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________________ ७०४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय वर्तनों का कोई आभास नहीं था, किन्तु दुर्दैव के कारण हमारी यह अवनत अवस्था हुई है. अतः तू अब भी समझ और सावधान हो. विन्ध्य पर्वतमालाकी सघन वनाच्छादित सुरम्य उपस्थली में यह पुण्यक्षेत्र जीवनदायिनी सलिला वेत्रवती से सटी हुई डेढ़दो मील लम्बी पहाड़ी के ऊपर एक चौकोर लम्बे मैदान के भाग में फैला हुआ पग पग पर अनुपम सांस्कृतिक जीवनकला की विभूतियों के मनमोहक दृश्य उपस्थित करता है. जिसमें तल्लीन होकर एक बार दर्शक-हर्ष विषाद, सुखदुःख, मोह-मत्सर काम आदि के संस्कार रूपी बन्धनों से मुक्त होकर प्रकृति की गोद में विलीन सा हो जाता है और अपने सारे अहंकारमय ऐहिक अस्तित्व को भूल कर अपने आप को न्यूनतम से न्यूनतम रजकण से भी तुच्छ पाता है. प्रशान्त मुर्तियां, वेदिका, स्तम्भ, तोरण, दीवारें और अन्य कलात्मक अलंकरण, जो यशस्वी शिल्पियों द्वारा चमत्कारपूर्ण सामग्री निर्मित की गई है वह अपनी मूक प्रेरणा द्वारा भिन्न-भिन्न विचार-मुद्राओं में आध्यात्मिक जीवन की झांकी का सन्देश प्रस्तुत करती है. कहीं चामत्कारिक मूर्ति-निर्माणकला के छिटकते हुए सौंदर्य से देदीप्यमान प्रतीकों, तीर्थकर पार्श्वनाथ की विशालकाय मूर्तियों और अगणित अर्हन्तों की विचारप्रेरक मुद्राओं वाले प्रतिबिम्ब उस वनस्थली की स्तब्ध शांति के मूक स्वर में आनन्दविभोर दिखाई देते हैं और कहीं चक्रेश्वरी, पद्मावती, ज्वालामालिनी, सरस्वती आदि जिनशासन रक्षिका देवियों की मुद्राएं, अद्भुत भावप्रेरक अनेक देवियों के अलंकृत अवयव अपनी भाव-भंगियों से मानो सुषमा ही उड़ेल रहे हैं. . गुप्तकालीन मंदिर—किले के दक्षिण-पश्चिमी कोने पर वराह का प्राचीन मन्दिर खंडितावस्था में मौजूद है. उसके निर्माण के सम्बन्ध में निश्चित कुछ नहीं कहा जा सकता. नीचे के मैदान में गुप्तकालीन विष्णुमन्दिर बना हुआ है, यह पूर्ण रूप से सुरक्षित है, भारतीय कलाविद् इसके कारण ही देवगढ़ से परिचित हैं. यह मन्दिर गुप्त काल के बाद किसी समय बना है. कहा जाता है कि गुप्तकाल में मदिरों के शिखर नहीं बनाये जाते थे, परन्तु इसमें शिखर होने के शिह्न मौजूद हैं. मालूम होता है कि इसका शिखर खंडित हो गया है. यह मंदिर जिन पाषाणखण्डों से बना है, वे अत्यन्त कलापूर्ण और सुन्दर है. इस मंदिर की कला के सम्बन्ध में प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् स्मिथ साहब कहते हैं किदेवगढ़ में गुप्तकाल का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण और आकर्षक स्थापत्य है वह देवगढ़ का पत्थर का बना हुआ एक छोटा सा मंदिर है. यह ईशा छठी अथवा पांचवीं शताब्दी का बना है. इस मंदिर की दीवारों पर जो प्रस्तरफलक लगे हैं उनमें भारतीय मूर्तिकला के कुछ बहुत ही बढ़िया नमूने अंकित हैं.२ इस मंदिर की खुदाई के समय जो मूर्तियां मिलीं, उनमें से एक में पंचवटी का वह दृश्य अंकित है जहां लक्ष्मण ने रावण की बहन सूर्पनखा की नाक काटी थी. अन्य एक पाषाण में राम और सुग्रीव के परस्पर मिलन का अपूर्व दृश्य अंकित है. एक अन्य पत्थर में राम लक्ष्मण का शबरी के आश्रम में जाने का दृश्य दिखाया गया है. इसी तरह के अन्य दृश्य भी रहे होंगे. रामायण की कथा के यह दृश्य अन्यत्र मेरे अवलोकन में नहीं आये. यहीं पर नारायण की मूर्ति है. और एक पत्थर में गजेन्द्रमोक्ष का दृश्य भी उत्कीर्ण है. दक्षिण की ओर दीवार में शेषशायी विष्णु की मूर्ति है, जो बड़े आकार के लाल पत्थर में खोदी गई है. इससे यह मंदिर भी अपना विशेष महत्त्व रखता है। जैन गन्दिर और मूर्तिकला-देवगढ़ में इस समय ३१ जैन मन्दिर हैं जिनकी स्थापत्यकला मध्यभारत की अपूर्व देन है. इनमें से नं० ४ के मन्दिर में तीर्थंकर की माता सोती हुई स्वप्नावस्था में विचार-मग्न मुद्रा में दिखलाई गई है. नं० १. देखो, भारतीय पुरातत्व की रिपोर्ट दयार.म साहनी. 2. The most important and interesting stone temple of Gupta age is one of moderate dimensions at Deogarh, which may be assigned to the first half of sixth or perhaps to the fifth Century. The panels of the walls contain some of the finest specimens of Indian sculpture. MANDU Jain. S orary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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