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________________ MAR0922291982888882*2 २०४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय अवकाश ही. यहाँ केवल लोंकागच्छ द्वारा की गई साहित्य-सेवा के विषय में कतिपय सूचनात्मक संकेत वर्णानुक्रम से प्रस्तुत किये जा रहे हैं. अमोलक ऋषि—इस नाम के दो व्यक्ति हुए हैं. प्रथम तो 'भीमसेन चौपई' के रचयिता, जिनका विशेष परिचय नहीं मिल सका, और द्वितीय बत्तीस सूत्रों के उद्धारक ऋषि सम्प्रदाय के आचार्य. इन्हीं की साहित्य-साधना एवं दीर्घदर्शिता का परिणाम है कि उन दिनों आगम सानुवाद सर्वसुलभ हो सके. यद्यपि तत्पश्चात् इस दिशा में सर्वश्री मुनि आत्मारामजी एवं मुनि घासीलालजी के प्रयास अभिनन्दनीय हैं तथापि एतद्विषयक प्राथमिक प्रयास का श्रेय द्वितीय अमोलक ऋषि जी को ही है. आणंद-इनका सं० १६९२ के बाद रचित 'शिवजी का सिलोका' प्राप्त है, जो एक ऐतिहासिक १४ पद्यात्मक कृति है. इसमें आचार्य शिवजी का वर्णन है जो गुजराती लोंकागच्छीय द्वितीय पक्ष अर्थात् कुंवरजी पक्ष के पाटानुक्रम से १३ वें आचार्य थे तथा जिनका जन्म, सं० १६५४ माघ सुदि दूज को जामनगर निवासी श्रीमाली संघबी अमरसी की धर्मपत्नी तेजबाई की रत्नकुक्षि से हुआ था. संवत् १६७० में दीक्षा और संवत् १६८८ जेठ सुदि ५, सोमवार को पाटण में पद-स्थापन, सं० १७३३ मिगसर दूज रविवार को स्वर्गवास. इन्हीं आचार्य श्री का एक रास नाकर ऋषि के प्रशिष्य और देवजी ऋषि के शिष्य धर्मसिंह ने सं० १६९२ में उदयपुर में रचा. आचार्य श्री के समय-सं० १६८५—में ही उनके शिष्य धर्मसिंह ने नवीन पक्ष की स्थापना की. इन्हीं की परम्परा में एक और पाणंद हुए हैं. जिनका परिचय आगे दिया जा रहा है. आणंद-कुंवरजी पक्ष के त्रिलोकसिंहजी के शिष्य आणंद (आनन्द) मुनि ने, सं० १७३१ श्रावण, लालपुर (देहली) में एवं, सं० १७३८ कार्तिक सुदि पूर्णिमा, राधनपुर में क्रमश: 'गणितसार' और हरिवंशचरित्र' की रचना की. दोनों रचनाओं की अंतिम प्रशस्तियां ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण हैं. 'गणितसार' में दिल्ली का वर्णन करते हुए छत्रपति औरंगजेब, सिद्दी पोलादखां, काजी शेख सुलेमान के न्याय की कवि ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है. साथ ही उसने रामचन्द्र (नागौरीगच्छीय), मानसिंह, हरिकृष्ण, भागीरथ और रूपचन्द्र का उल्लेख भी किया है जिनकी अभ्यर्थना से गणि त्रिलोकसिंह जी, जो आचार्य शिवजी के पट्टधर थे, ने लालपुर में चातुमसि व्यतीत किया था. 'हरिवंशचरित्र' में कुंवर जी, श्रीमलजी, केशवजी, रत्नागरजी, शिवजी, त्रिलोकसिंह आदि पुण्यात्माओं का स्मरण किया गया है. राधनपुर के श्रमणोपासक भंडसाली सूरजी के पुत्र भीमजी के आग्रह से उत्तराध्ययन सूत्र सटीक, ज्ञाता, समवायांग और अन्तगड़ आदि शास्त्रों के सार स्वरूप प्रस्तुत कृति का सृजन किया गया था. श्रानन्द जेठमल-यह जयपुर निवासी ओशवाल जैन गृहस्थ थे. इन्होंने 'जम्बूस्वामी गुणरत्नमाल' (सं० १९०२) पैतीस ढालों में लिखकर महर्षि के प्रति आदर-भाव व्यक्त किया है. प्रासकरण-यह रायचन्द्र ऋषि के शिष्य थे. इनका अस्तित्व समय १६ वीं शती है. 'नेमिराज ढाल' और 'चूंदडी ढाल' आदि इनकी रचनाएं हैं. उम्मेदचन्द-स्थानकवासी सम्प्रदाय के गुजराती साहित्य-सेवी मुनियों में इनका स्थान महत्त्वपूर्ण है. इन्होंने प्रचुर परिमाण में महामुनियों के आदर्श चरित्र लिखकर जन-मानस को नैतिकता का पाठ पढ़ाया. इनकी कवित्वशक्ति सहज थी, जो उनकी बृहत्तर काव्य-रचनाओं और नाना औपदेशिक स्फुट-पद्यों से स्पष्ट है. रूपाणी भीमजी कालिदास ने उम्मेदचन्दजी कृत काव्य-संग्रह कई भागों में प्रकाशित किये हैं. कवि का साहित्य-साधना-काल बीसवीं शती का प्रथम चरण है. यह उनकी कृतियों को अंतिम प्रशस्तियों से सिद्ध होता है. इनकी कृतियाँ इस प्रकार हैं१. आर्द्रकुमार का रास (सं० १९२२ विजयादशमी सोमवार, भावनगर) Sama ITIHAASHITADHAARTIMUNILITILAMHHATRAMITHAAHE... MAINTIMAHARAgnantar.IMALAINMault Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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