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________________ सुहानी सुनहरी किरणोवाले रथ में बैठकर अवतरित हुई हो। मुनि भगवंतो की शुभ निश्रा में श्री अजितनाथ जिन मंदिर एवं दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की मूर्ति की प्रतिष्ठा का कार्यक्रम निश्चित हुआ। कार्यक्रम की पूर्ण सफलता के लिये यूवको की अलग अलग समितियाँ बनाई गई। इस प्रतिष्ठा कार्यक्रम से सभी प्रसन्न थे। निर्मल भावनाओं के प्रवाह में बहता हुआ जनसमुह कितना श्रद्धावन्त था कितना आत्मविभोर था। रात्रि में साढे नौ बजे सकल श्री संघ मुनिद्वय के सानिध्य में एकत्रित हुआ। पहले यह भावना थी कि सभी लोग अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार चढावे बोलेंगे। परन्तु जब मुनिभगवन्तों के आदेश पर जाजम बीछाई गई तो लोग जैसे सबकुछ भूल गये और बढचढ कर अधिक से अधिक चढावें बोल कर स्वपार्जित लक्ष्मी का उपयोग करने की होड़ सी लग गई। प्रतिष्ठा का ऐसा अवसर जीवन में यदा कदा ही आता है। इसलिये लोग अगर अपनी सीमा को छोड़कर अधिकाधिक चढावे बोले तो इसमें आश्चर्य ही क्या। सभी प्रकार के चढावे उदारता पूर्वक सोल्लास पूर्ण वातावरण में बोले गये। पूज्य, मुनिद्वय उग्र विहार कर कर्जत पहुँचे. कर्जत में पूर्व में मुनिद्रय के पधारने का कार्यक्रम तय हो चुका था। सो कर्जत के श्रावक गण सुबह सवेरे जल्दीही स्वागतोत्सुक दिखाई दिये। मुनिराज श्री के सामैये और स्वागत की पूर्ण तैयारी थी। जयघोष के साथ पारम्परिक रीतिरिवाज के अनुसार सामैया हुआ और नगर भ्रमण कर जिन मंदिर दर्शन वंदन कर उपाश्रय में पधारकर उपस्थित जन समुदाय को मंगलाचरण सुनाया। कर्जत का जिनमंदिर वर्षों से वाद विवाद का विषय बना हआ था। और इसी कारण मंदिर का निर्माण कार्य अधुरा पड़ा था। सभी की यह हार्दिक भावना थी, कि मुनिराजदय हस्तक्षेप करके इस विवाद को प्रेममय वातावरण में सुलझा दे। इस विचार से प्रेरित होकर सभी लोग रात्रि में उपाश्रय में मुनिद्वय के सम्मुख उपस्थित हुए और अपनी हार्दिक इच्छा प्रकट की। दोनो मुनि भगवन्तो ने गंभीरता पूर्वक इस समस्याकों सुना, समझा और इस समस्या के निराकरण करने का पूर्ण आश्वासन दिया। ४ जनवरी १९८९ को सुबह कर्जत से विहार कर मुनिराज श्री खापोली फांटा पहुँचे। खापोली फांटा के श्री संघ ने भावभीना स्वागत किया। ८ जनवरी ८९ पौष सुद १ का मनभावन सुप्रभात, सुबह-सुबह का मनोरम वातावरण, पक्षियों का कर्णप्रिय कलरव, प्राकृतिक छटा का सुन्दर नजारा और शांत सडक पर चल रहे थे, प्रसन्न मुद्रा में मुनि राजद्वय। दोनो के चेहरो पर मंद मंद मुस्कान, अपने गंतव्य स्थल पर पूर्व निर्धारित समय पर पहुँचने की प्रसन्नतासे ओतप्रोत थी। इन्दापुर के श्री संघ को भी इसी दिन की प्रतीक्षा बहुत दिनों से थी। इन्दापुर का श्री संघ आज अत्यन्त ही प्रसन्न था। वे उन क्षणों की तीव्रगति से प्रतिक्षा कर रहे थे, जिस क्षण दुर शांत सडक पर मुनिद्वय के आने की संभावना थी सभी की दृष्टि उसी ओर लगी थी। सभी के अन्तरतम में एक अजीब सी खुशी व्याप्त थी। और वो...सामने देखो, दो सफेद बिन्द से दिख रहे है, जो अन्य रंगबिरंगे बिन्दुओ में स्पष्ट नजर आ रहे है। अचानक एक शोर उठा, "आ गये पधार गये" और साथ ही गुंज उठा "जिन शासन देव की जय"- "गुरुदेव की जय"- मुनिराजश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी और मुनिराजश्री लोकेन्द्रविजयजी की जय। भाग दौड मच गई, वाद्य यंत्र, मधुर ध्वनि अलापने लगे। ७४ संसार के छोटे-बडे प्रत्येक व्यक्ति आशा और कल्पना के जाल में फांस कर भव भ्रमण करते रहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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