मरणीय है कि जिस काल में इन प्रबन्धकाव्यों का प्रणयन हुआ, वह काल हिन्दी में रीतिकाल के नाम से प्रसिद्ध है । इस युग में श्रृंगारपरक मुक्तक काव्य की सृष्टि अपने उत्कर्ष पर थी। बहुत थोड़े प्रबन्धकाव्यों का उदय अपने अस्तित्व की सूचना दे रहा था। ऐसे समय में वस्तु एवं शिल्प विषयक अनेक विशिष्टताओं से सम्पुटित अनेक प्रबन्ध कर्ताओं की रचना एक आश्चर्य की बात है । आलोच्य प्रबन्ध काव्यों में दो प्रमुख महाकाव्य है(१) पार्श्वपुराण और (२) नेमीश्वररास । उक्त दोनों महाकाव्य के लक्षणों की कसौटी पर प्रायः पूरे उतरने वाले काव्य हैं। ये महान् नायक, महदुद्दे श्य, श्रेष्ठ कथानक, वस्तु-व्यापार-वर्णन, रसाभिव्यंजना, उदात्त शैली आदि की दृष्टि से पर्याप्त सफल हैं। एकार्थकाव्यों में कवि लक्ष्मीदास का यशोधर चरित एवं श्रेणिक चरित, अजयराज का नेमिनाथ चरित, रामचन्द्र बालक का सीताचरित आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ये काव्य चरित काव्यों की परम्परा के प्रतीत होते हैं, जिनमें प्रबन्धत्व के साथ-साथ कथाकाव्य एवं इतिवृत्तात्मक कथा के लक्षण भी विद्यमान हैं। आलोच्य युग में रचे गये खण्डकाव्यों की संख्या ही सर्वाधिक है । जहाँ महाकाव्य और एकार्थकाव्य प्रायः पुराण, चरित, चौपाई और रास नामान्त हैं, वहाँ खण्डकाव्य कथा, चरित, चौपाई, मंगल, ब्याह, चन्द्रिका, वेलि, बारहमासा, संवाद तथा छन्द संख्या (शत अष्टोतरी, सूआ बत्तीसी, राजुल पच्चीसी) आदि अनेक नामान्त हैं। इन खण्डकाव्यों के प्रतिपाद्य विषय अनेक हैं और उनमें प्रयुक्त शैलियाँ भी अनेक हैं । इन खण्डकाव्यों में भाव प्रधान खण्डकाव्यों की संख्या काफी है । ये अनुभूति की तीव्रता से सम्पुटित हैं, हमारे हृदय को छूते हैं और अधिक समय तक रसमग्न रखते हैं। इनमें प्रयुक्त अधिकांश छन्दों एवं ढालों का नाद-सौन्दर्य सहृदयों को विमोहित करता है। इस प्रकार के खण्डकाव्यों में आसकरण कृत नेमिचन्द्रिका, विनोदीलाल कृत राजुल-पच्चीसी, नेमि-ब्याह, नेमिनाथ मंगल, नेमि-राजुल बारहमासा संवाद, जिनहर्ष कृत नेमि-राजुल बारहमासा आदि उल्लेखनीय हैं। कुछ ऐसे खण्डकाव्य भी हैं, जो वर्णनप्रधान या घटनाप्रधान हैं। बंकचोर की कथा (नथमल), वर्णनप्रधान तथा चेतनकर्मचरित (भैया भगवतीदास) घटनाप्रधान खण्डकाव्य कहे जा सकते हैं। __समन्वयात्मक खण्डकाव्यों में भारामल्ल कृत शील कथा, भैया भगवतीदास विरचित सूआ-बत्तीसी, मधुबिन्दुक चौपाई, एवं पचेन्द्रिय-संवाद सुन्दर बन पड़े हैं। वस्तुत: खण्डकाव्य के क्षेत्र में भैया भगवतीदास एवं विनोदीलाल को अधिक प्रसिद्धि मिली है। भैया ने पांच खण्डकाव्यों (शत अष्टोत्तरी, चेतनकर्मचरित, मधु-बिन्दुक चौपाई, सूआ बत्तीसी और पंचेन्द्रिय संवाद) का प्रणयन किया है। इन पाँचों खण्डकाव्यों का कथापट झीना है, किन्तु काव्यात्मक एवं कलात्मक रंग गहरा है। साध्य एवं साधन दोनों दृष्टियों से भगवतीदास के खण्डकाव्य और कामायनी (प्रसाद) एक ही परम्परा के काव्य हैं । अन्तर मात्र इतना ही है कि भगवतीदास की कृतियाँ सीमित लक्ष्य के कारण खण्डकाव्य हुई, वहाँ प्रसाद की कृति उद्देश्य की महत्ता के कारण महाकाव्य हो गयी। भगवतीदास महाकाव्य की रचना न करने पर भी महाकवि के गौरवभागी हैं।' भैया कवि के अतिरिक्त विनोदीलाल के खण्डकाव्य भी भाव, भाषा एवं शैली की दृष्टि से उत्कृष्ट कोटि के हैं । आलोच्य प्रबन्धकाव्यों की रचना का उद्देश्य भी विचारणीय है। ध्यान रखने की बात यह है कि वह काल १. डॉ. सियाराम तिवारी : हिन्दी के मध्यकालीन खण्डकाव्य, पृ० ३६५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy