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________________ Jain विभिन्न लेखक : संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ ७१ रहते हैं. सन्त मनुष्य की आकृति में मनुष्यता का बीज बोनेवाला कुशल माली है. लोकोत्तर पथ प्रदर्शक ही नहीं वह इसका शिक्षक भी है. जगत् कल्याण के लिए भीषण से भीषण कष्ट सह कर भी वह सुख के ही दर्शन करता है. विलुप्त होती हुई मानवता यत्र-तत्र उपलब्ध हो रही है, उसका सम्पूर्ण श्रेय सन्तों को ही है. यदि सन्त-समाज का इस दिशा में प्रयत्न न होता तो मनुष्य-समाज आज पशुओं की श्रेणी से अलग दृष्टिपथ न होता. इसी लिए कहा जाता है कि सन्त मनुष्य में मनुष्य के गुणों का जन्मदाता है. महास्थविर श्रीहजारीमलजी महाराज महान् थे. उक्त सन्तोचित सभी गुण उनमें विद्यमान थे. उन्होंने राजस्थान के विभिन्न भागों में पैदल भ्रमण करके मानव समाज के विकास में जो योगदान दिया है वह अपूर्व है. उसका प्रत्यक्ष अनुभव करने का अवसर मुझे मिला है. जब मैं उनके विहार क्षेत्र में गया तब मैंने देखा कि जैन-अजैन सभी मानवों में श्री हजारीमलजी महाराज के उपदेश का असर है. श्रीहजारीमलजी महाराज का नाम श्रवण करते ही उनके दिलों में प्रसन्नता छा जाती थी. अपने मधुर स्वभाव से वे हरएक को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे. छोटे-से-छोटे साधु भी जब उनसे मिलने जाते तो उसे देखते ही सर्वप्रथम उनके दोनों हाथ जुड़ जाते और मधुर मुस्कान के साथ स्वागत करते. उनके दर्शन करते समय और बातचीत करते समय अन्तर्मन को अवर्णनीय सन्तोष मिलता था. ऐसे शील तथा मधुर स्वभाव के थे श्री हजारीमलजी महाराज. सादड़ी सम्मेलन के पहले इस महास्थविर के दर्शन का अवसर मिला था. परन्तु संप्रदायवाद के आवरण में होने के कारण उस महापुरुष को सम्यक् रूप में पहचान नहीं पाया था. सादड़ी सम्मेलन में वह आवरण सर्वानुमति से हटा दिया गया, तब ही भिन्न-भिन्न संप्रदायों में रहे हुए महास्थविरों के एवं महामुनिवरों के निकट सम्पर्क में आने का मंगलमय अवसर मुझे प्राप्त हुआ. ज्यों-ज्यों में श्रीहजारीमलजी महाराज के परिचय में आता गया त्यों-त्यों उनमें मेरी श्रद्धा बढ़ती गई. कुचेरा वर्षावास में उपाचार्यश्री के साथ रहकर आपने सादड़ी-सम्मेलन- जन्य एकता को मूर्त रूप दिया. दोनों महापुरुषों का वह अभेद रूप देखकर समाज का मनमयूर नाच उठा कितना अच्छा होता यदि मुझे भी दोनों महापुरुषों की सेवा का अपूर्व अवसर मिलता ? परन्तु उपाचार्यश्री की आज्ञानुसार इस वर्ष, सेवाभावी मुनि सुन्दरलालजी और प्रिय व्याख्यानी मुनि श्री सुमेरमलजी के साथ - सरदारशहर चातुर्मास करना पड़ा. "आज्ञा गुरूणां खलु धारणीया" इस सिद्धान्तवाक्य पर विश्वास होने के कारण मैं सरदारशहर चला गया. भीनासर सम्मेलन में श्रमण संघीय विधानानुसार उपाचार्य श्री ने मंत्री मंडल का चुनाव किया. महास्थविर श्रीहजारीमल जी महा राज को मंत्रीपद मिला. उपस्थित सर्व मुनिवरों ने इसका सहर्ष स्वागत किया. किन्तु उस महापुरुष के मुख पर मंत्रीपद के कारण प्रसन्नता नहीं थी. उसके मुख को देखकर यही मालूम होता था कि सिर्फ आज्ञाराधना के लिए एवं उपाचार्यश्री का सम्मान रखने के लिए ही उन्हें मन्त्रीपद की स्वीकृति देनी पड़ी है. श्रमणसंघ के मंत्री बनने पर भी छोटे साधु के साथ आपका प्रेम-व्यवहार ज्यों का त्यों बना रहा. आपके जीवन का यह एक वैशिष्ट्य था. इसी कारण वे मेरी दृष्टि में महान थे. भीनासर बृहत्साधुसम्मेलन सम्पन्न होने के पश्चात् परम श्रद्धेय उपाचार्यश्री की आज्ञा से उपाध्याय कवि श्रीअमरचन्द्र महाराज की सेवा में वर्षावास करने के लिये मैं और मुनि आईदान जी (समदर्शी) चल दिये, उपाध्यायश्री जी महाराज मंत्री हजारीमल जी महाराज के साथ कुवेरा विराजमान थे, हम दोनों मुनि भी कुवेरा पहुंचे मंत्रीधी जी म का चातुर्मास नोखा क्षेत्र में निश्चित हो गया था. चातुर्मास में सेवा का लाभ मिलेगा यह आशा तो निराशा में बदल गई परन्तु अब कोई उपाय नहीं था. फिर भी जितने दिन मंत्री श्री जी कुचेरा में विराजमान रहे, उतने दिन सेवा का एवं ज्ञानचर्चा का लाभ तो हुआ ही, परन्तु उस समय यह नहीं ज्ञात हो सका कि महान् आत्मा के ये मेरे लिये अंतिम दर्शन हैं. चातुर्मास के पश्चात् हम दोनों मुनि उपाचार्यजी की सेवा में पहुँचे. करीब दो महीने तक में उपाचार्यची जी की सेवा में रहा. उपाचार्यश्री की आज्ञा से मैंने तपस्वी मुनि केशूलाल जी एवं शास्त्रज्ञ मुनि गोपीलाल जी इन तीन सन्तों के साथ महाराष्ट्र की तरफ विहार किया. भौगोलिक दृष्टि से महाराष्ट्र और राजस्थान में सैकड़ों मील का अन्तर है, परन्तु 30 30 30 30 3083003003003030030230030230304303003023083108 ary.org
SR No.012040
Book TitleHajarimalmuni Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1965
Total Pages1066
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size31 MB
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