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________________ ६३४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड ........................................................................... (८) लौटने पर नगर में स्वागत-रत्नशेखर एवं रत्नवती के रत्नपुर आने पर उनका भव्य स्वागत होत है।' चित्तौड़ पहुँचने पर रत्नसेन एवं पद्मावती का भव्य स्वागत होता है। (E) नायक पराक्रम-वर्णन-रत्नशेखर व रत्नसेन दोनों कुशल योद्धा हैं । रत्नसेन कुम्भलनेर के राजा देवपाल पर आक्रमण कर विजयश्री का वरण करता है। रत्नशेखर कलिंगराज पर आक्रमण कर विजय प्राप्त करता है। (१०) नाम साम्य-रत्नशेखरकथा एवं पद्मावत के नायकों के नाम समान हैं । रत्नशेखरकथा के नायक का नाम रत्नशेखर है तथा पद्मावत के नायक का नाम रत्नसेन है। दोनों में लक्ष्मी नामक कन्या का उल्लेख है। रत्नशेखरकथा में मन्त्री मतिसागर की पत्नी एवं यक्ष की पुत्री का नाम लक्ष्मी है। पद्मावत में समुद्र-पुत्री लक्ष्मी का उल्लेख आया है। इस प्रकार कथानक के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट होता है कि दोनों कथानक बहुत मिलते-जुलते हैं। रत्नशेखरकथा की रचना पद्मावत से पहले हुई थी। अत: इनके साम्य को देखकर यह सम्भावना की जा सकती है कि पद्मावत की रचना से पूर्व जायसी ने रत्नशेखरकथा को अवश्य पढ़ा या सुना होगा। दोनों कवियों ने अपने ग्रन्थ में इस कथानक को इतने रोचक एवं मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किया है कि उसे पढ़ते हुए पाठक मन्त्र-मुग्ध हो जाता है। २. प्रन्थकारों का व्यक्तित्व जितना साम्य रत्नशेखरकथा एवं पद्मावत की कथावस्तु में है उतना ही साम्य जिनहर्ष एवं जायसी के समय, स्थान, वर्णन-शैली इत्यादि में भी है, इनके प्रमुख साम्य इस प्रकार हैं (१) समय-जिनहर्षगणि एवं जायसी के समय में ज्यादा अन्तर नहीं है। जिनहर्षगणि ने रत्नशेखरकथा की रचना ईस्वी सन् १४५५ (वि० सं० १५१२) में की, जायसी ने पद्मावत की रचना ईस्वी सन् १५४० में की। जिनहर्षगणि ने अपनी कृति में कहीं इसके रचना समय का निर्देश नहीं किया है। इनकी अन्य कृतियों के आधार पर इनका समय १५वीं शताब्दी ठरहता है। जायसी ने अपने काव्य में रचना समय का उल्लेख किया है। उसके आधार पर पद्मावत का रचनाकाल हिजरी संवत् ६४७ अर्थात् ईस्वी सन् १५४० सिद्ध होता है। इस प्रकार इनके समय में अधिक अन्तर नहीं है । (२) स्थान-जिनहर्षगणि ने अपने काव्य में रचना-स्थान का उल्लेख करते हुए लिखा है कि मैंने यह रचना चित्तौड़ में की है। यह राजस्थान में है। जायसी ने भी पद्मावत के रचना स्थान का उल्लेख करते हुए कहा है कि मैंने इसकी रचना जायसनगर में की है। डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने इस स्थान की पहचान रायबरेली के जायस नामक कस्बे से की है ।१ डा. रामचन्द्र शुक्ल, पं० सुधाकर द्विवेदी, डा० ग्रियर्सन, डा० माताप्रसाद गुप्त आदि विद्वान भी यही मानते हैं। ' (३) वर्णन-जिनहर्षगणि एवं जायसी ने अपने ग्रन्थों में स्थान-स्थान पर प्रवाहपूर्ण शैली में नगर-वर्णन, १. तओ राइणा महया रिद्धीए नयरप्पवेसो कओ।-पृष्ठ १६ २. बाजत गाजत राजा आवा । नगर चहुँ दिसि होई बधावा ।-४२६/१ ३. पद्मावत, ६४५/५ ४. रयणसेहरीकहा, पृ० २५ ५. रयणसेहरीकहा, पृ०८ ६. पद्मावत, ३६७/४ ७. डा० नेमिचन्द शास्त्री, प्राकृत भाषा एवं साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ०५११ ८. पद्मावत, २४१ ६. रयणसेहरीकहा, गाथा १४६, १५० १०. पद्मावत, २३।१ ११. वही, २३ चौपाई की टिप्पणी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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