SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ: 5७ स्मृति के मधुर पृष्ठ : मुझे श्रद्धेय मंत्रीजी महाराज के दर्शन करने एवं उनके चरणों में बैठकर सीखने का अनेक बार सुअवसर मिला है. वि० सं० २०११ में गुरुदेव उपाचार्य श्रीगणेशीलालजी महाराज के साथ कुचेरा के वर्षावास के समय, आपका जो स्नेह रहा, वह अद्भुत था. उसके बाद अजमेर में, भीनासर सम्मेलन में एवं कुचेरा आदि क्षेत्रों में मुझे आपकी सेवा में रहने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ है. वे मेरे जीवन के मधुर क्षण रहे हैं, जिनमें मैं उनके चरणों में बैठकर कुछ सीख सका. आज वे मधुर क्षण केवल स्मृति के मधुर पृष्ठ ही रह गए हैं. 茶器茶器带带带带带带带带带带器器器業帶路 डॉ० श्रीकुंजबिहारीलाल पुण्य संस्मरणः सन्त हों तो ऐसे हों पूज्य जैन मुनि श्रीहजारीमलजी महाराज के दर्शन व सेवा का शुभ अवसर मुझे चिकित्सा के सेवा-कार्य करने के प्रसंग में ही प्राप्त हुआ था. गुणी व सन्त पुरुषों का मैं सदा से ही आदर करता आया हूँ. मुझे आज भी चित्रवत् स्पष्ट व साकार स्मरण है. राजस्थान के ब्यावर नगर में उस सन्त पुरुष का एक दिन हॉस्पिटल में आगमन हुआ था. उनके सीने में एक छोटी-सी गांठ थी. निदान निमित्त कक्ष में वे पधारे. मैंने निदान कर उनसेकहा-महाराज ! ऑपरेशन करना पड़ेगा, लेकिन आपके साथ गारजियन...!' वे निमिषभर मौन रहे. फिर कहा'मैं तैयार हूँ. आप अपनी सुविधानुसार ऑपरेशन कर सकते हैं'. मैंने कहा-'महाराज, क्लोरोफार्म का उपयोग किया जाय या इंजैक्शन का? मेरे प्रश्न का उन्होंने संक्षिप्त उत्तर दिया--- एक का भी नहीं. मैं पूरी तरह तैयार हूँ. आप अपनी सुविधापूर्वक आपरेशन कर सकते हैं. मैं उनके साहसपूर्ण उत्तर को सुनकर आश्चर्य से स्तंभित-सा रह गया. दोबारा कुछ न कह सका. उस अद्भुत पुरुष के ऑपरेशन की घटना मुझे याद है. ३० मिनट में उनके वक्ष के दक्षिण पक्ष से ५ तोले की गांठ "लोकल ऐनेस्थिसिया" से निकाली. ऑपरेशन कर चुकने पर मुझे तो पुनः अपना चिकित्सक धर्म निभाना था. मैंने मुनिश्री से कहा- 'महात्मा जी ! आप तो सन्त पुरुष हैं किन्तु हमारे थ्योरिकल हिसाब से आपको ३ दिन तक यहीं रहना चाहिए-उन्होंने ऑपरेशन से पूर्व जितनी साहस पूर्ण स्वीकृति बिना क्लोरोफार्म के ऑपरेशन करने की दी थी, उतने ही साहसपूर्वक कहा-हम जहाँ पर ठहरे हैं वह स्थान यहाँ से ४ फाग ही है. मेरा आत्मविश्वास कहता है कि मैं सकुशल वहाँ पर पहुँच जाऊँगा. वे सचमुच ही जैनस्थानक में पहुँच गये, ३ घन्टे बाद हॉस्पिटल का समय समाप्त होने पर उनके निवास स्थान पर गया तो वे लकड़ी के पाट पर शयन करते मिले. इस ऑपरेशन के बाद भी मैंने अनेक जैनमुनियों की चिकित्सा-सेवा की. आज मुनि श्रीहजारीमलजी म. संस्मरण लिखते हुए हर्ष होता है कि वे महान् सन्त थे. वस्तुत: भारत की आध्यात्मिक विद्या व योगविद्या की सतह तक ऐसे ही सन्त पहुँचे हैं. ऐसे सन्तों की योगिक प्रक्रियाओं के द्वारा ही भारत ऋषि, मुनि, त्यागी व महात्माओं का देश कहलाता है. मेरे मस्तिष्क व हृदय पर उनके पुण्य संस्मरण लिखते हुए जो भावोदय हुआ उनके आधार पर मैं कह सकता हूँ कि वे महान् सन्त थे. सन्त हों तो ऐसे ही हों. Jain Education Intera ESOT Use Only -www.jainelibrary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy