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________________ वो जो सफेद बिन्दु नजर आ रहे थे। अब साफ स्पष्ट हो गये, कि मुनि भगवंतो का पदार्पण हो रहा है। अत्यधिक हर्षोल्लास के वातावरण में मुनिद्वय का सामैया हुआ। स्वागत हुआ और गाजे बाजे के साथ नगर प्रवेश हुआ। आज के इस अनोखे वातावरण का मजा बम्बई-गोवा हाइवे मार्ग से गुजरती बसो से मुसाफिर झाँक झाँक कर ले रहे थे। सभी के हृदय पटल पर आश्चर्य मिश्रीत हर्ष था। जय जय कार के नारों से वातावरण मुखर हो उठा। सामैये के पश्चात श्री दलीचन्दजी मियाचन्दजी परिवार की तरफ से गहुँली की गई और महिलाओं ने मंगल गीत गाये। स्वागत सत्कार के पश्चात मुनिराजश्री सकल श्री संघ के साथ मंदिर गये और मंदिर में प्रभु दर्शन वन्दन के पश्चात उपाश्रय में पधारकर उपस्थित जनसमुदाय को मंगलाचरण सुनाया और संक्षिप्त उद्बोधन दिया। बम्बई गोवा हाइवे पर बसा हुआ इन्दापुर (तलाशेत) महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के रायगड जिले का सुरम्य स्थान है। यहाँ बस स्थानक के समीप सामने ही जैन मंदिर है। प.पू. गच्छाधिपती आचार्य देवेश श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.ने श्रमण सूर्य आगम दिवाकर पू. मुनिप्रवर श्री लक्ष्मणविजयजी "शीतल' म.सा. के दोनो शिष्य रत्न मनिराजश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी "शार्दल" एवं मुनिराजश्री लोकेन्द्रविजयजी 'मार्तण्ड' म.सा.को इन्दापुर में दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी की पावन जयन्ति मनाने हेतु अत्यन्त अनुग्रह और हर्ष से आज्ञा प्रदानकर इन्दापुर के श्री संघ की चिर संचित अभिलाषा पूर्ण की थी। न जाने किस किस के पुरुषार्थ और सुकर्मो से चिरसंचित अभिलाषा फलवती हुई। पूज्य मुनि भगवंतो की निश्रा में गुरु जयन्ति का कार्यक्रम सम्पन्न करने की इच्छा को साकार रुप मिला। ___गुरु जयन्ति महोत्सव का कार्यक्रम का शुभारंभ ८ जनवरी १९८९ को हुआ। नवान्हिका महोत्सव का आयोजन हुआ दोनो समय नवकारसी की व्यवस्था रखी गई और ९ दिन तक पूजन पढाई गई। १४ जनवरी १९८९ को गुरु सप्तमी के पावन दिन पर नवकारसी और पूजन का लाभ फतापुरा (राज.) निवासी शा श्री दलीचन्दजी मियाचन्दजी कावेडिया को प्राप्त हुआ। जिस अवसर की चिर प्रतिक्षा थी वह अभिलाषा आज पूर्ण हुई। प्रात: ९ बजे के पूर्व ही बाहर गांव से आत्मीयजन और अतिथियों का आवागमन शुरु हो गया। दो विशाल सभा मंडप बनाये गये व यात्रियों के ठहरने की उचित व्यवस्था की गई। इस जयंति पर्व में सम्मिलीत होने के लिये करीब ५ हजार श्रध्दालू बाहर गाँवोसे पधारे थे। दोपहर लगभग २ बजे भव्य शानदार रथयात्रा का आयोजन किया गया। इन्द्रध्वजा और बैंड बाजे के साथ भव्य जुलुस के रुप में यह रथयात्रा पू. मुनिराजश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी और पू. मुनिराजश्री लोकेन्द्रविजयजी की शुभ निश्रा व मार्गदर्शन में नगर मुख्य मार्ग से गुजर कर वापीस विशाल मंडप में आ गई। इस रथयात्रा में दादा गुरुदेव का भव्य छायाचित्र साथ लेकर जीप पर सवार थे, आज के इस पावन पर्व के आयोजक शा दलीचन्द मियाचंदजी कावेडिया परिवार! श्रावक श्राविकाओं मान्य अतिथियों, कारो, रीक्शा, घोडो से सुसज्जित विविध कतारो से आकीर्ण अपूर्व अंलकृत हाइवे प्रफुल्लित हो उठा। अपने निर्माण काल से आज तक ऐसा भव्य और पवित्र दृश्य उस घरा पर कभी उपस्थित नहीं हुआ था। कितना अपूर्व व अनोखा नजारा था वह। मस्ती और आनन्द से झुमते हुए भक्तगण की जिन शासन देव और दादा मन के दुर्भाव रुप अनि की एक छोटी सी चिनगारी से काया और आत्मा दग्ध हो जाती है, मन भभक कर जल उठता है। ७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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