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________________ आचार्य मुनि जिनविजय : वैशालीनायक चेटक और सिंधुसौवीर का राजा उदायन : ५८७ उदायन की मृत्यु की यह परम्परा अति प्राचीन है—ऐसा लगता है. क्योंकि आवश्यक सूत्र नियुक्ति में इस कथा का मूल उपलब्ध होता है. इस सूत्र की नियुक्ति की रचना भद्रबाहु ने की है, ऐसा कहा जाता है, और परम्परा उनका 'अभयकुमार भगवान् से प्रश्न करता है- 'भगवन् ! आपने कहा था कि यह प्रतिमा पृथ्वी में दब जायगी तो कब प्रकट होगी ?' भगवान् बोले --- 'हे अभय ! सौराष्ट्र, लाट, और गुर्जर देश की सीमा पर अनहिलपुर नाम का एक नगर बसेगा. वह नगर आर्यभूमि का शिरोमणि, कल्याण का स्थान और आर्हत धर्म का एक छत्र रूप तीर्थ होगा. वहां के चैत्यों की रत्नमयी निर्मल प्रतिमाएं नंदीश्वर आदि स्थानों की प्रतिमाओं की सत्यता को बताने वाली होंगी. प्रकाशमान सुवर्णकलशों की श्रेणियों से जिनके शिखर अलंकृत हैं ऐसे मानों साक्षात् सूर्य ही आकर विश्राम कर रहा हो ऐसा वह नगर सुशोभित होगा. वहां के लोग प्रायः श्रावक होंगे और अतिथिसंविभाग करके ही भोजन करेंगे. दूसरों की संपत्ति में ईर्ष्या रहित, स्वसंपत्ति में सन्तुष्ट और सदा पात्रदान में रत ऐसी वहां की प्रजा होगी. अलकापुरी के यक्षों की तरह वहां के बहुत से श्रावक धनाढ्य होंगे. वे अर्हद्भक्त बन कर सातों क्षेत्रों में धन का व्यय करेंगे. सुषमा काल की तरह वहां के लोग पर धन और परस्त्री से विमुख होंगे. हे अभयकुमार ! मेरे निर्वाण के बाद सोलह सौ उनसत्तर वर्ष के बीतने पर उस नगर में चौलुक्य वंश में चन्द्र के समान प्रचण्ड पराक्रमी अखण्ड शासन वाला कुमारपाल नाम का धर्मवीर, युद्धवीर, दानवीर राजा होगा. वह महात्मा पिता की तरह प्रजा का पालक होगा और उन्हें समृद्धिशाली बनाएगा. सरल होने पर भी अति चतुर, शान्त होने पर भी आज्ञा देने में इन्द्र के समान, क्षमावान् होने पर भी अघृष्य, ऐसा वह राजा चिरकाल तक इस पृथ्वी पर राज्य करेगा. जैसे उपाध्याय अपने शिष्यों को विद्वान् और शिक्षित बनाता है वैसा ही वह अपनी प्रजा को भी विद्वान् सुशिक्षित और धर्मनिष्ठ बनाएगा. वह शरणार्थियों को शरण देने वाला होगा. परनारियों के लिये वह सहोदर भाई होगा. धर्म को प्राण और धन से भी अधिक मानने वाला होगा. पराजमी, धर्मात्मा, दयालु एवं सभी पुरुषगुणों से श्रेष्ठ होगा. उत्तर में तुर्कस्तान तक, पूर्व में गंगा नदी तक, दक्षिण में विन्ध्यगिरि तक और पश्चिम में समुद्र तक की पृथ्वी पर उसका अधिकार होगा. एक समय वह वज्र शाखा और चान्द्रकुल में उत्पन्न हेमचन्द्र नाम के आचार्य को देखेगा. उन्हें देखते ही वह इतना प्रसन्न होगा जैसे गरजते मेघ को देख कर मयूर प्रसन्न होते हैं. वह उनके दर्शन के लिये जाने की शीघ्रता करेगा. जब आचार्य चैत्य में बैठकर धर्मोपदेश करते होंगे, उस समय वह अपने मंत्रीमण्डल के साथ उनके दर्शन के लिये आएगा. प्रथम देव को वन्दन कर तत्त्व को नहीं जानता हुआ भी अत्यन्त शुद्ध सरल हृदय से आचार्य को नमस्कार करेगा. प्रीतिपूर्वक आचार्य का उपदेश सुन कर सम्यक्त्वपूर्वक श्रावक के अणुव्रतों को स्वीकार करेगा. तत्व का बोध प्राप्त कर वह श्रावक के आचार का पारगामी होगा. राजसभा में बैठा होने पर भी धर्मचर्चा ही करेगा. प्रायः निरन्तर ब्रह्मचर्यं रखने वाला वह राजा अन्न, फल, शाक आदि के विषय में भी अनेक नियमों को ग्रहण करेगा. साधारण स्त्रियों का तो उसे त्याग ही रहेगा किन्तु अपनी रानियों तक को वह ब्रह्मचर्य का उपदेश करेगा. जीव अजीव आदि तत्वों का जानकार वह राजा दूसरों को भी तत्व समझाएगा – सम्यक्त्वी बनाएगा. अर्हद्धर्मद्वेषी ब्राह्मण भी उसकी आज्ञा से गर्भ श्रावक बनेंगे. देवपूजा और गुरुवन्दन करके वह राजा भोजन करेगा. अपुत्र मरे हुए का धन वह कभी नहीं लेगा. वस्तुतः विवेक का यही सार है. विवेकी व्यक्ति सदा तृप्त ही रहते हैं. वह स्वयं शिकार नहीं करेगा और उसकी आज्ञा से दूसरे राजागण भी शिकार छोड़ देंगे. उसके राज्य में मृगया तो दूर रही, मक्खी मच्छर को भी कोई मारने की हिम्मत नहीं करेगा. उसके अहिसात्मक राज्य में जंगल के प्राणी मृग आदि एक दम निर्भीक होकर इधर उधर घूमा करेंगे. उसके राज्य में अमारी घोषणा होगी. जो जन्म से मांसाहारी होगे वे भी उसकी आज्ञा से दुःस्वप्न की तरह मांस खाना ही भूल जावेंगे. अपने पूर्वजों के रिवाज के अनुसार जिस मद्य का श्रावक भी पूरी तरह से त्याग नहीं कर सके उसका वह अपने समस्त राज्य में निषेध करेगा. यहां तक कि कुम्भकार भी मद्य पात्र बनाना छोड़ देंगे. मद्यपान से जिन लोगों की संपत्ति क्षीण हो गई है, ऐसे लोग भी मद्य - ध-निषेध से उसके राज्य में पुनः सम्पत्तिमान् Jain Education International & Personal Use Caly www.elibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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