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________________ रयणसेहरीकहा एवं जायसी का पद्मावत ६३३ . ..............................." (१) सौन्दर्य-श्रवण-रत्नशेखर नायिका के सौन्दर्य का वर्णन किन्नर युगल से सुनकर उस पर मुग्ध होता है। पद्मावत का नायक रत्नसेन भी तोते के मुख से नायिका पद्मावती के सौन्दर्य का वर्णन सुनकर प्रेम-विह्वल होता है । (२) सिंहलद्वीप की नायिका-रत्नशेखर की नायिका रत्नवती सिंहलद्वीप के जयपुर नगर के राजा जयसिंह की पुत्री है। पद्मावत की नायिका पद्मावती भी सिंहलद्वीप के ही सिंहलगढ़ के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री है। (३) नायक सिंहलद्वीप से अनभिज्ञ-दोनों काव्यों के नायकों को सिंहलद्वीप अज्ञात है। रत्नशेखर और मन्त्री रत्नदेव यक्ष की सहायता से रत्नवती का पता प्राप्त कर यक्ष को ही सहायता से वहाँ पहुँचते हैं तथा कामदेव के मन्दिर में ठहरते हैं ।५ रत्नसेन तोते के मार्गदर्शन में नाव से समुद्र पार कर सिंहलद्वीप पहुँचता है तथा शिब मंडप में रुकता है। (४) नायिका प्राप्ति के लिए योगी वेश-रत्नशेखर का मन्त्री नायिका की खोज करने जाता है और यक्ष की पूर्वभव की पुत्री लक्ष्मी से विवाह कर यक्ष की सहायता प्राप्त करता है तथा सिंहलद्वीप पहुँचकर रूप-परिवर्तनी विद्या से योगिनी का रूप धारण कर नायिका का पता लगाता है। तोते के मार्गदर्शन से रत्नसेन स्वयं योगी का वेष धारण कर नायिका की प्राप्ति के लिए निकलता है। (५) सखियों द्वारा नायक का सौन्दर्य वर्णन-रत्नवती की सखी नायक का सौन्दर्य देखकर नायिका से आकर कहती है कि मन्दिर में प्रत्यक्ष कामदेव के समान कोई राजा बैठा है। यह सुनकर नायक को देखने को लालायित नायिका वहाँ जाती है। पद्मावती की सखियाँ भी स्वामिनी को मन्दिर के पूर्व द्वार पर योगियों के ठहरने एवं उनके गरु को योगी वेश-धारी बत्तीस लक्षण सम्पन्न राजकुमार होने की सूचना देती है। यह सनकर नायिका बड़ा जाती है। (६) मिलन-स्थल-रत्नवती एवं रत्नशेखर का मिलन कामदेव के मन्दिर में होता है।" रत्नसेन एवं पद्मावती शिव मण्डप में मिलते हैं ।१२ (७) वियोग में अग्निप्रवेश-रत्नशेखर मन्त्री द्वारा दी गई सात माह की अवधि समाप्त होने पर नायिका के वियोग में अग्नि प्रवेश करना चाहता है। 3 रत्नसेन भी होश में आने पर नायिका को न देख उसके वियोग में अग्नि में प्रविष्ट होना चाहता है ।१४ १. रायावि......."जोइसरव्व तग्गयचित्तो झायन्तो न जम्पइ न हसइ न ससइ ।-पृ० २ २. सुनतहि राजा गा मरुछाई । जानहुं लहरि सुरुज के आई। पेम घाव दुख जान न कोई । जेहि लागे जाने पै सोई॥११६॥ १-२ ३. रयणसेहरीकहा-जिनहर्षगणि, सं० मुनि चतुरविजय, आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १६७४, पृ० ६ ४. पद्मावत—जायसी, टीका० डा. वासुदेवशरण अग्रवाल, साहित्य सदन, चिरगाँव, वि० सं० २०१२, २४१२, रयणसेहरीकहा, पृ० १६ ६. पद्मावत, १६०।४, १६२।८-६ ७. रयणसेहरीकहा, पृ० १० ८. पद्मावत, १२६६१-६ ६. रयणसेहरीकहा, पृ० १६ १०. पद्मावत, १६३१-६ ११. रयणसेहरीकहा, पृ० १७ १२. पद्मावत, १६४।६, १९५१ १३. ....."रायाणं च हुअवहस्स परिक्खणं दिन्तं पासई।-पृ० १५ १४. ककनूं पंखि जैसे सर गाजा । सर चढि तबहिं जरा चह राजा । २०५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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