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________________ वचन संचय ! [स्वामी जी महाराज के द्वारा विभिन्न समयों और स्थलों पर उच्चारित कतिपय वचनों का संक्षिप्त संचयन प्रस्तुत किया जा रहा है. विचारशीलों के लिये ये विचार चिनगारियाँ हैं. चिनगारियों को चेता लेने वाला उनका चेला है. श्रद्धाशीलों के लिये ये जीवनदीप हैं. दीप में भक्ति का स्नेह उंडेलने वाला उनका श्रद्धालु भक्त हैं ! व्याख्यान मंच पर इनकी विवेचना करने वाला उनका व्याख्यानी शिष्य है !! ] भाग्य से संघर्ष करो ! संघर्ष से भाग्य को संतोष मिलता है. भागने से भाग्य की क्रूरता बढ़ती है. भागने से जीवन की समस्याएँ नहीं सुलझती. अतः संघर्ष करते रहो. संघर्ष ही जीवन है ! जीवन संयम के लिए है. जीना है तो संयम के लिये जीओ. भोग में रोग के कांटे हैं. योग में जिन्दगी के सुगंधित फूल हैं. फूलों का उपहार उसी को मिलता है जो भोग की मेंड़ पर बैठकर भी तप व संयम की आंच तापता रहता है. मैं अब सबका बनना चाहता हूँ. मैं सबका हूँ. सब मेरे हैं. विश्व-प्रेम मेरा सर्वोपरि काम्य है. पर-उपकार, हृदय का सहज गुण है. कोई यह कहता हो कि मैंने अमुक को दुःख से उबारा है तो यह उसका दम्भ है. अतीत और भविष्य के बारे में सोचना छोड़ो ! वर्तमान पर सोचना और चलना सत्य है। अतीत और भविष्य के काल्पनिक जाल में मन को फंसाने से आत्मा गुरु (कर्मनिबद्ध) होती है. नारी, माँ, बहिन, सेविका, पत्नी और पुत्री है. परन्तु इन सब रूपों में वह केवल वात्सल्य की अमर मूर्ति ही है. वात्सल्य के अभाव में नारी केवल शून्य है. वात्सल्य-भावना नारी को नारायणी बनाती है. कानून या सिद्धांत के सिकंजे शरीर को जकड़ सकते हैं ! हृदय इनकी पकड़ से परे है ! पीड़ा की अनुभूति व सहानुभूति के भाव हृदय की वसुन्धरा में अंकुरित होते हैं ! मस्तिष्क, मनुष्य को तर्क की कंटीली झाड़ियों में उलझाता है ! हृदय की पुकार मनुष्य को करुणा के आनन्द-लोक में पहुँचाती है ! LIKE Vote Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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