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________________ मुनि कान्तिसागर : अजमेर-समीपवर्ती-क्षेत्र के कतिपय उपेक्षित हिन्दी साहित्यकार : ८४५ Www भाग में कवि ने अजमेर के निकटवर्ती स्थानों का अच्छा परिचय दे दिया है. वहाँ की प्राकृतिक सुषमा और प्रेक्षणीय स्थानों के अतिरिक्त तत्रस्थ पुरातन जल व्यवस्था पर भी संकेत किया है. तारागढ़ के ऊपर जो पानी पहुंचाने की व्यवस्था थी, उसका कविताबद्धसजीव और सांगोपांग वर्णन इस रचना को छोड़ अन्य कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं हुआ. अतः प्रशस्ति का भाग पूरा उद्ध त कर दिया है. कृति का पूरा विवरण इस प्रकार है : मुहूर्त कोश आदि भाग श्रीगणेशाग नमः दोहा विधन विडारन सुषकरन सेवित सकल जिनेस । रिध सिध बर दे रिधु गवरीय नन्द गणेस ॥१।। गुरु सारद नारद समर सिध सनकादि सहाय । सह गण पंडित पय प्रणव मो द्यौ उकत उपाय ।।२।। छंद भंग दीरघ लघु न धरो मो पर रोस । कवि इणसुं लघुता करै करिहूं महूरत कोस ॥३॥ लगन वार ग्रह सात है रिष हैं अठावीस । तिनके नाम जू फेरव तौ हू म करौ रोस ॥४॥ अन्त अथ ग्रन्थ अोपमा कथन सवईया गिरह मैं मेर जैसे ग्रहां पजयर जैसे नागन मैं सै जैसे दनन मैं क्रीता हैं । देवन में इन्द्र जैसे नाषित मैं चन्द्र जैसे जतियन मैं हन जैसे सतीनमैं सीता हैं ।। रूप मैं राम जैसे करतामैं ब्रह्म जैसें ध्याननमै ईस जैसे ज्ञाननमें गीता है । तीरथमैं गंग जैसै सासत्तमैं जैस---------त वदीता है ।।१४।। बाल बुद्धि पिंगल जू लाड रिष तामें रिषनाम हूँ तें देख डरा धरो है । वसन जू वर्ण च्यार पवन अठार दूने में जतना कोय आंकों पोरस में भरा है।। रावत सवाई आंन प्रत अपंड भान सूरन सुभट थाट धनी जिनवरी है ।। कोट गढ नांहि षाई बेरी सब त्रास जाई ऐसौं जू नगर यारौ अंबर अरो है ।। चली नगर अजमेर हू तें पति मिलन चली नाल षाल पूत लेके चली एह लूनी है। षोह द्रह नीर वलें चालत जू वेग चल रूष न उबेरे मूल मारे धर धूंनी है ।। सागी फुनि सूकरी जू दोहू सोक आय दिली रोस जब धर्यो ताम भई रेल दूनी है। नदी के जू एक पार सिवको सुथान सोहै बैठे जडधार संभू देवल पताल जू । वडे वन वाडी बाग धुनि होत जा ल्यावत अनेक लोक फूलन की माला जू ।। आठौं गिन आठौं यांम सेवित सकल ताम देवन को देव एह प्रणमें भूपाल जू । गोरी पुंनि गंग सीस चांद पर चढ्यौ ईस मेटत अनंद अंग टलहें जवाल जू ।।१७।। नगर सौं पच्छिम नौं वनको सघन थांन मारन अढार वृच्छ बड़ी राजधानी है। वनकै जू मध्य ठौर षल नाल ताल भरै झील नर नारी जू जिहां विमल पांनी है। * Son * * * * * a * * was aire * * * Jain EdurenTTI . .. iiiiiiiiiii .... .... . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . OPIGBAR . . . . . . . . . . . . .10 . . . . . . .1 . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . dy.org . . . . . . ... . . . . . . ... T . . . . . . .
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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