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________________ नेमिचन्द्र शास्त्री : संस्कृत कोषसाहित्य को आचार्य हेम की अपूर्व देन : ७६६ नक्षत्र के नौ नामों का निरूपण करते हुए उनकी व्युत्पत्तियाँ देकर अर्थ सम्बन्धी सूक्ष्मताओं पर बहुत सुन्दर प्रकाश डाला गया है. जो आकाश में गमन करे अथवा जिनकी प्रभा — कांति का संवरण कभी न हो वह नक्षत्र है. जो आकाश में तैरता है, वह तारका नक्षत्र है. जिसके द्वारा आकाश का अतिक्रमण किया जाता है वह तारा है. जिसमें प्रकाश विद्यमान है वह ज्योति, जिसमें क्रांति हो अथवा जो चमकता या टिमटिमाता हो वह भ है. आकाश में उड़ने के कारण उडु, ग्रहण होने के कारण ग्रह, रात्रि में प्रकाशित होने के कारण धिष्ण्य और सीधा गमन करने के कारण ऋक्ष अथवा अन्धकार का ध्वंस करने से ऋक्ष कहा जाता है. नक्षत्र के नामों की व्युत्पत्तियाँ अमरकोष की टीकाओं में भी आयी हैं, किंतु आचार्य हेम ने ऋक्ष, नक्षत्र और भ की व्युत्पत्ति में अपना एक नया दृष्टिकोण उपस्थित किया है. , (३) वेवेष्टि स्पाप्नोति विश्वं विष्णुहरति पा हरि हषीकाणामिन्द्रियाणामीशो वशिता हृषीकेशः प्रशस्ताः देशा सन्त्यस्य केशवः, इन्द्रमुपगतोऽनुजत्वाद् उपेन्द्रः, विश्वक् सर्वव्यापिनी विषूची वा सेनाऽस्य विष्वक्सेनः, नरा आपो भूतानि वातायते नारायणः, नरस्य अपत्यं नारायणः अधः कृत्वाऽन्द्रियाणि जातोऽयोः अयो याणां जायते प्रत्यक्षीभवति वा, अक्षजं ज्ञानमधोऽस्येति वा गां भुवं विन्दति गोविन्दः, मुञ्चति पापिनो मुकुन्दः, माया लक्ष्म्या धवो भर्ता माधवः मधोरपत्यं वा विश्वं विभर्ति विश्वंभरः, जयति दैत्यान् जिनः, त्रयो विशिष्टाः क्रमाः सृष्टिस्थितिप्रलयदणाः शक्तयोऽस्य त्रिविक्रमः त्रिषु लोकेषु विक्रमः पादविन्यासोऽस्येति वा जहाति मुचति पागुष्ठाद् गंगामिति जह्न, वनमालाऽस्त्यस्य वनमाली, पुण्डरीके इव अक्षिणी अस्य पुण्डरीकाक्षः (२।१३२) आचार्य हेम ने विष्णु के ७५ नाम बतलाये हैं और स्वोपज्ञवृत्ति में सभी नामों की व्युत्पत्तियां अंकित की गई हैं. उपर्युक्त सन्दर्भ में कुछ ही नामों की व्युत्पत्तियां दी जा रही हैं. इन व्युत्पत्तियों के अनुसार जो संसार को व्याप्त करता है, वह विष्णु है. पाप को नष्ट करने के कारण हरि, इन्द्रियों का विजयी होने के कारण हृषीकेश, प्रशस्त केशवाला होने से केशव, इन्द्र का अनुज होने से उपेन्द्र, विश्व व्यापिनी सेना रखने के कारण विष्वक्सेन, जल में रहने से नारायण, नर का पुत्र होने से नारायण, इंद्रियज्ञान को तिरस्कृत कर अतीद्रिय ज्ञान का धारी होने से अधोक्षज, पृथ्वी की रक्षा करने के कारण गोविंद, पाप को छुड़ाने से मुकुन्द, लक्ष्मी का पति होने से माधव, विश्व-संसार का भरण करनेवाला होने से विश्वंभर, दैत्यों को जीतने के कारण जिन, सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय रूप तीनों शक्तियों से युक्त होने से त्रिविक्रम अथवा तीनों लोकों में पादन्यास करने से त्रिविक्रम, पैर के अंगूठे से गंगा नदी को प्रवाहित करने के कारण जह्नः, वनमाला गले में रहने से वनमाली और पुण्डरीक के समान नेत्र होने से पुण्डरीकाक्ष विष्णु को कहा जाता है. विष्णु के नामों की इन व्युत्पत्तियों में इतिहास और संस्कृति की दृष्टि से अनेक नयी बातों का समावेश हुआ है. (४) शिषयते वर्णविवेको नया शिक्षा. कर्मो विरूपः प्रयोगः कल्प्यतेऽवगम्यतेऽनेन यः व्याकियन्यायन्ते शब्दा श्रनेन व्याकरणम्. छाद्यतेऽनेन प्रस्ताराद् भूरितिच्छन्दः ज्योतिषां ग्रहाणां गतिज्ञानहेतुर्ग्रन्थो ज्योतिः ज्योतिषम् गमादिभिनिर्वचनं निरुक्तिः निरुक्तम् (२1१६४). षडंग की व्युत्पत्तियां प्रस्तुत करते हुए आचार्य हेम ने षडंग का स्वरूप कितने स्पष्ट और विस्तृत रूप से उपस्थित किया है, यह सहज में जाना जा सकता है. जिसके द्वारा वर्णविवेकवर्णोच्चारण, वर्णों का स्थान, प्रयत्न आदि अवगत हो, उसे शिक्षा कहते हैं. कर्मों का सिद्धस्वरूप जिनके द्वारा ज्ञात किया जाय वे कल्प हैं. इससे स्पष्ट है कि कल्पसूत्रों की आधारशिला कर्मकाण्ड है तथा हिन्दूधर्म के समस्त कर्म, संस्कार, निखिल अनुष्ठान और समस्त संस्कृति एवं अशेष क्रियाकांड को समझने के लिए एकमात्र आधार ये कल्पग्रंथ ही हैं. प्रकृति और प्रत्यय के विभाग द्वारा शब्दों की व्याख्या करने को व्याकरण कहते हैं. धातु और प्रत्यय के संश्लेषण एवं विश्लेषण द्वारा भाषा के आन्तरिक गठन के विचार को भी इस व्युत्पत्ति में समेट लिया गया है. शब्दों की व्युत्पत्ति एवं उनकी प्राणवन्त प्रकिया के रहस्य का उद्घाटन भी उक्त स्वत्पत्ति में शामिल है. जिसके प्रस्तार से पृथ्वी को आच्छादित किया जा सके, उसे इन्द कहते हैं. इस व्युत्पत्ति में पिंगलाचार्य की समस्त भूमण्डल को व्याप्त करनेवाली कथा भी आ गई है. जिस ग्रंथ से ग्रहों की गति ओर स्थिति *** Jain Education Internatio *** *** *** Calibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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