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________________ विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ : ११ HEAKTMEMENNNNNYMNM843030 डा० सूरजनारायण जी, भूतपूर्व सिविल सर्जन, अजमेर राज्य. नमन करो स्वीकार भारत में ऋषियों की परम्परा न होती तो भारतीयों के पास अध्यात्मविद्या न होती तो भारतीय, अन्य देशों की तुलना में किस बात में महान् कहलाते ? आज अन्य देश भौतिक दृष्टि से अपना अस्तित्व अलग रखते हैं परन्तु अदृश्यशक्ति के अनदेखे सत्य, व दर्शन की गहरी गुत्थी और आत्मदृष्टि का जहाँ भी प्रसंग आता है उन्हें भारतीय दर्शनों की दृष्टि प्राप्त करनी होती है. इस दृष्टि का उद्गम दुनिया से दूर रह कर सार्वभौम सत्य का साक्षा- त्कार करने वाले सन्त हैं. अत: ऋषि परम्परा का, भारत ने सदैव ऋण स्वीकार किया है. ऋषि मुनियों की परार्थचिन्तनात्मक पावनी गंगा में भारत स्नान कर आत्मस्फूर्त रहा. आज भी सन्तसंस्कृति के प्रति हम भारतीय लोग आकर्षित और श्रद्धावान् हैंइसीलिये कि सन्तों के अनुभूतिमूलक अमृत से हमारी आत्मा को परितृप्ति प्राप्त होती है. मुझे चिकित्सा के माध्यम से जन-सेवा की दृष्टि अपने गुलाबी बचपन में महापुरुषों के जीवन-चरित्र पढ़ते-पढ़ते, प्राप्त हुई थी. अपने जन-सेवा-कार्य में जैनमुनियों की चिकित्सा का भी अनेक बार शुभ प्रसंग आया है. पूज्य स्वामी श्रीहजारीमलजी महाराज की चिकित्सा करने के प्रसंग में मैंने उनसे अनेक बार धर्म चर्चा भी की है. मैंने अनुभव किया था-स्वामीजी के रक्ताणुओं में भी साधुता मिश्रित थी. भयंकर रोगाक्रमण की कष्टपूर्ण वेला में भी उनके धैर्य का बाँध फौलादी ही बना रहा. जब-जब मुझे साधुओं का पावन जीवन-स्मरण आता है, तब-तब पूज्य श्रीहजारीमलजी महाराज की भव्य और सरल मूर्ति स्मृति के आँगन में साकार हो जाती है. मेरा हृदय उनकी, और उन जैसे पुरुषों की स्मृति आते ही श्रद्धापूरित हो जाता है. पूज्य मुनिश्री को मेरे भक्ति पूर्वक नमस्कार हैं वे विमलात्मा जहाँ भी हों, मेरे नमन स्वीकार करें !! प्र. श्रीकस्तूरचन्द्र जी महाराज. संस्मरण और कृतज्ञता सरल स्वभावी पूज्य मुनिराज श्रीहजारीमलजी म. के दर्शन का सौभाग्य अनेक बार मुझे प्राप्त हुआ है. जब-जब मैंने उनके दर्शन किये, उनके उदात्त, प्रेरक और कर्मठ जीवन से प्रेरणा ग्रहण करने में ब्यावर, जोधपुर, नागौर, भीनासर प्रभति नगर साक्षी हैं. उनके स्नेह, औदार्य और सदाशयता आदि गुण मुझे आज तक याद आते हैं. जोधपुर वर्षावास के अन्तिम दिनों में नेत्र का ऑपरेशन कराकर मैं, सरदारपुरा में ठहरा हुआ था, स्वामीजी को क्या आवश्यकता थी कि वे मेरे पास, दीक्षा में बड़े होते हुये भी साता पृच्छा करने आते ? परन्तु यह उनके सहज औदार्य और निर्मल स्नेह का महत् उदाहरण है. सं० २०१८ में मन्दसौर मध्य प्रदेश वर्षावास था. सहसा उनके स्वर्गवासी होने के दु:खद समाचार सुनकर हृदय को आघात लगा. तभी मेरा मन शोक में डूबकर यह सोचने को विवश हुआ-'श्रमणसंघ में अब वृद्ध, अनुभवी, उदारचेता और समत्व का साधक सन्त कहाँ है ?" उनका स्नेह सम्प्रदाय, प्रान्त, और वर्ग के घेरे में कभी आबद्ध नहीं हुआ था. उनका स्नेहतत्त्व धर्मनिष्ठ था. धर्म की चर्चा और धर्माचरण जहाँ जिसमें भी उन्होंने पाया-वे उन सभी के प्रति सहज ही द्रवित होते थे. STAN WANI Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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