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________________ मुनि कन्हैयालाल 'कमल' : प्रागम साहित्य का पर्यालोचन : ८२१ इसलिये समस्त आगमों की संक्षिप्त वाचना का एक संस्करण तय्यार किया गया. इस वाचना में-यत्र तत्र "जहा उववाइए" "जहा पन्नत्तीए" "जहा पन्नवणाए"-आदि लगा कर अनेक गमिक पाठ संक्षिप्त किये गये हैं. अतः इस वाचना को संक्षिप्त वाचना माना जाता है, कई विद्वानों की मान्यता है कि देवधि गणि क्षमाश्रमण ही इस वाचना के आयोजक थे. उस समय प्रत्येक श्रमण को यह लगन लगी थी कि आगमों की प्रतियाँ अल्प भार वाली बनें जिससे बिहार में हर एक श्रमण आगमों की कुछ प्रतियां साथ में रख सकें. इसलिये वे समान पाठों को बिन्दियां लगा कर लिखते थे. यह भी एक संक्षिप्त वाचना के लिये उपक्रम था, किन्तु इसका परिणाम श्रमणों के लिये अच्छा नहीं हुआ. नवदीक्षित श्रमण बिन्दी वाले पाठों की प्रतियों पर स्वाध्याय नहीं कर सके क्योंकि किस अक्षर से कितना पाठ बोलना यह अभ्यास के विना असंभव था. यदि आगमों के आधुनिक विद्वान् विस्तृत और संक्षिप्त वाचनाओं के संस्करण तय्यार करें तो यह बहुत बड़ी श्रुतसेवा होगी. उपलब्ध आगमों में संक्षिप्त और विस्तृत वाचना के पाठ सम्मिलित हैं अतः एक भी आगम ऐसा नहीं है जिसे विस्तृत या संक्षिप्त वाचना का स्वतंत्र आगम कहा जा सके. अब एक और वाचना की आवश्यकता है भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् ६८० वर्षों में ३-४ वाचनायें हुई किन्तु देवधि क्षमाश्रमण के पश्चात् इन १५०० वर्षों में संघ की ओर से सम्मिलित वाचना एक भी नहीं हुई. इस लम्बी अवधि में जनसंघ-श्वेताम्बर. दिगम्बर, यतिवर्ग, लोंकागच्छ, स्थानकवासी, तेरापंथी आदि अनेक भागों में विभक्त हो गया. दश वर्ष पश्चात् भ० महावीर को निर्वाण हुये २५०० वर्ष पूरे हो जायंगे अर्थात् सार्ध द्विसहस्राब्दी की स्मृति में श्वेताम्बर जैनों की समस्त शाखा-प्रशाखाओं की ओर से एक सम्मिलित आगमवाचना अवश्य होनी चाहिए और इसके लिये अभी से संयुक्त प्रयत्न होना चाहिए. आगमों के विलुप्त होने का इतिहास वीर निर्वाण संवत् १७० में अन्तिम चार पूर्वो का विच्छेद हुआ. १००० में पूर्व ज्ञान का सर्वथा विच्छेद हुआ. १२५० में भगवती सूत्र का ह्रास हुआ. १३०० में समवायांग का ह्रास हुआ. १३५० में स्थानाङ्ग का , १४०० में बृहत्कल्प और व्यवहार का ह्रास हुआ. . १५०० में दशाकल्प सूत्र का , १६०० में सूत्रकृताङ्ग का , पश्चात् आचारांग आदि का ह्रास क्रम से होता गया --तीर्थोद्गारिक प्रकीर्णक वीरात् ६८० वर्ष पश्चात् देवधिक्षमाश्रमण की अध्यक्षता में सभी आगम लिख लिये गये थे, यह एक ऐतिहासिक सत्य है. किन्तु नंदी सूत्र में आगमों के जितने पद लिखे हैं क्या वे सब लिखे गये थे ? यदि सब लिखे गये थे तो नंदी सूत्र में प्रत्येक अंग के जितने अध्ययन, उद्देशक, शतक, प्रतिपत्ति, वर्ग आदि लिखे हैं उतने ही उस समय थे या उनसे अधिक थे? अधिक थे तो लिखे क्यों नहीं गये ? ENINANININNININININENINININRNININANIना
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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