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________________ 0300300300300303003030 30 30 30 30 3063 ३० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : प्रथम अध्याय जो उपदेशक श्रोताओं के जीवन में आने वाली समस्याओं, परिस्थितियों जीवनप्रणालियों और मानसिक स्थितियों से अनभिज्ञ रहता है; उसका उपदेश अन्य किन्हीं दृष्टियों से चाहे जितना प्रशस्त क्यों न हो पर दह जीवन नहीं बदल सकता. श्रोता के जीवन को प्रभावित नहीं कर सकता इसीलिए जीवन की दिशा नहीं बदलती. संसार का लक्षण परिवर्तन है. यहाँ स्थायित्व के नाम पर क्या स्थिर है ? स्नेह और ममत्व भी बहकाए और बँटाए बट जाते हैं. स्नेह का स्रोत, एक दिशा में बहते - बहते दूसरी दिशा में बहने लगता है. बाल्यावस्था में माता के प्रति रहा हुआ ममत्व युवावस्था में पत्नी पर केन्द्रित हो जाता है. पुत्री पर टिका स्नेह पुत्र प्राप्त होते ही दिशा बदल कर पुत्र में सिमट जाता है. एक दिन पुत्र में सिमटी ममता भी स्वार्थ से निचुड़ने लगती है. स्नेह बँट जाता है. धन लुट जाता है. समय सरक जाता है ! समय की करवट से, सब कुछ उलट-पुलट हो जाता है. मनुष्य का, न स्नेह स्थायी है न सलोने अलोने सुनहरे स्वप्न ! जगमें स्वार्थ प्रबल है. स्वार्थ के कच्चे धागों में रागी, वैरागी, स्यागी, तपस्वी, कवि, विद्वान् और मुनि सब जकड़े हुए है. संसार की प्रत्येक माता में विश्वमातृत्व विद्यमान है. नारी के आँसुओं में दाहक ज्वाला नहीं, पावस की शीतलता है. आँसू नारी के हृदय का अमृत है ! आँसू उसके मातृत्व का प्रमाण है. धान्य की लहलहाती खेती कितनी सुखद है ! पता है आँखों का यह सौन्दर्य उपलब्ध करने के लिए किसान ने कितना पसीना बहाया है ? संस्कृत जीवन के सम्बन्ध में भी यही बात है. किसी भी कार्य के प्रति दृढ़ निष्ठा का होना आवश्यक है. निष्ठा प्रत्येक मुन्दर कार्य के नीम की ईंट है. भारत का अध्यात्मवाद अरण्य में भटकने की बात नहीं कहता, वह यह भी नहीं कहता कि सांसारिक कार्य में अभिरुचि मत रखो ! वह नहीं कहता है कि नारी नरक की खान है. वस्तु जैसी है, उसे वैसा ही समझ लो पर वैराग्य व संन्यास के नाम पर अरण्य में ठोकर खाते हुए मत फिरो !! शरद ऋतु में बादल बरसता नहीं केवल गरजता है. अनुदार व्यक्ति काम कम करता है. बोलता भर है. इसके विपरीत सज्जन या उदार कहता कुछ नहीं बरसता जाता है या काम किए जाता है. कर्म करो ! आसक्त मत बनो !! रुचि अवश्य दिखाओ पर अहंकार त्याग दो. कर्म करना तुम्हारा काम है, उसमें सौन्दर्य खोजना, उसका मूल्यांकन करना - ये सब दूसरों के काम हैं । तुम अपनी सीमा में काम करो वे तुम्हारा मूल्य अवश्य अंकित करेंगे । तोता रामायण की चौपाइयाँ और गीता के श्लोक रट लेता है परन्तु इतने मात्र से वह बिल्ली से अपनी रक्षा नहीं कर सकता. साधु, महंत, पण्डित और मुल्ला भी भाषण देकर जनता के मस्तिष्क में विचारों का छोंक लगा सकते हैं परन्तु माया के पंजे से वे अपनी रक्षा नहीं कर सकते. हमारे कुछ धर्माचार्यों ने भारतीय जनता को स्वार्थमय बना दिया है. वे निरंतर यही उपदेश करते हैं कि संसार स्वार्थमय Jain Education International QUAN For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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