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________________ ७१८ : मुनि श्रीहजारीमल रमृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय पाजामा, अंगरखा या बुर्का का नाम आप्रपदीन (३।३४२) आया है. इससे स्पष्ट है कि प्रसाधनसामग्री में पजामा भी आ चुका था. जालीदार कपड़े भी काम में लाये जाते थे, इन्हें शाणी और गोणी (३।३४३) कहा है. पैरों को मोजा या पैताबा पहनकर सजाया जाता था. अतः मौजा का नाम अनुपदीना (३१५७६) आया है. पुष्पों से भी शरीर का प्रसाधन किया जाता था, इस प्रसाधन के भी अनेक नाम आये हैं. गुलदस्ते भी उपयोग में लाये जाते थे. हेम के गुच्छों के नामों में आया हुआ गुलुञ्छ (४।१६२) शब्द गुलदस्ते का ही वाचक है. भाषाविज्ञानसम्बन्धी सामग्रो-भाषाविज्ञान को दृष्टि से यह कोश बड़ा मूल्यवान् है. आचार्य हेम ने इसमें जिन शब्दों का संकलन किया है, उन पर प्राकृत, अपभ्रंश एवं अन्य देशी भाषाओं के शब्दों का पूर्णत: प्रभाव लक्षित होता है. उसके अनेक शब्द तो आधुनिक भारतीय भाषाओं में दिखलायी पड़ते हैं. कुछ ऐसे शब्द हैं, जो भाषाविज्ञान के समीकरण, विषमीकरण आदि सिद्धान्तों से प्रभावित हैं. यहाँ उदाहरणार्थ कुछ शब्द उद्धत किये जाते हैं[१] पोलिका [३।६२]-गुजराती में पोणी, ब्रजभाषा में पोनी, और भोजपुरी में पिउनी तथा हिन्दी में पिउनी. [२] मोदको लडुकश्च [शेष ३।६४]-हिन्दी में लड्डू, गुजराती में लाडु, और राजस्थानी में लाडू. [३] चोटी [३।३३६] -हिन्दी में चोटी, गुजराती में चोणी, राजस्थानी में चोड़ी या चुणिका और भोजपुरी में चुटिया. [४] समो कन्दुकगेन्दुको [३।३५३] -हिन्दी में गेंद, ब्रजभाषा में गिन्द या गिंद, और भोजपुरी में गिंद या गेंद. [५] हेरिको गूढपुरुषः [३।३६७]-ब्रजभाषा में हेर या हेरना-देखना, गुजराती में हेर. [६] तरवारि [३।४४६] -ब्रजभाषा में तरवार, राजस्थानी और पूर्वी बोलियों में तलवार तथा गुजराती में तरवार. [७] जंगलो निर्जल: [४।१६]--ब्रजभाषा, हिन्दी और सभी देशी बोलियों में जंगल. [८] सुरुंगा तु सन्धिला स्याद् गूढमार्गों भुवोऽन्तरे [४१५१]-ब्रजभाषा, हिन्दी, गुजराती और सभी पूर्वी बोलियों में सुरंग. TE] निश्रेणी त्वधिरोहिणी [४७६]-ब्रजभाषा में नसेनी, गुजराती में नीसरणी, भोजपुरी में सीढ़ी, मगही में निसेनी तथा पाली में भी निसेनी रूप आया है. [१०] चालनी तितउ [४।८४] ब्रजभाषा, राजस्थानी और गुजराती में चालनी, हिन्दी में चलनी या छननी. [११] पेटा स्यान्मञ्जूषा [४।८१]-राजस्थानी में पेटी गुजराती में पेटी या पेटो और ब्रजभाषा में पिटारी, पेटी. [१२] परिवारः परिग्रहः [३।३७६]-हिन्दी में परिवार, पूर्वी बोलियों में परिवार और राजस्थानी में पडिवार या परिवाड. व्युत्पत्तिमूलक विशेषताएँ-[१] मंक्यते मण्ड्यते वपुरनेन मुकुरः, आत्मा दृश्यतेऽनेनात्मदर्शः, आदृश्यते रूपमस्मिन्नादर्श:, दृप्यन्त्येऽनेन सुवेषा इति दर्पणः [३।३४८]-जिसके द्वारा शरीर को सुशोभित किया जाय अर्थात् जिसमें अपनी प्रतिकति का अवलोकन कर मण्डन--प्रसाधन किया जाय उसे मुकुर, जिसमें अपना स्वरूप देखा जाय उसे आत्मदर्श, पूर्ण रूप से अच्छी तरह जिसमें अपना रूप देखा जाय उसे आदर्श और जिसमें अपनी प्रतिकृति देखकर अपने वेष को सुसज्जित किया जाय तथा आकर्षक बनाया जाय उसे दर्पण कहते हैं. दर्पण में अपनी वेष-भुषा देखकर गौरवजन्य आनन्दानुभूति होती है, यह दर्पण शब्द की व्युत्पत्ति से स्पष्ट है. मुकुर, आत्मदर्श, आदर्श और दर्पण ये चारों दर्पण के पर्यायवाची शब्द हैं, किन्तु व्युत्पत्ति की दृष्टि से इन शब्दों के अर्थ में मौलिक अन्तर है. (२) नक्षति गच्छति व्योमनीति नक्षत्र', न क्षदति प्रभामिति नक्षत्रम्. तरतीति तारका, तरन्त्यनया तारा द्योतते ज्योतिः भाति भं, भा विद्यतेऽस्येति वा इयति खमिति उडुः, गृह्यते इति ग्रहः, धुष्णोति प्रगल्भते निशीति विष्ण्यम्. अर्जते गच्छति ऋतं, ऋणोति तम इति वा (२।२१) * lio * * * * * * * * n e- * * * * * * one monale Maint a T . . . . . . . . . i . . . . l.. . . . . . . ... . . . . . . ................ . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ..rla . . . . . . . . b haistsI... . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ......... . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ......... . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . d.dinelibrary.org . . . . . .
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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