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________________ १५८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय कवि ने बड़ा ही मार्मिक किया है. उनके व्यक्तित्व के प्रभाव से अनेक श्रेष्ठियों और नरेशों ने उनके प्रवचनों को सुनकर धर्म की दीक्षा ग्रहण की. स्तवन और चरितकाव्यों के अतिरिक्त रायमुनि ने अपनी वाणी का सार निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया है-सज्झाय, निह्नवों का वर्णन, उपदेशी पद और गुरुमहिमा. इसके साथ गौतम रासा की रचना भी की है. साधुवन्दन, सिद्धस्वरूप, चेतावनी आदि के द्वारा विविध पक्षों पर काव्यात्मक वर्णन किया है. संसार की असारता के साथ-साथ अस्थिरता का संदेश भी आपने दिया है. गुरुमहिमा के स्वरूप को प्रतिष्ठित करने के साथ ही शिष्य का विनय, और अविनीत शिष्य को चेतावनी भी है. यौवन की अस्थिरता का बोध कराते हुए अयोग्य दीक्षा का निषेध भी आपने किया है और उद्बोधन के द्वारा साध्वियों को चेतावनी भी दी है. पाप, कपट, लोभ, निन्दक, कृपण आदि के स्वरूप को बतलाते हुए आपने दानशीलता, और पुण्य का महत्त्व भी प्रतिपादित किया है. इस प्रकार रायमुनि ने जीवन के सभी पक्षों को आध्यात्मिक दृष्टि से देखा है. इनकी वाणी में मुख्यतः दान, शील, तप और भावना इन चार प्रकार के धर्मों के फल के दृष्टान्त हैं. साथ ही क्रोध, मान, माया और लोभ, इन चार दूषणों पर भी सुन्दर लिखा गया है. इनके मुख्य विषय इस प्रकार हैं(१) ऋषभदेव, महावीर, नेमिनाथ आदि तीर्थंकर. (२) जम्बूस्वामी, गौतम स्वामी, स्थूलिभद्र, शालिभद्र आदि जैन साधु. (३) तेजपाल, वस्तुपाल आदि जैन श्रेष्ठी. (४) चन्दनबाला, नर्मदा, कलावती, पुष्पचूला आदि सतियां. (६) स्तुति, नीतिव्यवहार, उपदेश, शिक्षा आदि इस प्रकार रायमुनि ने अपनी भाषा, जो कि लोकप्रचलित बोलचाल की थी, में अपने उद्गारों को व्यक्त करके धार्मिक भावनाओं की सृष्टि की. इनकी वाणी की मूल प्रेरणा धर्म है. सारा काव्य शान्तरस में अपनी रसात्मकता लिए हुए है. विभिन्न राग-रागिनियों के माध्यम से इनकी वाणी मुखरित है. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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