SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 878
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि कान्तिसागर : अजमेर-समीपवर्ती क्षेत्र के कतिपय उपेक्षित हिन्दी साहित्यकार : ८४३ दोहा जय-जय मोहन मुरलिका अधर सुधाकर दांन । नखशिख कौं बनर्न करौं धरिकै तेरो ध्यान ।। अन्त भाग: ग्रंथ प्रशस्ति वर्णनम् नगधर कवि बरनन कियो नखशिख-शिखनख लाग । प्रति भूषन बरनन कियो मानहुँ उपमा बाग ।।१०३।। छियालीस उगनीस से संवत आश्विन मास । तिथि पून्यौं बनर्न कियो यह शृंगार सुरास ।।१०४।। इति श्रीमन्महाराजाधिराज श्रीपृथ्वीसिंहजी तद्वितीय पुत्र महाराजा श्रीजवानसिंहजी कृत नखशिख-शिखनख वर्णन संपूर्णम्. संवत १९४६ का पोस मासे शुभे शुक्लपक्षे तिथौ ६ भृगुवासरे लिखितं ब्राह्मण मथुरादासेन कृष्णगढ मध्ये श्रीरस्तु. धमार संग्रह प्रस्तुत कृति का संकलन जवानसिंह ने किया है. इस में निम्न कवियों की १०० धमारे संकलित हैं : "कृष्णजीवन, गोकुलचन्द, चतुर्भुजदास, गोविन्दस्वामी, माधौदास, जगन्नाथ कविराज, सुमति, गदाधर भट्ट, जनकृष्ण, आसकरन, शिरोमणि परमानन्द, सूरदास, जनतिलोक, गोपालदास, छीतस्वामी, विठ्ठल, मुरारिदास, जन रसिकदास, कृष्णदास, राघौदास,. जिस प्रकार जैनाचार्यों की पद्य मय पट्टावलियां पाई जाती हैं ठीक उसी प्रकार इनमें से कतिपय धमारों में वल्लभ कुल की पट्टावली दी गई है. इन में से कतिपय तो बल्लभ कुल के क्रमिक इतिहास पर प्रकाश डालती हैं." यज्ञनारायणसिंह जी---[राज्य काल सं० १९८३.६५]-ये किशनगढ़ की सांस्कृतिक परम्परा के अंतिम महाराजा थे. इनके बाद राजवंश में कवित्व प्रतिभा का अन्त सा हो गया. ये स्वयं बड़े अच्छे कवि और प्रतिभावान् व्यक्ति थे. इनने कई स्फुट पद, रसिया और सर्वया आदि लिखे हैं. इनकी कृतियों में केवल भक्तिपक्ष प्रधान नहीं है, साथ ही सैद्धांतिक भावभूमि भी बहुत ही पुष्ट रही है. वल्लभ वंशावली इनकी सुन्दर और ज्ञातव्यपूर्ण कविता है. सुना गया इनके समय में उत्सवादि खूब हुआ करते थे, बाहर से भी कलाप्रेमियों को अपने यहां आमन्त्रित कर उनका समुचित आदर करते थे. संगीत और साहित्य में इनकी विशेष अभिरुचि रहा करती थी. इनके दो रसिया इस प्रकार हैं : डफ काहे को बजावै छैला घर नेरो जब हौं मिलौंगी रसिया मोहि लरेगी कलह करेगी बहुतेरो। सास ननद सुन लख पावेगी छैला भरम धरेगी । यज्ञ पुरुष प्रभु तिहारी मिलन में बहुत परेगो उरझेरो ॥ नेरो मोहि राख पलंगवारे आव जो पोढो मैं पांव पलोटों विधना ढोरूं रतना रे । अपने हाथन तुमहि जिमाऊं बीच झपट ले नन्दवारे ।। यज्ञ पुरुष वल्लभ यही सुख दे और लगत फीके सारे । नानिंग-इनका परिचय प्राप्त नहीं है. केवल अनुमान लगाया जा सकता है कि ये किशनगढ के आश्रित या निवासी रहे होंगे. क्योंकि इनने सं० १७८७ में किशनगढ नरेश राजसिंह कृत [?] "राजा पंचानक कथा" की प्रतिलिपि की थी द WM NWAR AAC Jain Dainelibrary.org AN
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy