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________________ Jain Educ मुनि कान्तिसागर : लोकाशाह की परंपरा और उसका अज्ञात साहित्य : २४६ विजामति तिणें नाम कहायो जाणों सुजाण विचारी । साध - साधवी सहस्र दोय संख्या, श्रावक बहु धनधारी ॥ अठतीस वर्ष इणि परि विचर्या पर्छ रूपऋषि थया गणधारी । ३ रूप ऋषि भास राग धन्यासी तथा सोरठ ढाल रावण रे तो कवण मति आई, रूपा ऋषि सरवण नो सिणगारी, देवो पिता मात मिरधाई जाया पनर त्रयाले सुखकारी । रूपा० । अठसठ माही पून्यम स्वयमेव संजमधारी ॥ पनर मोदिक पात्र सासूए मूक्यौ गच्छ बंधेज सुकन तिरण समें सहु साथ- साथवी श्रावक बहु थाप्यो जिनशासन पद दे किया पद देई पाटण गछ पनर श्रठ्यौत्तरें जीवजी ने संजम सात वरस गणि साये विचर्या समझाव्या बहु नरनारी । उदारी || विचारी । रूपा महा पन्नवणां उदे ग्रंथ मांहे आगम कह्यो ते जीवाना भेद तेजउ आचरिया थया चोरासी गच्छ मांहे केई गछनां थया उग्र विहारी ॥ ज्ञान ध्यान तप तेहनो देखी थिर थया श्रावक तिण वारी । का नागोरी पनरसें असीइं जूदा थया नागोर मभारी ॥ होरो आचार्य भयो तेि चौदस पाखीमां निवारी । उतराध देसे गछ उतराधी ते जूदा थया तेण वारी ॥ साथ सरवानो परिवार सघलो लुका बिरुद नामधारी । पनर पंच्यासीए रूपऋष अणसण दिन पचवीस चउविहारी ॥ अणसणमां उदोत कियो देवे सातवार जांणे ते संसारी । पंचवीस ग्रीहावास वर्ष वली सतरे साध संजमपदधारी ॥ सर्व आयु पाली थया देव स्वर्ग मभारी ॥ वरस ४ जीवजी भास राग धन्यासी, काफी, विचारी । धनधारी ॥ ऋषि जयकारी । पटधारी ॥ जिणंदा । फूलचंद ॥ जीव० १ ॥ जीव ऋषि सासन उदयो दिरगंदा जीव पंनर पंच्यासे कपूराई जनम्या दोषी तेजपाल अडसठ माह मानंदा । सुदि पंचमी दिवसे संजम मन तिणे समें रूपऋषि पदवी देतां धन विलस्या लाख लेखंता जी ॥ जीव० २ ॥ विहार कर्यो जीवजीए जिण देश समझाव्या नर-नारिदा । सोल बारोत्तर वैशाख सुदि सातम, जीवें वरसंघ ने पद देही || जीव ० ३ ॥ 贳傑薟港嶷褡搽搽搽綹豢潮 www.erary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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