SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चित्र और संभूति दो भाई जो कि दोनों एक-दूसरे से अति सुन्दर सूरत, शकल से मिलते-जुलते, कद में एक समान, वाणी जिनकी बहुत मृदु, सरल, और मनभावन है । हस्तिनापुर के बीच चौक में जनता का जमाव इनके चारों तरफ जम रहा है, भीड़ भी जम रही है । इनके सुमधुर गीत के झंकार से सब लोग अपना कार्य छोड़छोड़ के यहां एकत्रित हो गये हैं । एक भाई मानो वीणा का स्वरूप ही है तब दूसरा वीणा के स्वर स्वरूप है । इस स्थान पर कई गवैयों के पहले रोचक गीत सुमधुर हुए हैं किन्तु इसकी वाणी में जो मिठास हृदयग्राहीना है उसने पिछले सब गवैयों को पीछे छोड़ दिया है। पुरुष, महिलाएं, बालकबालिकाएं सब इनकी ओर उमड़ पड़े हैं सबको मंत्रमुग्ध बना दिया है । यह समाचार राजदरबार और मंत्री तक पहुंचे। इनकी गीत कला की स्वर लहरी हस्तिनापुर के घर-घर में पहुंच गई, जनता ने इनका बड़ा आदर सत्कार किया । संगीत की माधुरी के साथ इनके स्वभाव की मधुरता ने जनहृदय में गहरी छाप जमा दी। प्रतिदिन इनके अलग-अलग स्थानों पर कार्यक्रम योजित किये गये । एक दिन ऐसा भी आया कि हस्तिनापुर के महाराजा के सामने इनकी स्वर गंगा बही, महाराजा इनके सुमधुर गीतों को सुनकर मंत्र मुग्ध बन गये । इस दिन मंत्री बाहर गये हुए थे । राजदरबार में इनकी वाणी के झंकार ने सबको चमत्कृत कर दिया और यह निश्चय किया गया कि मंत्री के बाहर से आने के बाद एक वक्त पुन: महाराजा के सामने इस कार्यक्रम का आयोजन अच्छे रूप में दिया जाय । बी. नि. सं. २५०३ Jain Education International मुनि राजमल लोहा दो चार दिन बाद मंत्री जब बाहर से आये तब महाराजा ने इस कार्यक्रम को पुनः जमाने का आदेश दिया क्योंकि उस दिन की स्वर लहरी ने महाराजा के हृदय में अपना स्थान बना लिया था । कार्यक्रम का दिन निश्चित किया गया, हजारों जनता की मेदिनी उपस्थित थी। महाराजा, मंत्री, कर्मचारी भी अपने-अपने स्थानों पर बैठे हुए थे कि दोनों भाई अपनी वीणा लेकर राजदरबार में उपस्थित हो गये । उन्होंने अपना भजन कीर्तन शुरू किया जिसको सुनकर सब मुग्ध बन गये। मंत्री उन दोनों को बार-बार घूर घूर कर देख रहा था वह एक टक लगाये से था और सोच रहा था कि ये कौन हो सकते हैं? थोड़ी देर में उसने उनको पहिचान लिया कि ये दोनों चित्र और संभूति चाण्डाल के पुत्र हैं । मंत्री ने महाराजा से कहा कि ये चाण्डाल के बेटे हैं जल्दी ही जनता के कानों तक यह समाचार पहुंच गये । नगर निवासियों ने जान लिया कि ये दोनों कुमार कुलीन वंश के नहीं है एक चाण्डाल के लड़के हैं तो सबकी नजरों में गिर गये । जनता का प्रेम समुद्र की लहरों की तरह होता है एक समय मानव भेदिनी जिसके चरण धोती है वही किसी समय उसको घृणा की दृष्टि से देखने लगती है और किनारे के एक तरफ फेंक देती है। जब पता चला कि चित्र और संभूति दोनों चाण्डाल हैं तो उनको मंत्री ने धुत्कार कर नगर से बाहर निकाल दिया । हस्तिनापुर की जनता मानो पाप का प्रायश्चित करती हो इस प्रकार इन दोनों भाइयों के सिर पर सितम की झड़ी लग गई । चाण्डाल के घर जन्म लेना यह उस जमाने में एक अक्षम्य अपराध माना जाता था । For Private & Personal Use Only १३ www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy