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________________ MORE १८६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय दायों का जन्म होता है. समाधान या समन्वय में से सम्प्रदाय उत्पन्न नहीं हो सकता. इस प्रकार जैनधर्म में मूर्तिपूजा विरोधी लोकाशाह सम्प्रदाय शुरू हुआ. किन्तु आज के अमूर्तिपूजक जैन लोग अपने को लोंका सम्प्रदाय के नाम से नहीं परन्तु स्थानकवासी या तेरापंथी के नाम से कहते हैं. ऐसा क्यों हुआ, यह भी जानना जरूरी है. लोंकाशाह की मूर्तिपूजा विरोधी मान्यता को कायम रखते हुए भी इन सम्प्रदायों के प्रवर्तकों ने कुछ नई बातें जोड़ी हैं. उन नई बातों को जोड़ने के कारण ये सम्प्रदाय नये-नये नामों से पहिचाने जाते हैं. स्वयं लोकाशाह ने किसी भी साधु के पास दीक्षा नहीं ली. वे भिक्षाजीवी थे. किन्तु महाव्रतों को उन्होंने स्वीकार नहीं किया था. इसलिए वे न श्रावक थे और न साधु ही. सं० १५३४ (मतान्तर से १५३०, १५३१) में भाणाजी जब उनके अनुयायी हुये तो भाणाजी ने महाव्रतों का स्वीकार किया था. और फिर उन्हीं से वेशधरों की परम्परा शुरू हुई जो लोंका के नाम से प्रसिद्ध हुई. आगे चल कर इसी लोंका-सम्प्रदाय में से, गुरु के साथ मनमुटाव हो जाने के कारण भाणाजी ऋषि (ये प्रथमोक्त भाणाजी से भिन्न थे.) सं० १६८७ में ढूढ में जाकर रहे, अतएव उनका सम्प्रदाय 'ढूंढिया' के नाम से प्रसिद्ध हुआ. इस सम्प्रदाय की भी कई शाखा-प्रशाखाएं हुई किन्तु आज ये सभी स्थानकवासी कहलाते हैं. परन्तु इनमें भी कुछ उप-सम्प्रदाय ऐसे हैं जो आज स्थानकवासी होते हुए भी स्थानक में ठहरने से इन्कार करते हैं. ढूंढिया सम्प्रदाय में से ही सं० १८१८ में भीखण जी अलग हो गये. उन्होंने तेरापंथ की स्थापना की. इन सभी का इस विषय में एक मत है कि मूर्तिपूजा न की जाय. किन्तु वेश और उपकरणों में बहुत थोड़ा ही भेद है. कुछ शास्त्रीय बातों में भी भेद है. लोकाशाह के विषय में यह आक्षेप किया गया है कि वे तत्कालीन सुल्तान के साथ मिल गये और कई मन्दिरों का ध्वंस किया. इस आक्षेप में सत्य का इतना ही अंश है कि सुलतान ने मूर्तिपूजा का विरोध मूर्ति का ध्वंस करके किया जबकि लोंकाशाह ने शास्त्रीय प्रमाणों से. संभव है कि बढ़ते हुये मुस्लिम प्रभाव से भी लोकाशाह ने कुछ प्रेरणा ली हो और जैनागमों के आधार पर विरोध किया हो. आज के स्थानकवासी तथा तेरापंथी सम्प्रदायों में ३२ मूल मात्र आगम प्रमाण रूप में स्वीकृत हैं. किन्तु लोकाशाह को ४५ मान्य थे. यह बात विरोधियों के द्वारा लिखे गये ग्रंथों से जानी जा सकती है. प्रस्तुत ५८ बोल के और ३३ बोल के आधार पर तो यह भी कहा जा सकता है कि लोंकाशाह को ४५ आगमों की नियुक्ति, चूणि, टीका आदि भी उतने अंश में मान्य थे जिनका आगमों के साथ विरोध नहीं है. लोकाशाह रजोहरण, दंड, मुखवस्त्रिका तथा कम्बल नहीं रखते थे, जो तत्कालीन यतियों और साधुओं के वंश में स्थान पा चुके थे. पात्र रखते थे किन्तु अन्य यतियों की तरह उसमें लेप नहीं देते थे. किन्तु यह भी स्पष्ट है कि मुखवस्त्रिका जैसी आज थोड़े से परिमाण-भेद के साथ स्थानकवासी और तेरापंथी सदैव बांधते हैं, लोंकाशाह या उनके अनुयायी भाणाजी नहीं बांधते थे. यह भी स्पष्ट है कि मुखवस्त्रिका में धागा डालकर कान में बांधने की प्रथा लोकाशाह के कई वर्षों के बाद जब ढूंढिया सम्प्रदाय चला तब शुरू हुई है. इसके पहले मूर्तिपूजकों में भी कुछ लोग बांधते अवश्य थे, परन्तु केवल व्याख्यान के समय ही. बांधने के प्रकार में भी यह इतिहास बताया गया है कि सं० १००८ में मुखवस्त्रिका के छोरों को कान के छेद में डालकर व्याख्यान के अवसर पर मुंह और नाक ढंका जाता था. इसके बाद लोकाशाह की परम्परा में धागा सीकर के उस धागे से कान में बांध कर व्याख्यान में मुंह और नाक ढंकना शुरू हुआ. इसके बाद ढूंढिया सम्प्रदाय में आज की तरह मुंहपत्ती बांधना शुरू हुआ. उसी के नाप में थोड़ा परिवर्तन करके तेरापंथी भी बांधते हैं. लोकाशाह के मन्तव्यों की चर्चा करने वाली दोनों हस्तलिखित प्रतियों में मुहपत्ती की कोई चर्चा नहीं है. इससे भी पता चलता है कि उस समय यह कोई विवाद का प्रश्न नहीं था.. विरोधियों ने लोंकाशाह को मूर्ख आदि अनेक विशेषणों से विभूषित किया है. किन्तु इन दोनों हस्तलिखित प्रतियों के आधार से इतना तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जैन आगमों और उनकी टीकाओं का ज्ञान उन्हें था. व्याख्या उनकी अपनी थी पर उन्हें शास्त्रों का ज्ञान ही नहीं था, ऐसा नहीं कहा जा सकता. मूर्तिपूजा के विरोध के विषय में उनका अति आग्रह था, यह सत्य है. फिर भी उनकी वाणी में विवेक की मात्रा पद Jain Educawen and a personal use.com CONTrellbrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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