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________________ गुरुदेव की जय जय कार से आकाश ध्वनित प्रतिध्वनित हो उठा। कर्जत के बालिका मंडल और युवा मंडल ने दांडिया नृत्य करते हुए अति आनंदित वातावरण को और अधिक आनंदित कर दिया। रथयात्रा लगभग साढे चार बजे भव्य पंडाल पर आकर पूर्ण हई। पूज्य मुनिराजश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी ने सभा को संबोधित करते हुए दादा गुरुदेव प.पू. आचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.के जीवन का सार वैशिष्ठय अत्यन्त सारगर्भित शब्दावली में समझाया। मुनिराजश्री ने बताया कि महाराष्ट्र प्रदेश में और वह भी कोंकण प्रदेश में यह पहला अवसर है, कि गुरु सप्तमी का कार्यक्रम इतने विशाल और भव्य पैमाने पर आयोजित किया गया है। इसी सभा में मुनिराज श्री ने सहर्ष तीन घोषणांए की: वह यह की १) श्री शंखेश्वर तीर्थ में श्री पार्श्वपद्मावती शक्ति पीठ गुरुलक्ष्मण ध्यान केन्द्र की स्थापना की जायेगी। २) इस वर्ष का चातुर्मास कराने की आज्ञा श्री प्रतापचंद नवलाजी परिवार को प्रताप हाल कल्याण में कराने की प्रदान की जाती है। ३) आगामी वर्ष की गुरु सप्तमी का पावन पर्व मोहना नगर (कल्याण) में मनाई जायेगी। इसका लाभ पुखराजजी भगवानजी परिवार आहोर (राज.) वाले ले रहे है। करतल ध्वनियों की गडगडाहट में मुनिराजश्रीने अपना प्रवचन पूर्ण किया। मुनिराजश्री लोकेन्द्रविजयजी ने अपनी भावुक और हृदयस्पर्शी शैली में दादा गुरुदेव के संस्मरण सुनाए। उन्होने गुरुदेव की याद ताजा कर दी। श्रोताओ ने अपनी भावनांजलीयां अर्पित करते हुए गुरुदेव को नमन किया। सभा के समापन के समय शा. फुटरमल सेनाजी की ओर से पूज्य मुनिराजद्रय को कामली समर्पित की गई। अनेक विविध कार्यक्रमों के साथ सभा सानन्द सम्पन्न हुई। भगवान भुवन भास्कर का रथ अस्ताचल की ओर तीव्रगति से दौड रहा था। सभा समाप्ति के पश्चात इसी विशाल पंडाल में स्वामीवात्सल्य का आयोजन रखा गया था। महत्वपुर्ण बात तो यह है कि इन्दापुर इतना छोटासा गांव होते हुए भी प्रबन्ध कर्ताओने इतनी सुन्दर व्यवस्था की थी, कि किसी भी व्यक्ति को कोई तकलीफ नहीं हुई। वास्तव में प्रबन्धकर्ता धन्यवाद के पात्र है। कार्यक्रम को सानन्द निर्विघ्न समाप्त कर मुनिद्वय ने इन्दापुर (तलाशेत) से मंगल विहार किया। इन्दापुर के श्री संघने मुनिद्रय को भावभीनी विदाई दी। महाराष्ट्र और दक्षिण की मुनिद्वय की इस यात्रा का श्रेय निश्चित ही शा दलिचन्द मियाचन्दजी एवं शा फूटरमल सेनाजी को दिया जा सकता है। क्योंकी इन महानुभावों के आत्मीय प्रेम पूर्ण निवेदन और आग्रह से प्रभावित होकर ही दोनो मुनिराज श्री ने यह यात्रा स्वीकार की थी। १६ जनवरी १९८९ को प्रात: मुनिद्रय इन्दापुर से विदा हुए। गाँव के बाहर तक विदा देने आये श्री संघ के श्रावक श्राविकाओं को मुनिराज श्री ने मंगलाचरण सुनाया। मांगलिक सुनते-सुनते श्रोतागण बरबस ही द्रवित हो उठे। मुनिद्रय आगे विहार कर गये। ७६ मानसिक चिंता-फिक्र एक प्रकार की ठंडी आग है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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