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________________ XNENEMEENNNNNNNEVENEMIERE २३ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-प्रन्थ : प्रथम अध्याय संवत ईताले उल्लास खंभायति नयर चौमास हो । देवमुनि गुरु नामें भणतां सुख पामं हो गुरु० ॥७॥ संवत १७७१ में प्रतिलिपित एक गुटके में निम्न पद्य है, जिसके लिपिकार आचार्य श्रीतेजसिंह के शिष्य वेलजी हैं सोरठ देश' शिरोमणि जानत आवत तेज लको पटधारी । संघ सकल जू मोती वधावत गावत गीत बडी बहु नारी ।। वखांण सुनाजत संघ रिझावत दीपत तेज तपे दुय तारी। कान्हकी कीरति चंद जू गावत पावत हे सुख संपति प्यारी ।। प्राचार्य श्री तेजसिंह रचित गुरु-गुणमाला भास राग धन्यासी, ढाल तुं मेरे मन तुं अभिनंदन देवा, राग रामकली, ढाल अंबर दे हो मुरारी । लकें जिन वचननी लबध ते पाई, पोरवाड सिद्ध पाटण में लका नामें लु'का कहाई, लके जिन वचन नी लबध ते पाई ॥१॥ संवत पनर अठ्यावीसे बडगच्छ सूत्र सिद्धान्त लिखाई। लिखी परति दोई एक आप राखी एक दिये गुरु ने ले जाई ।।२।। दोय वरस सूत्र अर्थ सर्व समझी धर्म विध संघ ने बताई। लके मूल मिथ्यात उथापी देव गुरु धर्म समझाई ॥३॥ त्रीसे वीर राशि ग्रह भस्म उतरता, जिम वीर कह्यौ तिम थाई। उदे-उदे पूजा जिनशासन नी, ति दया धर्म दीपाई ॥४॥ इगत्रीसे भाणाजी ए संजम लेई लुकागच्छे आदि जति थाई। लुकागच्छे नी उतपति इण विधे, कहें तेजसंघ समझाई ।।५।। इति गच्छ संबंध भास ढाल अवसर अनज छ रे भाई, लुकागच्छ आदि थया अधिकारी, भाणां भीदा नून भीम जगमाल साध सरचा सुविचारी । भगवंत भाख्यौ तिणे सरव राख्या, दया धरम चित धारी ॥ केशी गौतम नी परि मिलिनै विचार्यो सुध आचारी ॥ बिनयादिक विवेक सब विधिसुं करो जिन बचन बिचारी ।। देश-देशनां धावक समझाव्या, थयां सवे उन विहारी । संबत पनर सटे लुकाथी विजे कीधी विध न्यारी ।। _JainEdition www.janelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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