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________________ ११४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय 'षष्ठस्तु भूरिभेदो देशविशोषादपभ्रंशः' और मार्कण्डेयका सताईस प्रकार के विभाजन का आधार हमें अपभ्रंश को देशभाषा मानने को बाध्य करता है. उनकी यह मान्यता कि अपभ्रंश आभीर, गुर्जर आदि विदेशी आक्रामकों की भाषा थी, पूरा ठीक नहीं लगता. हाँ, अपभ्रंश के विकास, विस्तार और प्रतिष्ठा में अवश्य इस समुदाय का हाथ रहा है, उससे इन्कार नहीं किया जा सकता. आरम्भ में अपभ्रंश को आभीरों की भाषा माना जाता था. 'आभीरोक्ति' या 'आभीरादिगिर:' का यही अभिप्राय है कि अपभ्रंश वह भाषा है जिसका काव्य में उस समय आभीरादि निम्नवर्ग के लोग प्रयोग करते थे. इसका यह अभिप्राय नहीं कि अपभ्रंश आभीर लोगों की निजी भाषा थी. या आभीरादि जन इस भाषा को अपने साथ कहीं से लाये. वास्तव में आभीर या उनके साथी जहां-जहाँ गये, उन्होंने वहीं की स्थानीय प्राकृत को अपनाया और उसमें निज स्वभावानुकुल स्वर या उच्चारण सम्बन्धी परिवर्तन कर दिये. आभीर-स्वभाव के कारण इसी परिवर्तित एवं विकृत अथवा विकसित भाषा को ही अपभ्रंश का नाम दिया गया है. इस प्रकार हमने देखा कि अपभ्रंश के साथ आभीरों का संबन्ध जुड़ा हुआ है, अत: अपभ्रंश के विकास और प्रसार को समझने के लिए इस जाति के इतिहास पर दृष्टिपात करना बहुत सहायक होगा. आभीर जाति का उल्लेख सबसे पहले महाभारत में मिलता है. नकुल के प्रतीची-विजय-प्रसंग में आभीरों को सिन्धु के किनारे रहने वाला कहा गया है. शल्य-पर्व में बलदेव की तीर्थ-यात्रा के संदर्भ में आता है कि राजा ने उस स्थान में प्रवेश किया, जहाँ शूद्र आभीरों के कारण सरस्वती नष्ट हो गई. जब अर्जुन यादवियों को लेकर द्वारका से वापिस लौटते हैं, तो दस्यु, लोभी और पापकर्मी आभीर हमला करके महिलाओं को छीन ले जाते हैं. अर्जुन के साहसपूर्ण जीवन में यही एक ऐसा प्रसंग है जब कि उसके विश्वविजयी गांडीव की कुछ भी न चल सकी. अन्यत्र उनको द्रोण के सुपर्णव्यूह में योद्धाओं की पंक्ति में रखा गया है. इन्हें शूद्र माना गया है. पाणिनि के समय में भी इन्हें 'महाशूद्र' कह कर पुकारा गया है. मनुस्मृति में आभीरों को ब्राह्मण पिता और अम्बस्थ माताओं से उत्पन्न माना है. इसी से जयचन्द विद्यालंकार इन्हें मारवाड़ व राजपूताने का मूल निवासी गिनते है.६ किंतु अधिकांश विद्वान् इन्हें भारत में बाहर से आने वाले वर्ग में सम्मिलित करते हैं. आचार्य केशवप्रसाद ने आभीरों के दो दलों की कल्पना की है. पहली बार जो आभीर आये, वे आर्यों की वर्णाश्रम व्यवस्था के भीतर ग्रहीत होकर 'शूद्राभीर' कहलाने लगे.१° दूसरा दल बाद में आया, वह उद्धत और लुटेरा था. इसलिये यह भारतीय संस्कृति में अन्तर्भुक्त नहीं हुआ. आगे यवन आक्रमण काल में वे सब इस्लाम धर्म में दीक्षित हो गये.'१ इन्हीं आभीरों की बोली स्थानीय भाषा का सम्बन्ध १. श्यामसुन्दरदासः हिन्दी भाषा, पृ० १८. २. हजारीप्रसाद द्विवेदीः हिन्दी साहित्य की भूमिका पृ० २४-२६ ३. महाभारत-पर्व २, अध्याय ३२, श्लोक १०. ४. महाभारत-पर्व ६, अध्याय ३७, प्रथम श्लोक. ५. बड़ी पर्व १६, अध्याय ७, श्लोक ४४-४७. ६. वही-पर्व ७, अध्याय २०, श्लोक ६. ७. वासुदेव शरण अग्रवाल: इण्डिया एज नोवन टू पाणिनि--पृ० ८० . It may be noted that katyayana knows of a special caste (jāti) called 'Mahsāudra', with its female 'Mahāsudri. The kasika explains the term to mean the 'Abhirās', regarded as higher Sudras. ८. मनुस्मृति, अध्याय १०, श्लोक १५. ६. देवेन्द्रकुमारः अपभ्रंशप्रकाश-पृष्ठ १७. १०. डा० गुणेः भविस्सयत्त कहा- भूमिका पृ० ५३. ११. देवेन्द्रकुमार : अपभ्रंशप्रकाश-पृ० १७. SAMEE H A IMERAMRITI Karary NI A UTHO FELLAMHANSVAI S ANATANTHIOCOINSOLUTATUENIJURS I NAMjhunTIMOHAMMAARECOMMEANIN... HARI HARIlahitto RimiMIYATARNIRary forg PAHELARAN INITIALATHMANJATT
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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