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________________ गोपीलाल अमर : दर्शन और विज्ञान के आलोक में पुद्गल द्रव्य : ३८७ जाति के होते हैं और जिनमें किसी अन्य जाति का मिश्रण स्वभावत: नहीं होता. ऐसी अमिश्रित जाति के पुद्गल-पर्यायों को ही विज्ञान में तत्त्व कहा जाता है. मौलिक दृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि इन तत्त्वों के अन्वेषण की प्रेरणा वैदिक दर्शन के पञ्च महाभूतों वाले सिद्धान्त से मिली है. तत्त्वों का अन्वेषण दिनोंदिन होता ही चला गया और उनकी संख्या ६२ तक पहुँच गई. अब तो, सुनते हैं कि यह संख्या १०३ तक पहुँच गई है. भविष्य में और भी अनेक तत्त्वों के अन्वेषण की सम्भावना है. जैन दर्शनकारों ने ७ तत्त्व और ६ द्रव्य ही माने हैं लेकिन उन्हें इस १०३ की संख्या से भी कोई आपत्ति नहीं. उनका वर्गीकरण स्वयं इतना युक्तिपूर्ण और वैज्ञानिक है कि आये दिन होते रहने वाले वैज्ञानिक अन्वेषणों से उनकी पुष्टि ही होती जाती है. ये १०३ तत्त्व केवल पुद्गल द्रव्य के ही पर्याय हैं और उनका अन्तर्भाव इसी द्रव्य के स्थूल-स्थूल आदि ६ भेदों में यथासम्भव किया जा सकता है. जैनदर्शन में परमाणुओं की जातियाँ भी मानी गई हैं और यह भी माना गया है कि एक जाति दूसरी जाति से अमिश्रित रह सकती है. अणु बम-पहले वैज्ञानिकों की मान्यता थी कि उनका तथाकथित परमाणु टूटता नहीं, विच्छिन्न नहीं होता लेकिन धीरे-धीरे उनकी यह मान्यता खण्डित होती गई. धीरे-धीरे यह भी अन्वेषण हुआ कि परमाणुओं के बीजाणुओं की इकाई में अपार शक्ति भरी पड़ी है. उन्होंने यह अन्वेषण भी किया कि यूरेनियम नामक तत्त्व के परमाणुओंका विकीरण हो सकता है, इन्हीं सब अन्वेषणों के आधार पर अरण बम को जन्म मिला. कहना न होगा कि यूरेनियम तत्त्व, जिसके परमाणुओं के विकीरण से अणुविस्फोट होता है. पुद्गल द्रव्य की पर्याय है, अत: यह सब पुद्गल द्रव्य का ही चमत्कार है. उद्जन बम-उद्जन बम का सिद्धान्त अणु बम के सिद्धान्त से ठीक विपरीत है. अणु बम अणुओं के विभाजन का परिणाम है जबकि उद्जन बम उनके संयोग का. यह भी स्पष्टतः पुद्गल का ही पर्याय है. रेडियो और टेलीग्राम आदि-रेडियो, ट्रांजिस्टर, टेलीग्राम, टेलीफोन, टेलीप्रिंटर, बेतार-का-तार, ग्रामोफोन और टेपरिकार्डर आदि अनेक यन्त्र आज विज्ञान के चमत्कार माने जाते हैं. पर इन सबके मूलभूत सिद्धान्त पर दृहिपात करने से हम इसी निष्कर्ष पर आते हैं यह सब शब्द की अद्भुत शक्ति और तीव्र गति का ही परिणाम है. और शब्द पुद्गल का ही पर्याय है. सचमुच, पुद्गल के खेल अद्भूत और अनन्त हैं. टेलीविजन-जैसे रेडियो यन्त्र-गृहीत शब्दों को विद्युत्प्रवाह से आगे बढ़ाकर सहस्त्रों मील दूर ज्यों-का-त्यों प्रकट करता है वैसे ही टेलीविजन भी प्रसरणशील प्रतिच्छाया को सहस्त्रों मील दूर ज्यों-का-त्यों व्यक्त करता है. जैन शास्त्रों में बताया गया है कि विश्व के प्रत्येक मूर्त पदार्थ से प्रतिक्षण तदाकार प्रतिच्छाया निकलती रहती है और पदार्थ के चारों ओर आगे बढ़कर विश्वभर में फैल जाती है. जहाँ उसे प्रभावित करने वाले पदार्थों-दर्पण, जल आदि का योग होता है वहाँ वह प्रभावित भी होती है. टेलीविजन का आविष्कार इसी सिद्धान्त का उदाहरण है. अतः टेलीविजन का अन्तर्भाव पुद्गल की छाया नामक पर्याय में किया जाना चाहिए. एक्स-रेज़-एक्स-रेज़ भी विज्ञान-जगत् का एक महत्त्वपूर्ण एवं चमत्कारमय आविष्कार है. प्रकाश-किरणों की अबाध गति एवं अत्यन्त सूक्ष्मता ही इस आविष्कार का मूल है. अतः एक्स-रेज़ को पुद्गल की प्रकाश नामक पर्याय के अन्तर्गत रखना ही उचित है. अन्य-विश्व में जो कुछ भी छूने, चखने, सूधने, देखने और सुनने में आता है वह सब पुद्गल की पर्याय है. प्राणिमात्र के शरीर, इन्द्रिय और मन आदि पुद्गल से ही निर्मित हैं. विश्व का ऐसा कोई भी प्रदेश-कोना नहीं है जहाँ पुद्गल द्रव्य किसी-न-किसी पर्याय में विद्यमान न हो. NI TON Jain Education Interional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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