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________________ Jain Educ wwwwwwwwww ३६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय पढे चारण भाट बाहं उभारं लहै नेग नेगी विना वार पारं । सुनी बात जब नंदराय सबै गोकलं हर्ष बायो अथाहं ॥ रणबास जुक्तं बरसांन आए भयो चित्त चाह्यौ बजे है बधाए । जुथं- जुत्थ गोपी नृपं द्वार आ कर भेट लीने महा सोभ पावै ॥ चलें धाय धायं सुरंजी लगावें चितं मोद छाई हमें औ हसावें । मिले नंद भानं भए हैं बसाल मिल्यो मेल चाह्यौ रंगीन रसालं ॥ बरसान मानौ दुधं मेह वर्षे धन्यं कीर्तिकु बेतिहु लोक हर्षे । दधि दूध को दोंम च्यों भांन ठामं, रमैंके जमर्क करें बेल षामं ॥ बड़े भाग नेगी यह द्यौस पायो लली द्वै कुलंको कलसं चढायौ । भई स्वाम से है लाली की सगाई सुन सासरे पीहर सोभ पाई ।। अब विवाहं लली लाल केरो वृषभांनि हों सुकृतं जन्म केरो । दोदा कब होय जब महारंग की भीर । दंपति सेज पं देषि रचौं तसबीर | अब वह दिन बैठे स्फुट कविता-सं० १७८७ के गुटके में बांकी" छाप के कतिपय कवित्त प्रतिलिपित हैं. ये सब बांकांवती के ही जान पड़ते हैं. इनकी संख्या ६ है. आगे स्थान छुटा हुआ है. संभव है प्रतिलिपि करते समय छूट गये हों, एक कवित्त उद्धृत किया जा रहा है मैंन पिया के लगे तित ही उतही अबलं मन आप ढरौंगी । काजर टीकी करौं तिहंकी सषि सौतिन सौं कछु लाजि डरोगी || 'बांकी' रहौ सब ही जगसौं लषि प्रीतम कौं नित चित्त ठरौंगी । वाहि रची सुरुची हम हूं होती प्यारे की प्यारी सौं प्यार करेंगी । सुदरकुवरी बाई—ये उपर्युक्त बांकावती की पुत्री थी। इनका जन्म सं १७६१ कार्तिक शुक्ला है को हुआ था. यह भी अपने माता पिता के समान कवित्व-प्रतिभा से मंडित थीं. तात्कालिक राजकीय वैषम्य के कारण २१ वर्ष तक अविवाहित रहीं. सं० १८१२ में इनका विवाह रूपनगर के खीचीवंशीय राजकुमार बलवंतसिंह के साथ सम्पन्न हुआ. पर दुर्भाग्य इनका साथ नहीं छोड़ा. पितृगृह तो क्लेश का स्थान था ही पर अब तो स्वसुर-गृह भी अशान्ति का केन्द्र बन गया, कारण कि इनके (पति ? ) सिंधिया सरदारों द्वारा बन्दी बना लिए थे. बाद में मुक्त करवा दिये गये थे. इनकी प्राप्त समस्त रचनाओं का विवरणात्मक परिचय डा० सावित्री सिन्हा ने अपने 'मध्यकालीन हिन्दी कवयित्रियाँ' नामक शोध प्रबंध में दिया है. वहाँ ग्रन्थ रचना काल विषयक कतिपय भ्रांतियां हो गई हैं जिनका परिमार्जन प्रसंगवश कर देना आवश्यक जान पड़ता है. इसके पहिले मैं सूचित कर दूं कि सन् १९५४ में जब ग्वालियर में था तब वहाँ के साहित्यानुरागी श्री भालेरावजी के संग्रह में एक बड़ा चौपड़ा देखने में आया था जिसमें सुन्दरकुंवरि बाई के समस्त ग्रंथ प्रतिलिपित थे. मैंने उनका विवरण ले लिया, उसी के आधार पर यहाँ संशोधन प्रस्तुत किया जा रहा है. उपर्युक्त शोध-प्रबन्ध में भावनाप्रकाश का रचनाकाल सं० १८४५ माना गया है जो ठीक नहीं जान पड़ता, ग्वालियर वाली प्रति में प्रणयन समय सं १८४९ बताया गया है संवत यह नव दसैं गुणंचास उपरंत | साकै सग्रहसे पुनि चउद्दलही गमंत ॥ ForPrivate & Per www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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