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________________ TRENERATERNMENRNER ८: मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय पुत्र का पत्र माँ के उत्तर में : "पूज्य माँ, 'तुम्हारी माँ का पत्र पाया है.' गुरुदेव ने कहा तो माँ, सुनते ही बड़ा हर्ष हुआ. उतावले हाथों गुरुजी से पत्र लिया. तुम्हारा पत्र पढ़ने को मन अधीर हो उठा था. अपलक, पत्र पढ़ गया. आज उत्तर दे रहा हूँ ! 'तुम कहती हो, 'मैं दूर जा रहा हूँ.' पर माँ, सच पूछो, तो मैं तुम्हारे निरन्तर निकट रहने का प्रयत्न कर रहा हूं. 'मैं दूर नहीं जा रहा हूँ, निकट पा रहा हूँ—तुमने कहा था- 'इन आँसुओं में खारापन नहीं है--ये तो माँपन की पहचान है-और अाज लिख रही हो--'दूर जा रहा है' 'तुम्हारी आंखों के उन दो आंसुओं के माँपन को मैं सदैव याद रखूगा, उन दो अाँसुओं को मैं कभी नहीं बिसारूगा, हर नारीमें माँपन मानकर उसमें विश्व-माँ के दर्शन किया करूगा, और फिर तुमने कहा था--गुरु को सुख पवित्र साधना में मिलता है, और 'आज दूर जा रहा है!'-यह कहकर गुरु के सुख में बाधा डालने का प्रयत्न नहीं कर रही हो? स्पष्टवादिता के लिए क्षमा करना" विनयावनत, -हजारी." माँ का प्रतिपत्र: "चि० हजारी, 'बेटा, तेरा पत्र पढ़ते-पढ़ते अांखें बरस पड़ी थीं. एक बात कहूँ ? गुरुजी के पास रहकर बातें तो खूब आ गई हैं तुझे. 'स्पष्टवादिता के लिए क्षमा करना' कैसे लिख दिया. क्या बचपन के वे दिन याद नहीं हैं ? कहने पर भी सच तो क्या झूठ-मूठ भी क्षमा याचना नहीं करता था. कोई बात हो जाती तो ? यह बात तो मैं यों ही कह गई. अब तू अपनी माँ के मन की बात भी सुन ले. 'बेटा, भूल जाती हैं, पुत्र में अटकी-भटकी माँ की ममता अनचाहे ही भूल करा देती है, परन्तु गुरु को सुख तो, तू साधना में आगे बढ़ेगा, उसी से मिलेगा--यह सत्य है ! साधना करने पर तुझे जो आनन्दानुभव होगा, गुरु को उससे द्विगुणित आनन्द प्राप्त होगा—इसमें दो बात नहीं हो सकती.' माँ के आशीर्वाद, -नन्दूबाई पुत्र का प्रत्युत्तर : "पूज्य माँ, 'पत्र मिल गया था. 'बेटा, भूल जाती हूँ. पुत्र में अटकी-भटकी माँ की ममता 'अनचाहे ही भूल करा देती है.' क्यों ! ऐसी भूल कैसे हो जाती है ? कौन-सी शक्ति है जिसके वशवर्ती होने पर वह तुमसे भूल कराती रहती है ! जब तक तुम मुझ में ही पुत्र की कल्पना ७.:: :: . ALLAL RS. ORE = = 23 Hivarersonal use only Jain Education Intemational DATEmbalibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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