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________________ NEMANNERSONNNNNNNNNN २०२ : मुनि श्रीहजारमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय . जी म० पधारिया अने धर्म रा द्वेषी गांव में बडतां ही एक ठाकर ने सिखा दियो. वो राजपूत आडो फिरयो ने अर्ज करी के म्हारे रावले पधारो-छाछ घाट मिल जावेला. तपस्वीजी रावले पधारिया. छाछ सुं पातरो भर दियो ने फेर घाट रो केने अखज वेरावियो. वेहर ने बाहरे आवतां ही महाजना कह यो के साधां, मांस वेहर ने लाया हो ? तपस्वीजी कह्यो के साधु-सन्त कदे ही आ चीज नहीं लेवे. महाजनां कह यो नहीं लाया तो पातरो दिखावो. तपस्वीजी सोचियोदगो होय गयो दिखे है. सन्त कह यो-थाने नहीं दिखावां. जरे झमेलो घणो हुओ. खुद घाणेराव ठाकुर सा० पिण मांजनां रो पक्ष कर ने आया ने कह्यो के साधां, मांस वहरतां शर्म नहीं आयी तो बतावतां क्यों शर्म आवे ? माजना सु झोली खोलने दिखा दो. तपस्वीजी फुरमायो के ठाकरां, आपरे तो सारा सरिखा है. क्यों खाली पखपात करो हो. झोली थे जिद करो तो दिखाय देसू पिण थे कई जिका नहीं लादी तो ? ठाकुर क्यो के नहीं लाधी तो थाने शाबाशी देवां ला ने आज पछे कोई साधांने नहीं सतांवां ला. बड़ा चमत्कारी पुरुष झोली खोलने चौड़े में बताई. देखे तो असल कमोदनी चावल. सारा डरिया ने महात्मा ने करामाती समजने पगां पडिया ने सिला लेख लिख दियो के जैनरा महबंधाने आज पछे छेडां तो तीन सौ तलाक है ने गायांरी हत्या लागे. एडो प्रबंध कराय दियो. बाद में लोग सामा जायने पूज्य महाराज ने लाया. एकांत जाय वा चीज परठ ने पूज्य महाराज कने आया ने प्रायश्चित्त मांगियो. पूज्य महाराज फरमायो के तपसीजी, थारे अजाण में यो करम हुप्रो जिण रो 'मिच्छा मि दुक्कडं' देवो और प्रायश्चित नहीं. तुमा तो धर्म री बात उंची लाया हो सो धन्यवाद है. इसा उत्तम पुरुष हा. श्रीपोमाजी स्वामीजी, तपस्वी श्रीपृथ्वीराजजी स्वामी, श्रीजेतसीजी, स्वामीजी श्रीफोजमलजी, श्रीमाणकचन्दजी म०, श्रीधर्मचन्दजी म०, श्रीसंतोषचन्दजी म०, प्रभावशाली कवि और क्रियापात्र हुआ. तपस्वी श्रीमानमलजी म. पिण मारवाड़ में बड़ा अवधूत करामाती हा. आप घणा निस्प्रेही हा. आपरा घणे ठिकाणे परचा पडिया. चार-चार महिना और छ:-छः महीना री तपस्या अभिग्रह सहित करता हा. आप अक्सर मसाणां में ही चौमासो करता हा. तपस्वीजी श्रीहजारीमलजी म० भी काकड़ाभूत हा. पोली में घणा चमत्कार लोगां रे देखण में आया. इसा स्थानकवासी समाज रा अग्रदूत घणा हुआ. केई परचा पडिया. लेख मोटो हो जाय इणांमु थोडी बातां बताई है. इणरो इतिहास तो स्वतन्त्र निकलेला. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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