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________________ ८२० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-प्रन्थ : चतुर्थ अध्याय अनन्तरागम–सर्वज्ञ से प्राप्त होने वाला आगमज्ञान अनन्तरागम है. गणधरों के लिए अर्थागम अनन्तरागम रूप है. तथा जम्बूस्वामी आदि गणधरों के शिष्यों के लिए सूत्रागम अनन्तरागम रूप है. परम्परागम-साक्षात् सर्वज्ञ से प्राप्त न होकर जो आगमज्ञान उनके शिष्य प्रशिष्यादि की परम्परा से आता है वह परम्परागम है. जैसे जम्बूस्वामी आदि गणधर-शिष्यों के लिए अर्थागम परम्परागम रूप है. तथा इनके पश्चात् के सभी के लिए सूत्र एवं अर्थ दोनों प्रकार के आगम परम्परागम हैं. -अनुयोगद्वार प्रमाणाधिकारसूत्र १४४ सामायिक आदि ग्यारह अंग : अंग और उपांगसूत्रों के अनेक कथानकों में “सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ" ऐसा पाठ मिलता है किन्तु ग्यारह अंगों में प्रथम अंग का नाम आचारांग है और उक्त पाठ में ग्यारह अंगों में आदि अंग का नाम (प्रथम अंग) सामायिक अंग है ऐसा प्रतीत होता है. आचारांगनियुक्ति में आचाराङ्ग के अनेक नाम लिखे हैं. उनमें “सामायिक" नाम नहीं है. यदि अन्यत्र कहीं “सामायिक" नाम आचाराङ्ग का उपलब्ध हो तो यह पाठ संगत हो सकता है. यदि उक्तपाठ में “सामायिक" आवश्यक के प्रथम अध्ययन का नाम अभीष्ट है तो यह एक विचारणीय प्रश्न बन जाता है क्योंकि आवश्यक (आगम) अंगबाह्य है-और सामायिक आवश्यक का प्रथम अध्ययन ग्यारह अंगों में का आदि अंग कैसे माना जा सकता है. कल्प विधान के अनुसार भ० महावीर के शासन में श्रमणों के लिए "आवश्यक" अनिवार्य मान लिया गया था. फलस्वरूप आवश्यक कण्ठस्थ हुए विना उपस्थापना नहीं हो सकती है ऐसा नियम बन गया था. इसलिए सर्वप्रथम सामायिक आदि आवश्यकों का अध्ययन ग्यारह अङ्गों के अध्ययन से पहले करने का विधान बना था. सम्भव है उफ्त पाठ के सम्बन्ध में यही मान्यता रही हो. ऐसी स्थिति में "सामाइयमाइयाई एक्कारसअंगाई अहिज्जइ" का यही अर्थ समझना चाहिए कि कोई साधक सामायिक अर्थात् आवश्यक सूत्र के प्रथम अध्ययन से प्रारम्भ करके ग्यारह अङ्गों का अध्ययन करता है. भ० नेमिनाथ के अनुयायी मुनि "थावच्चापुत्र" के वर्णन में तथा अन्य कतिपय वर्णनों में भी ऐसा ही पाठ देखा जाता है, ऐसी स्थिति में उक्त सम्भावना कहाँ तक उचित है ? आगमविशारदों के सामने यह प्रश्न अन्वेषणीय है. आगमों की पांच वाचनाएँ प्रथमा वाचना :--आचार्य भद्रबाहु की अध्यक्षता में पाटलीपुत्र में हुई, इस समय समस्त श्रमणों ने मिलकर एकादश अङ्गों को व्यवस्थित किया. दृष्टिवाद इस समय विलुप्त हो चुका था. द्वितीया वाचना:-आर्य स्कन्दिल की अध्यक्षता में मथुरा में हुई. एकत्रित श्रमणों की स्मृति में जितना श्रुत साहित्य था वह व्यवस्थित किया गया. तृतीया वाचना:-आचार्य नागार्जुन की अध्यक्षता में वलभी में हुई. एकत्रित श्रमणों ने आगमों के मूलपाठों के साथ-साथ आगमों के व्याख्यासाहित्य की संकलना भी की. श्री कल्याणविजयजी महाराज का यह मत है, किन्तु कुछ विद्वानों का यह मत है कि आचार्य नागार्जुन की अध्यक्षता में "आगम" वाचना तो हुई किन्तु किस जगह हुई ? इसलिये कोई ठोस प्रमाण अब तक नहीं मिला. फिर भी आगमों की टीका में यत्र-तत्र 'नागार्जुनीयास्त्वेवं पठन्ति" ऐसा उल्लेख मिलता है अत: आचार्य नागार्जुन की अध्यक्षता में वाचना अवश्य हुई" यह निश्चित है. चतुर्थी वाचना:-देवधि गणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में वलभी में हुई. सम्मिलित श्रमणों की स्मृति में जितना श्रुत. साहित्य था सारा लिपिबद्ध किया गया. पञ्चमी वाचना:-आगमों को लिपिबद्ध करने में सबसे बड़ी कठिनाई आगमों के गमिक (समान) पाठों की थी HIRAM ian EdTOSवववववववववINESENINANINNINNI
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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