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________________ -. -. - . -. - . -. -. ............................................... जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबंध-काव्य 0डॉ० लालचन्द जैन हिन्दी विभाग, बनस्थली विद्यापीठ, वनस्थली (राज.) भारतीय वाङमय के विकास में जैन कवियों का योगदान अविस्मरणीय है। जिस प्रकार भारतीय धर्मों में जैन धर्म एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, उसी प्रकार भारतीय साहित्य में जैन साहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें सन्देह नहीं कि जैन धर्म एक प्राचीन धर्म है और इस धर्म के बहुत से कर्णधार साहित्य के प्रणेता भी रहे हैं तथा अनेक साहित्यकार अपनी धार्मिक आस्थाओं को लेकर चले हैं। इस प्रकार जैन साहित्यकार अतीतकाल से ही अपनी मनीषा एवं भावुकता का परिचय देते रहे हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि जैन साहित्यकार भारत की विविध भाषाओं और साहित्य की विविध विधाओं में साहित्य का सृजन करते रहे हैं । जिस प्रकार उन्होंने भारत की अनेक भाषाओं में साहित्य की रचना की, उसी प्रकार ब्रजभाषा में भी की। ब्रजभाषा में उनके द्वारा प्रभूत परिमाण में काव्य-सृष्टि हुई है। उसमें भी यद्यपि मुक्तक काव्य का प्राचुर्य है, किन्तु प्रबन्धकाव्यों की भी एक विशिष्ट भूमिका है। इन प्रबन्धकाव्यों के अन्तर्गत महाकाव्य और खण्डकाव्य के अतिरिक्त एकार्थ काव्य भी उल्लेखनीय हैं। ___ आलोच्य प्रबन्धकाव्यों में पार्श्वपुराण (भूधरदास), नेमीश्वरदास (नेमिचन्द्र) जैसे महाकाव्य, सीता चरित (राम चन्द्र बालक), श्रेणिक चरित (लक्ष्मीदास), यशोधरचरित (लक्ष्मीदास), यशोधरचरित चौपई (साह लोहट) जैसे एकार्थकाव्य, बंकचोर की कथा (नथमल), आदिनाथ बेलि (भट्टारक धर्मचन्द्र), रत्नपाल रासो (सूरचन्द), चेतनकर्म चरित (भैया भगवतीदास), मधु बिन्दुक चौपई (भैया भगवतीदास), नेमिनाथ मंगल (विनोदीलाल), नेमि राजमती बारहमासा सवैया (जिनहर्ष), नेमि-राजुल बारहमासा (विनोदीलाल), शत अष्टोत्तरी (भैया भगवतीदास), नेमि ब्याह (विनोदीलाल), पंचेन्द्रिय संवाद (भैया भगवतीदास) राजुल पच्चीसी (विनोदीलाल) सूआ बत्तीसी (भैया भगवतीदास), नेमिचन्द्रिका (आसकरण), शीलकथा (भारामल्ल), सप्तव्यसन चरित (भारामल्ल), निशिभोजन-त्याग कथा (भारामल्ल) नेमिचन्द्रिका (मनरंगलाल) आदि खण्डकाव्य ब्रज प्रबन्धकाव्य-शृंखला की महत्त्वपूर्ण कड़ियाँ हैं। उपर्युक्त प्रबन्धकाव्यों के अतिरिक्त, पर्याप्त संख्या में, अनूदित प्रबन्धकाव्य भी उपलब्ध होते हैं, जैसे-धर्मपरीक्षा (मनोहरलाल), प्रीतकर चरित (जोधराज गोदीका), पाण्डव पुराण (बुलाकीदास), धन्यकुमार चरित (खुशालचन्द्र), जीवंधर चरित (दौलतराम कासलीवाल), श्रेणिक चरित (रत्नचन्द), वरांगचरित (पाण्डे लालचन्द्र), जिनदत्त चरित (वख्तावरमल) आदि । यदि हम अनूदित प्रबन्धकाव्यों को छोड़ दें तो भी यह कहना चाहिए कि मौलिक प्रबन्धकाव्य भी संख्या में कम नहीं हैं और उनमें नामकरण, विषय एवं शैली आदि की दृष्टि से विविधता परिलक्षित होती हैं। नामकरण की दृष्टि से ये रचनाएँ चरित, पुराण, कथा, वेलि, मंगल, चन्द्रिका, बारहमासा, संवाद, छन्द-संख्या आदि अनेक नामान्त हैं, जो अपने विविध रूपविधानों का संकेत करती है। विषय के विचार से भी ये रचनाएँ कई प्रकार की हैं। इनमें कुछ पौराणिक हैं, यथा-सीता चरित, श्रेणिक चरित, नेमीश्वर रास आदि, कुछ धार्मिक हैं, जैसे—बंकचोर की कथा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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