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________________ 第靠深職業業帶靠著凝聚器器就常常带紫 ११२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय बन जाने के उपक्रम से या बड़प्पन को मौन भाव से स्वीकार करने से तुम्हारा मन ही तुम्हें कचोटने लगेगा. उस समय तुम सन्तों की सेवा न कर सकोगे." जीवन के तीसरे मोड़ पर खड़े होकर दिए उनके सन्देश को मैंने अपने दूसरे मोड़ पर सुना. आज वही सन्देश मेरे जीवन का स्वर्णिम और प्रिय पृष्ठ बनता जा रहा है. जीवन के महानादर्श का दिशानिर्देश करनेवाले परम पूज्य चारित्रिक ऊर्जा के धनी मुनिराज श्रीहजारीमलजी महाराज को मेरे अगणित श्रद्धाभिवादन ! अभिनन्दन !! अभिनमन !!! श्रीअशोक मुनि वे महान् थे, महान् ही रहे मनुष्य मात्र में महान् बनने की आकांक्षा स्वाभाधिक होती है. किन्तु सफलता प्राप्त करने वाले विरल ही होते हैं. श्रमण संघ के महास्थविर मंत्री श्रीहजारीमलजी महाराज, महान् थे और महान् ही बने रहे. अंत तक उनकी महानता नदी से समुद्र, परमाणु से महास्कन्ध बनता है वैसे ही विकसित और पल्लवित हुई थी. मुनिश्री उस समय अपने स्वर्गीय पूज्य गुरुदेव श्रीजोरावरमलजी महाराज की चरणसेवा में तन्मयतापूर्वक संलग्न थे. जवानी आकर उनके जीवन द्वार पर दस्तक दे रही थी. इस अल्हड़ मादक अवस्था में आत्मसाधना कितनी दुष्कर होती है, इसे कठोर साधना करने वाला साधक ही जान सकता है. उस साधना में कितना आनन्द आता है, यह भी साधक के अनुभव की ही वस्तु है. वह मेरे शैशवकाल का समय था-- जब मैंने उस पुण्य आत्मा के सर्वप्रथम दर्शन किये थे. हरसोलाब व रजलानी में मुझे उनके प्रथम दर्शन हुए थे. इसके बाद दोबारा ब्यावर, जोधपुर, कुचेरा तथा अंत में भीनासर के मुनिसम्मेलन में. उस समय के पावन संस्मरण आज भी हृदयपटल पर सचित्र अंकित हैं, जिनकी स्मृतियाँ यदा-कदा हुआ करती हैं. वे शान्त सरल और निष्कपट सन्त थे. कलह और कदाग्रह की वृत्ति से सदा दूर ही रहते रहे. आज वे भौतिक शरीर से अदृश्य होगए हैं किन्तु उनके गुण, उनकी गुण-गरिमा की महक खिले पुष्प की तरह ही महक रही है. वह साधकों के हृदय में सदा स्थान पाती ही रहेगी. 'मुनि श्रीहजारीमल स्मृतिग्रंथ प्रकाशन समिति' ने उनके जीवन को व्यवस्थित रूप से लिखकर प्रकाशित करने का तथा आचार्य श्रीजयमलजी महाराज एवं परवर्ती सन्तों एवं कवियों आदि के कार्यों को प्रकाश में लाने का जो शुभ संकल्प किया, नि:संदेह वह महान कार्य होगा. इससे इतिहासज्ञों के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री की उपलब्धि होगी. मुनि श्रीलचनीचन्द्रजी म. मेरी श्रद्धा, मेरी आस्था महापुरुषों का यशशरीर आचन्द्रार्क संजीवित रहता है. उनका यह रूप रत्नत्रय को आत्मसात करने पर ही स्थायित्व पाता है. अतः महापुरुषों का जीवन, अंधकारपूर्ण पथ में प्रकाशस्तम्भ का कार्य करता है. महान् पुरुषों की परम्परा में से ही प्रातःस्मरणीय मरुधरामंत्री सरल स्वभावी, उदारचेता, श्रीहजारीमलजी म. भी थे. उनके अनेक जीवनप्रसंग समय-समय पर हृदय में उभरते रहते हैं. उनका पितृवत् स्नेह स्मरण आता है तो हृदय गद्गद हो जाता है. S Jain Sarorary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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