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________________ आलमशाह खान : लोंकागच्छ की साहित्य-सेवा : २०५ KNERRENTXXXXXXXXXREAK २. गजसुकुमार की ढाल (सं० १९२२ आश्विन शुक्ला १२, मंगलवार, भावनगर) ३. अर्जुन माली की ढाल (सं० १९२२ आसौज सुदि १४ शुक्रवार, भावनगर) ४. अयमंता मुनि की ढालें (सं० १९२२ आसौज वदि ८, शनिवार भावनगर) ५. अमरकुमार की ढालें (सं० १९२५ मिगसर वदि अमावस्या, रविवार, बोरसद) ६. हरिकेशि मुनि का रास (सं० १९२५ फागुन, गणपुर-गढा) ७. मेतार्य मुनि का चौढालिया (सं० १९२५ वैशाख सुदि ६ सोमवार खंभात) ८. नीषढ कुमार की ढाल (सं० १९२५ भादों, खंभात) ६. सुकोशल की ढाल (सं० १६३०) १०. नेमराजुल का षट् ख्याल ११. ऋषभदेव का किस्सा (सं० १९२८ कार्तिक बदि ११) कनीराम—इनका 'तिलोकसुन्दरी चौपाई' का नामोल्लेख स्व० मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने अपने ग्रंथ 'जैन गुर्जर कविओ' भाग ३ पृ० २२२ पर किया है. इसकी एक प्रति मुनि श्री कान्तिसागरजी के संग्रहालय में सुरक्षित है, जिसकी प्रशस्ति का ऐतिहासिक भाग नीचे दिया जा रहा है इग्यारे वसु समत कहायो इन्दुहर सबरस पायो रे लो, धन तेरसे भोमवार सुहायो विजय महूर्त मन भायो रे लो। शासन मंडण घन ज्यू गाजे पूज गुमान गुरू राजे रे लो, तास दिवाजै बिसुणज लाजै सांसा सुहना भांजे रे लो। तस लघु बांधव पाट सुहाया दुरगदास मुनिरायो रे लो, च्यारू सिध निज द्रष्ट चलाया श्रादित्य तेज सवायो रे लो। रतनेसर तस पाट वैरागी पुद्गल रसना त्यागी रे लो, वांण अभी ज्यांरौ सुणावण भागी बहु थया धरम लागी रे लो। तस सुखदाता जिण गुणगाता दलीचन्द गुरभ्राता रे लो, सकल सिंध ज्यांरो जगत विख्यात नेह परसपर ज्ञाता रे लो। ऋष कनिराम जश सिणगायो पीपाड़पुर मन लायो रे लो, ढाल बाईस कर गाय सुणायो श्रावक-जन-मन भाया रे लो। वरणव नै वक्ता जो भणसी श्रोता हित धर सुणसि रे लो, सील नवल रस जांणी गणसी सिव सुफल लणसी रे लो। कान्हजी-यह लोंका गच्छ के सुप्रसिद्ध १६ वें प्राचार्य तेजसिंह के शिष्य थे. सं० १७४३ में इन्हें गणिपद प्राप्त हुअा. इनका मूल निवास-स्थान नाडोलाइ था. तेजसिंह की अपूर्ण 'गुरुगुण-मालाभास' की पूर्ति इन्हीं द्वारा हुई. यद्यपि इनकी कोई बड़ी कृति आज तक देखने में नहीं आई पर अनेक स्फुट पद्य उपलब्ध हैं. इन्हीं के समय में गंग मुनि तथा इनकी परम्परा के अन्य मुनियों ने भी साहित्यिक रचनाएं की हैं, जिनका उल्लेख यथास्थान किया जायेगा। कान्हजी की रचनाएं इस प्रकार हैं१. अर्जुनमाली स्वाध्याय (रचनाकाल सं० १७४८ राणपुर) २. गजसुकुमार स्वाध्याय (रचनाकाल सं० १७५३) ३. शान्तिनाथस्तवन (रचनाकाल सं० १७५६ सूरत) ४. सुदर्शन सेठ स्वाध्याय (रचनाकाल सं० १७५६ सूरत) ५. समायक दोष स्वाध्याय (रचनाकाल सं १७५८ सूरत) Jain Education Intemato For Private & Personal Use C www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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