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________________ चित्र और संभूति चाहे कितने ही सुशील और मधुर हों चाहे उनका स्वर कितना ही हृदयग्राही और आनन्दमयी क्यों न हो उनके सिर पर चाण्डाल के घर पर जन्म लेना उस समय मानव रूप में भी उनको मानने के लिये युग तैयार नहीं था। वे पशु से भी गये बीते माने जायेंगे, उनसे हर प्रकार का परहेज किया जाता था। यदि उनका जन्म किसी ब्राह्मण, क्षत्रिय या वेश्य कुल में हुवा होता तो वे एक महाराजा से बढ़कर हमेशा के लिये जनता के स्नेह-श्रद्धा के भाजन बन जाते, यह अपराध एक ऐसा माना जाता कि कोई भी कलीन इसे माफ नहीं करता। चित्र और संभूति को हस्तिनापुर से निकालने और धुत्कारने का सबसे पहला काम महाराजा के मंत्री नमूची ने किया । यदि नमूची ने यह रहस्य नहीं खोला होता तो चित्र और संभूति आदर प्राप्त करके जैसे आये थे वैसे वापिस चले जाते । उनके, सिर पर यह महान दुःख का पहाड़ नहीं आ पड़ता । किसी को भी यह शंका नहीं होती कि ऐसे उगते फूल जैसे कुमार चाण्डाल के कुल में पैदा हुए हैं। दोनों भाइयों के चाण्डाल होने का रहस्य खोला और अपमान कर नगर से बाहर निकाला । ... दोनों भाई चाण्डाल कुल में जन्म लेते हुए भी संसार जिसको खानदानी कहता है वह इन दोनों भाइयों के खून में पाई जाती है । इसी से पिता की आज्ञा का उल्लंघन करके नमूची को जीवन दान दे दिया था। दोनों भाई इस भय से अपने घर न जाकर अज्ञातवास में चले गये। नमूची के कारण ही अपने माता-पिता की शीतल छाया को तिलांजलि दी । नमुची को बचाने के लिये गाँव-गाँव शहर-शहर भटकता भिक्षा के टुकड़ों पर जीवन यापन करना स्वीकार किया । नमूची ने यह रहस्य क्यों खोला ? नमूची तो हस्तिनापुर महाराजा का मंत्री था, उसको इन सुकुमार बालकों से क्या वेर था? कुलीन कुल में भी चाण्डाल पैदा होते हैं । यह नमूची बुद्धिमान था कुलवान था किन्तु चारित्र से अतिशिथिल व भ्रष्ट मनुष्य था। यह काशी के महाराजा के यहां विश्वासपात्र था जब उसके काले कारनामों का पता काशी महाराजा को लगा तो उन्होंने उसको जल्लाद के सुपुर्द कर दिया और कहा कि मैं इसका मुंह नहीं देखना चाहता हूं तुम इसे जगत में ले जाओ और इसका काम तमाम कर दो। यदि नमूची में थोड़ा भी खानदानी का अंश होता या कृतज्ञता होती तो वह कभी भी इन दो भाइयों को हेय स्थिति में उतारने की हिम्मत नहीं करता । चित्र और संभूती का तो इसके ऊपर इतना उपकार था कि यदि यह अपनी चमड़ी के जते बनाकर इनको पहिनाता तो भी इसको आनन्द प्राप्त होता। हस्तिनापुर की तमाम जनता के एक दिन प्रिय और श्रद्धालु बने हुए दोनों भाई नमूची के कारण लोकनिदित घृणित बन गये । यहां तक कि कोई उन्हें एक समय रोटी तक खिलाने को तैयार नहीं । चित्र और संभूति दोनों निराश होकर हस्तिनापुर से निकलकर जंगल की ओर चल पड़े । दोनों भाई जंगल में बैठकर विचार करते हैं कि किसी भी बस्ती में अब अपने को आश्रय नहीं मिल सकता है, यदि कहीं स्थान मिल जाय और कुल की बात मालूम हो जाय तो पूरी जनता के कोप भाजन बन जायें जब इसमें कोई संशय नहीं है ऐसी स्थिति में अब अपने को कहां जाना, किसका आश्रय लेना, संपूर्ण विश्व के घोर अंधकार में अपने को डूबते हुए दोनों भाइयों ने देखा। विचार विमग्न हो गये, अपने आपको कोसने लगे और इस घनघोर जंगल में हमेशा के लिये जीवन का अन्त करने में ही अपने आपको सुखी मानने लगे। जीवन का अन्त किस प्रकार किया जाय इसका उपाय सोच ही रहे थे कि एक घनघोर झाड़ी में एक तपस्वी मुनि को ध्यान करते हुए देखा । दोनों भाई तपस्वी शांत चित्त मुनि की ओर आगे बढ़े । मुनि के मुख मण्डल की तेजस्वता के दर्शन करते ही दोनों भाइयों के मुख पर वैसी ही प्रफुल्लता बह गई। मुनिराज के पास पहुंचते ही जब उनके मस्तिष्क में यह बात आई कि हम चाण्डाल के पूत्र हैं. संसार में कहीं भी अच्छी जगह हमारा स्थान नहीं है उनके मुख मण्डल पर दीनता व मलिनता छा गई । दोनों भाई आपस में एक दूसरे का मुह देखने लगे । मुनिराज का ध्यान पूरा हुआ, उन्होंने दोनों कोमल जिज्ञासु नवयुवकों को देखा और कहा कि महानुभाव ! निर्भय रहो, हमारे यहां किसी का कोई ऊंच-नीच का भेद नहीं है। यहां आने का, पूछने का, वार्तालाप करने का कोई भेद-भाव नहीं तुमको चर्चा करने का पूर्ण अधिकार है । जल्लाद को इसके ऊपर दया आई और वह नमूची को अपने घर लाया और राजा से छिपाकर कितने ही दिन अपने घर में रक्खा । जिस जल्लाद ने इसको आश्रय दिया उसने उसके साथ भी अवांछनीय बर्ताव किया इससे जल्लाद को भी क्रोध आ गया और उसने भी अपने दो पुत्रों को आज्ञा दी कि इसको दूर जंगल में ले जाकर इसका शिरच्छेद कर दो । दोनों पुत्र पिता की आज्ञा मानकर नमची को लेकर जंगल में गये परन्तु विचार करने लगे कि यह नमूची हमारे घर में अतिथि रूप में रहा । इसने हमको विद्यादान दिया हमारे, साथ प्रेम का बर्ताव किया, अब हम इसका वध कैसे करें । उनका हाथ थम गया और दोनों भाई गहन विचार में पड़ गये व दोनों आपस में विचार करने लगे कि एक तरफ पिता की आज्ञा है और दूसरी ओर विद्यादान करने वाला गुरु है, हमें किस ओर अपना कदम बढ़ाना चाहिये, अन्त में उन्होंने नमूची को छोड़ दिया। ' नमूची वहाँ से रवाना हुआ और अपने बुद्धिबल से हस्तिनापुर महाराज का मंत्री बन गया, इसी मंत्री नमूची ने इन १४ राजेन्द्र-ज्योति Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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