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________________ १२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय उनके जीवन के पावन सन्देश और उपदेश मेरे जीवन को प्रकाशित कर रहे हैं. मैं उनके प्रति अत्यन्त कृतज्ञ हूँ. साथ ही उस दिव्य दिवंगत महान आत्मा के चरणारविन्द में श्रद्धानत हूं. 業榮謀深職業样器装满装業者 श्रीनैनसुख हजारीमलजी, बोथरा, अहमदनगर. संस्मरण और श्रद्धा जैन संस्कृति व्यक्ति पूजा की अपेक्षा गुण पूजा में विश्वास रखती है. परम श्रद्धेय स्वामी जी महाराज भी निरन्तर तत्त्वचिन्तन सतत मनन, ज्ञानाराधन एवं आत्म गुण के रमण में निमग्न रहते हुये ध्येय सिद्धि करने में ही प्रयत्नशील रहते थे. भले ही आज वे अपने पार्थिव शरीर से हमारे मध्य नहीं रहे हों परन्तु उनकी जीवन-सुगन्ध आज भी हमें प्रेरणा दे रही है. मेरे जीवन में उस विरल विभूति के दर्शन करने का सुअवसर संवत् २००६ में, स्वामीजी महाराज वर्षावास निमित कुचेरा (राजस्थान) क्षेत्र में विराजमान थे-तब आया था. प्रथम दर्शन में जब मैंने अपना परिचय दिया तब वे शान्तमूर्ति मेरी तरफ देखते रहे. मैं भी उनकी सरलता, शान्त मुखमुद्रा व भद्रता पर मुग्ध था. वे आलेखन करते रहे पश्चात् मधुर स्वर में कहने लगे 'मेरे गुरुवर्य के सांसारिकपक्ष के बोथरा परिवार में से तुम्हें देखकर गुरुदेव की स्मृति जागृत हो आती है. और उन्होंने एक प्रपत्र जो मेरे दादाजी श्रीछोटेमलजी बोथरा ने घोडनदी (पूना) से संवत् १९७२ में परम पूज्य गुरुदेव की सेवा में भेजा था. मेरे पिता श्रीहजारीमलजी बोथरा ने उनके आकस्मिक अवसान व व्यथितचित्तता, व्यग्न मनःस्थिति एवं कुटुम्ब पर आई हुई आपत्ति का उल्लेख करते हुए कुटुम्ब व परिजनों के साथ आत्मीय भाव से गुरु भक्ति के भाव का चित्र चित्रित किया था. मुझे पढ़ने को दिया मैंने पढ़कर अनुभव किया कि मेरे प्रति गुरुदेव का कितना अपनत्व पूर्णभाव है ? उस हृदयस्पर्शी प्रसंग का स्मरण करते ही आज मेरा हृदय गद्गद हो रहा है. उन्होंने जिस वात्सल्य भाव से मुझे अपनापन दिया था, वह जीवन की अविस्मरणीय वेला है. भीनासर (राजस्थान) के बृहत् साधु-सम्मेलन के वक्त दर्शन का पुनः अवसर प्राप्त हुआ था. मैंने अपने जीवन को धन्य माना था. ऐसे महान् पवित्र आत्मा को मैं श्रद्धा के सुमन समर्पित करते हुये आज परम आनन्द की अनुभूति कर रहा हूँ. . श्रीचम्पालालजी बांठिया. एक मधुर संस्मरण उष्णताप्रधान मरुधरा का कुचेरा ग्राम ! चौमासे का मौसम ! अन्य प्रान्तों में जब आसमान से पानी की वर्षा होती है तब वहाँ शरीर से पसीने की धाराएँ बहती हैं. उन्हीं दिनों मैं कुचेरा गया था. स्वर्गीय पूज्य श्रीगणेशीलालजी म. का और प्रर्वतक श्रीहजारीमलजी म. का संयुक्त चौमासा था. दोनों महान् सन्त एक ही मकान में ठहरे थे. ऊपर की मंजिल में पूज्यश्री और नीचे की मंजिल में प्रर्वतकजी थे. जिन कमरों में हवा का नाम-निशान न था, उन्हीं में रात-दिन ज्ञानार्जन, ध्यान और स्वाध्याय में निमग्न रहते हुए प्रवर्तक मुनिश्री को देखकर विस्मय के साथ अनायास ही उनकी तपोनिष्ठा एवं सहिष्णुता के प्रति हृदय में श्रद्धाभाव जागृत हो उठा. हृदय ने कहा—'सच्चे सन्त का यही लक्षण है. ऐसी कसौटियों पर ही सन्त का जीवन कसा जाना चाहिए.' _Jaineducation.artouri c. Private & Personale Jainalibdiry.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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